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ट्रंप के फैसले के खिलाफ 'एसीएलयू' का विरोध, क्या भारत में कभी ऐसा हो पाएगा

एसीएलयू आखिर इसी कारण मजबूत है कि अमेरिकी उसके मूल्यों को अपना समर्थन देते हैं

Updated On: Feb 05, 2017 06:34 PM IST

Aakar Patel

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ट्रंप के फैसले के खिलाफ 'एसीएलयू' का विरोध, क्या भारत में कभी ऐसा हो पाएगा

सात देशों के प्रवासियों के प्रवेश को रोकने के नये अमेरिकी राष्ट्रपति के आदेश से बहुत सारे अमेरिकी नाराज हैं. डोनाल्ड ट्रंप ने अपने चुनाव-अभियान में वादा किया था कि मुसलमानों के अमेरिका आने पर प्रतिबंध लगाकर आतंकवाद का खात्मा कर देंगे.

उन्होंने कहा था कि जब-तक मेरे आगे पूरी बात साफ नहीं हो जाती तब-तक यह प्रतिबंध जारी रहेगा.

नये अमेरिकी राष्ट्रपति के कुर्सी संभालते ही यह प्रतिबंध अमल में आ गया है. जिन देशों के अमेरिका में घुसने पर रोक लगायी गई है, उनमें ईरान और इराक दोनों ही देश के लोग शामिल हैं.

लाखों ईरानी-अमेरिकी नागरिकों से ईरान के लोगों के रिश्ते हैं और इराक के बहुत से नागरिकों ने अपने देशवासियों के खिलाफ चली जंग में अमेरिका का साथ दिया था. रोक वाली सूची में सीरिया भी शामिल हैं जहां जारी हिंसा के कारण लाखों लोग देश छोड़ने पर मजबूर हैं.

ऐसा लगता है कि ट्रंप के आदेश को तोलने में विशेषज्ञों से चूक हुई है, क्योंकि शुरुआती तौर पर रोक के इस आदेश में सात देशों के वैसे लोगों को भी शामिल कर लिया था जिन्हें ग्रीन-कार्डहोल्डर होने के नाते अमेरिकी में स्थायी तौर पर रहने का अधिकार हासिल है.

Donald Trump

ट्रंप ने दुनिया के साथ देशों के मुसलमानों पर अमेरिका आने से रोक लगाया है

सात देशों पर रोक

ये रोक सूची के सात देशों के उन नागरिकों पर भी लागू है जिनके पास अमेरिका जाने का टूरिस्ट या बिजनेस वीजा है. इससे एयरपोर्ट पर बड़ी अफरा-तफरी मची. ध्यान देने की एक बात यह भी है कि जिन देशों के साथ ट्रंप के व्यावसायिक रिश्ते हैं उन्हें रोक वाली सूची से बाहर रखा गया है.

इसकी एक मिसाल है सऊदी अरब जहां के नागरिकों ने नाइन-इलेवन वाले हमले को अंजाम दिया था. बेशक रोक का आदेश लापरवाही से लागू हुआ और उससे पाखंड की झलक आती है. लेकिन, बहुत से अमेरिकी इस बात से नाराज हैं कि रोक के फैसले से नागरिक-अधिकारों और मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ है.

बहुत से अमेरिकियों के मन में यह धारणा बनी चली आ रही है कि उनके देश में कानून का राज चलता है, अमेरिका आजादी और बराबरी का प्रतीक है और वे अपनी इस धारणा को लेकर काफी संजीदा भी हैं.

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ऐसे अमेरिकी नागरिकों को लगा कि अब वक्त कुछ कर दिखाने का है और उन्होंने अमेरिकी सिविल लिबर्टीज यूनियन (एसीएलयू) को समर्थन देकर सचमुच ही कुछ कर दिखाया है.

एससीएलयू का अपने बारे में कहना है कि वह कानून और पैरोकारी का एक निष्पक्ष संगठन है. वह किसी आर्थिक फायदे के लिए काम नहीं करता और उसका मकसद अमेरिकी में रहने वाले हर व्यक्ति के हक की हिफाजत करना है.

एसीएलयू ने अपनी वेबसाइट पर बड़े सीधे-सादे लफ्जों में लिखा है कि ट्रंप के आदेश के खिलाफ उसने क्यों कदम उठाये. वेबसाइट पर लिखा गया है- ‘उसने भेदभाव बरता, हमने मुकदमा किया’.

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अमेरिकी लोगों और स्वयंसेवी संगठनों ने एसीएलयू के फैसले का समर्थन किया

ट्रंप का विरोध

एक जज ने ट्रंप के फैसले पर स्थगन लगा दिया है. बहुत से मुकदमे और दर्ज हैं. ऐसे में ट्रंप के लिए अपने आदेश को लागू कर पाना मुश्किल है. फैसले की कुछ बातों जैसे ग्रीनकार्ड-होल्डर पर लगी रोक को जोरदार विरोध के कारण पहले ही वापस लेना पड़ा है.

फिलहाल अमेरिका को मजबूत स्वयंसेवी संगठनों (एनजीओज्) की मौजूदगी का फायदा मिलता दिख रहा है. इन स्वयंसेवी संगठनों को मीडिया और लोगों का भरपूर समर्थन है और लोग आर्थिक मदद भी दे रहे हैं.

ट्रंप के आदेश के खिलाफ एसीएलयू ने मुकदमा किया तो चंद रोज के भीतर उसे 150 करोड़ रुपये का चंदा मिला. यह रकम चंदे की छोटी-छोटी राशियों के रुप में मिली. मैं जिस संगठन के लिए काम करता हूं, ठीक उसी की तरह एसीएलयू अपने सदस्यों से मासिक चंदा लेकर रकम जुटाता है.

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मुसलमानों के अमेरिका घुसने पर लगी तथाकथित रोक के खिलाफ गुस्से के कारण कई मशहूर हस्तियों ने भी एसीएलयू को मिल रहे लोगों के चंदे से कदमताल बनाये रखते हुए अपनी तरफ से चंदा दिया है.

मान लीजिए कि 200 लोगों ने एसीएलयू को 10 लाख रुपये का चंदा दिया तो मशहूर हस्तियों ने इसके मेल में अपनी तरफ से इस चंदे में 10 लाख रुपये और जोड़े और इस तरह एसीएलयू को 20 लाख रुपये हासिल हुए.

कुछ और लोगों ने सोचा कि क्यों ना एसीएलयू के फॉलोवर की तादाद ट्वीटर पर बढ़ायी जाय और फॉलोवर की तादाद 10 लाख तक पहुंच गई. एक हफ्ते के भीतर ट्वीटर पर एसीएलयू के दो लाख फॉलोवर बढ़े और जिस समय आप इन पंक्तियों को पढ़ रहे होंगे उस वक्त तक यह तादाद बढ़कर 10 लाख के पार जा सकती है.

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कई लोगों ने ट्रंप के फैसले की तुलना 1940 के विश्वयुद्ध के दौरान लिए गए फैसलों से की है

1940 से तुलना

बहुत से अमेरिकियों ने ट्रंप के फैसले को 1940 के दशक की घटना के बराबर माना. दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जापानियों ने हवाई के नौसैनिक ठिकाने पर्लहार्बर पर हमला बोला था. इसके तुरंत बाद जापानी मूल के हजारों नागरिकों को हाजिर होने का फरमान जारी हुआ और उन्हें भीतरघाती मानकर इंटरमेंट कैंप (युद्धकालीन बंदीगृह) में बंद कर दिया गया. हालांकि बाद में अमेरिका को अपने इस कदम के लिए शर्मिन्दगी उठानी पड़ी.

इतिहास में की गई गलतियों की याद और यह समझ होना कि सरकार हमेशा सही ही नहीं होती है, इसलिए जब सरकार व्यक्ति के अधिकारों पर चोट करती दिखे तो उसे चुनौती देनी चाहिए ये गुण ही अमेरिका को महान बनाती है. ‘अमेरिका को फिर से महान बनाकर दिखाऊंगा’ ऐसा कहने वाले ट्रंप ने शायद अपने देश की महानता की बुनियाद को नहीं समझा है.

अमेरिका की खुशनसीबी है कि वहां ‘हरेक अमेरिकावासी की हक की हिफाजत करने’ के लिए एसीएलयू और उस जैसे संगठन हैं. भारत में भी हमारे लिए ऐसे समूहों का होना जरुरी है. इन्हें सब तरफ से समर्थन मिलना चाहिए. सियासत और अदालती संस्थाओं का भी और समाज से भी ताकि, हम भी नागरिकों के अधिकारों की हिफाजत और कानून का पालन करने वाला मुल्क बन सकें.

कई हिन्दुस्तानियों को शायद इस बात का पता भी नहीं होगा कि 1962 के चीन-युद्ध के दौरान नेहरु ने चीनी नस्ल के हजारों नागरिकों को जेल में डाल दिया था. चीन से लड़ाई तो कुछ महीने चली लेकिन पकड़े गये लोगों को तकरीबन दो साल तक राजस्थान में बंदी बनाकर रखा गया. इन लोगों को कलकत्ता में इनके घर से जबर्दस्ती गिरफ्तार किया गया था. ये शर्म की बात है कि नेहरु के इस कदम के बारे में हमें ठीक-ठीक पता तक नहीं है.

आज भी, सबसे निरीह लोगों जैसे दलित, मुसलमान और आदिवासियों पर हमारा अत्याचार जारी है. वह दिन कितना अच्छा होगा जब हम दावे के साथ कह सकेंगे कि हमारे पास एसीएलयू जैसे लोकप्रिय और असरदार संगठन हैं.

एसीएलयू आखिर इसी कारण मजबूत है कि अमेरिकी उसके मूल्यों को अपना समर्थन देते हैं. किसी भारतीय को दूसरे भारतीय के साथ हो रहे बुरे बर्ताव से चोट लगे, जब हमें लगने लगे कि किसी दूसरे के साथ हो रही नाइंसाफी दरअसल, खुद हमारा निजी मामला है तभी हम भारत को महान बनाने की शुरुआत कर पायेंगे.

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