म्यामांर और संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किया है जो म्यामांर में सुरक्षाबलों के अत्याचार के चलते देश छोड़कर चले गए 7 लाख रोहिंग्या मुस्लिमों की वापसी में सहायक हो सकता है. ये रोहिंग्या मुस्लिम बांग्लादेश में अस्थायी शिविरों में रह रहे हैं.
इस सहमति पत्र में एक ‘सहयोग की रूपरेखा’ बनाने पर सहमति बनी है जिसका उद्देश्य रोहिंग्या शरणार्थियों की ‘स्वैच्छिक, सुरक्षित, सम्मानित और स्थायी’ वापसी के लिए स्थितियां निर्मित करना है.
म्यामांर के सुरक्षाबलों पर पश्चिमी रखाइन प्रांत में रेप, हत्या, प्रताड़ना और रोहिंग्या के घरों को जलाने के आरोप हैं जहां अधिकतर रोहिंग्या रहते थे.
संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका ने पिछले वर्ष अगस्त में शुरू हुई कार्रवाई को ‘जातीय सफाया’ करार दिया था. म्यामांर और बांग्लादेश बीते नवंबर में रोहिंग्या की स्वदेश वापसी शुरू करने पर सहमत हुए थे.
म्यामांर में संयुक्त राष्ट्र के रेजीडेंट एंड ह्यूमैनिटैरियन कोआर्डिनेटर के. ओस्तबी ने कहा कि यह समझौता इस संकट के समाधान में पहला महत्वपूर्ण कदम है. उन्होंने कहा, ‘काफी काम करने हैं. इस कार्य के महत्व को कमतर कर के नहीं देखा जाना चाहिए.’
उन्होंने कहा, ‘हम करीब 7 लाख लोगों की बात कर रहे हैं जिन्हें न केवल वापस लौटना होगा बल्कि उनकी वापसी के लिए स्थितियां भी सही होनी चाहिए. यह स्थितियां समाज में उनकी पहचान, उनकी सुरक्षा और उनकी सेवाओं, आजीविका और रहने के एक स्थान के संबंध में है.’
संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि समझौता उसके शरणार्थी और विकास एजेंसियों को रखाइन प्रांत तक पहुंच प्रदान करेगा.
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