सार्वजनिक किए गए गोपनीय दस्तावेजों के अनुसार अफगानिस्तान में रूसी हस्तक्षेप के तत्काल बाद अमेरिका ने अपने गुप्त परमाणु हथियार कार्यक्रम पर अमेरिकी चिंताओं को दरकिनार करने की मांग स्वीकार कर ली थी. चीन ने भी तक पाकिस्तानी मांग की हिमायत की थी.
अमेरिकी विदेश विभाग के सार्वजनिक किए गए इन गोपनीय दस्तावेजों में यह रहस्योद्घाटन हुआ है कि तत्कालीन पाकिस्तानी तानाशाह जनरल ज़िया-उल-हक और चीन के उप प्रधानमंत्री देंग शियोफेंग अफगानिस्तान में रूसी हस्तक्षेप के खिलाफ अमेरिका को पाकिस्तान के समर्थन के बदले में यह कीमत वसूलने में कामयाब रहे थे.
अफगानिस्तान को लेकर 1977-1980 के बीच के अमेरिकी विदेश संबंधों पर सार्वजनिक किए गए इन दस्तावेजों के मुताबिक पाकिस्तानी परमाणु हथियार कार्यक्रम पर अमेरिका ने अपनी आंखें मूंद ली थी. इसके अलावा, देंग ने पाकिस्तान को और भी सैन्य और वित्तीय सहायता देने के लिए भी अमेरिका को मना लिया था.
दस्तावेज इस बात की ओर संकेत करता है कि ज़िया और देंग दोनों ने तत्कालीन कार्टर प्रशासन को बहुत ही सफलतापूर्वक इस बात का यकीन दिला दिया था कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की तत्कालीन सरकार सोवियत संघ का समर्थक है.
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