उत्तरी इराक में मोसुल की गलियां लगातार हो रहे बम धमाकों, गोलीबारी और अनजाने लोगों की लाशों से अटी पड़ी थीं. इसके बावजूद 32 साल के निशान सिंह की कंपनी ने उन्हें देश नहीं लौटने दिया. उन्हें वहीं रुककर काम करने के लिए मजबूर किया. निशान सिंह पंजाब के संगोआना गांव के रहने वाले थे.
निशान सिंह के छोटे भाई सरवन सिह ने फ़र्स्टपोस्ट को बताया, ‘मेरे बड़े भाई मोसुल से फोन करते थे. हमने उनसे वापस लौटने के लिए कहा लेकिन उन्होंने कहा कि उनकी कंपनी और 7 महीने काम करने का दबाव बना रही है. लिहाजा उनके लिए देश लौटना मुमकिन नहीं है.’
उन्होंने कहा, ‘2014 से हमारी कोई बात नहीं हो पाई और हम उनके वापस लौटने का इंतजार कर रहे हैं, जो अब कभी मुमिकन नहीं है. इतने साल तक इंतजार के बाद आज हमें पता चला है कि उनकी मौत हो चुकी है.’ सरवन सिंह 30 साल के हैं.
इराक में क्या करते थे निशान सिंह?
निशान सिंह क्रेन ऑपरेटर थे और 2011 से ही दुबई में काम कर रहे थे. 2013 में उनकी कंपनी ने उनके सामने दो विकल्प रखा. पहला वह भारत लौट जाएं क्योंकि दुबई में अब कोई काम नहीं बचा है. दूसरा ये कि वो इराक चले जाए. इराक की बद्तर हालत की वजह से निशान इराक जाने से हिचक रहे थे लेकिन मोटी सैलरी की वजह से वह मोसुल चले गए.
निशान सिंह सिर्फ एकबार 20,000 रुपए अपने मां-बाप को भेज पाए थे. उसके बाद उन्हें कोई सैलरी नहीं मिली. निशान सिंह की सैलरी 40,000 रुपए तय हुई थी. निशान सिंह का परिवार कई बार दिल्ली आया और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मिले. लेकिन उन्हें हर बार सिर्फ आश्वासन मिला.
अपने आंसुओं को रोकने में नाकाम सरवन ने कहा, ‘मेरे भाई ने कहा था कि उनकी कंपनी ने कभी उतनी सैलरी नहीं दी, जितना वादा किया था. उन्हें जो कुछ भी मिलता था खाने पर खर्च हो जाता था. वह मोसुल में बड़ी बुरी हालत में रहते थे. एक आदमी जिसे पंजाब में कोई रोजगार नहीं मिला. उसे काम की तलाश में दुबई और मिडिल ईस्ट जाना पड़ा, जहां से वह कभी नहीं लौट पाया.’
निशान के चचेरे भाई चरणजीत सिंह ने कहा, ‘हमने सषमा स्वराज से मुलाकात की और अपने भाई और दूसरे भारतीयों की सुरक्षित वापसी की बात कही. निशान की नई-नई शादी हुई थी. लेकिन उनकी पत्नी इंतजार नहीं कर पाई और पिछले साल अलग हो गई. उसने दूसरी शादी कर ली है.’ निशान सिंह के घर में उनके बूढ़े मां-बाप, सरवन सिंह, उनकी पत्नी और बेटा है.
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