दुनिया की करीब 95 फीसदी आबादी प्रदूषित हवा में सांस लेने को मजबूर है. स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर रिपोर्ट के मुताबिक वायु प्रदूषण से सबसे ज्यादा गरीब लोग प्रभावित हैं और अधिक प्रदूषित देशों और कम प्रदूषित देशों के बीच वायु प्रदूषण का अंतर घटता जा रहा है. एक तरफ शहरों में रहने वाले अरबों लोग घर के बाहर प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं, तो दूसरी तरफ ग्रामीण इलाकों में घर के भीतर ठोस ईंधन जलाने से वायु प्रदूषण हो रहा है. इस रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के हर 3 में से 1 व्यक्ति घर के भीतर और बाहर दोनों जगह जहरीली हवा में सांस ले रहा है.
Cooking on open fires produces high levels of household (indoor) #AirPollution which include a wide range of health damaging pollutants such as fine particles & carbon monoxide.
Exposure is particularly high among #women & young children: https://t.co/qFWj4IstYk pic.twitter.com/Omb4jO6Cnm— WHO South-East Asia (@WHOSEARO) May 2, 2018
अमेरिका में हैल्थ इफैक्ट्स इंस्टीट्यूट के अनुसंधानकर्ताओं ने उपग्रह से प्राप्त नए डेटा का बारीकी से अध्ययन किया. इस डेटा के जरिए उन लोगों की संख्या का अनुमान लगाया गया जो डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) द्वारा वायु प्रदूषण के सुरक्षित माने जाने वाले स्तर से अधिक स्तर के प्रदूषण में सांस रहे हैं. इस रिपोर्ट के अनुसार हाई ब्लड प्रेशर, खान-पान संबंधी गड़बड़ी और धूम्रपान के बाद दुनियाभर में होने वाली मौतों के लिए जिम्मेदार वजहों में से वायु प्रदूषण चौथे नंबर पर पहुंच गया है.
डब्ल्यूएचओ के अनुसार दुनिया में वायु प्रदूषण से हर साल होने वाली 70 लाख मौतों में 24 लाख मौतें घरेलू और वातावरण के प्रदूषण की वजह से होती हैं.
हर साल होती हैं 70 लाख मौतें
रिपोर्ट के अनुसार हर साल 70 लाख लोग प्रदूषित वातावरण में मौजूद महीन कणों के संपर्क में आने की वजह से मारे जाते हैं. यह कण उनके फेफड़ों और कार्डियोवेस्कुलर सिस्टम में समा जाते हैं जिसके चलते दिल का दौरा, फेफड़े की बीमारियां और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां होती हैं.
इसमें यह भी कहा गया है कि प्रदूषण की वजह से 90 प्रतिशत से ज्यादा मौतें कम और मध्यम आय वाले देशों (जिनमें भारत भी शामिल है) में होते हैं. दुनिया भर में वायु प्रदूषण से होने वाली कुल मौतों में से करीब आधे भारत और चीन के लोग शामिल हैं. दुनिया की तकरीबन 3 अरब आबादी या 40 प्रतिशत से ज्यादा लोगों के पास साफ-सुथरे कुकिंग फ्यूल और तकनीक इस्तेमाल की सुविधा नहीं है, जो घर के भीतर होने वाले प्रदूषण की प्रमुख वजह है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रदूषण नॉन-कम्यूनिकेबल डिजिज (एनसीडी) का बड़ा कारण है. इसके कारण वयस्कों में 25 प्रतिशत दिल की बीमारी, 25 प्रतिशत दिल का दौरा, 43 प्रतिशत गंभीर सांस से संबंधित बीमारियां 29 प्रतिशत फेफड़े के कैंसर के मामले सामने आते हैं.
इस रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण से सबसे अधिक महिलाएं, छोटे बच्चे और बाहर काम करने वाले मजदूर प्रभावित हैं.
Children, Women and outdoor workers are most affected by #AirPollution.
We need clean #air for all!https://t.co/4qN1W3vSQS pic.twitter.com/FiHKuJluDb
— WHO South-East Asia (@WHOSEARO) May 2, 2018
#Children are particularly vulnerable to #AirPollution: - #Pneumonia is the leading cause of death in children under 5 - 11-14% of children aged 5 years & older currently report #asthma symptoms
Many of these diseases are related to indoor and outdoor air pollution. pic.twitter.com/H2OAwOmN4f— WHO South-East Asia (@WHOSEARO) May 2, 2018
(एजेंसी से इनपुट)
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