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डेटा नहीं आपको बेचते हैं फेसबुक-गूगल, ऐसे होती है नीलामी

फेसबुक आपके डेटा को सिर्फ विज्ञापनों तक नहीं रोकता है, खतरनाक हद तक इस्तेमाल करता है

Updated On: Mar 23, 2018 05:49 PM IST

Animesh Mukharjee Animesh Mukharjee

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डेटा नहीं आपको बेचते हैं फेसबुक-गूगल, ऐसे होती है नीलामी

फेसबुक डेटा लीक के बाद फेसबुक पर ही तमाम तरह के मीम्स और चुटकुले चल रहे हैं. कैंब्रिज एनालिटिका ने फेसबुक यूजर्स का डेटा चुराया. इसकी मदद से डोनाल्ड ट्रंप जीते. व्हॉट्सऐप के संस्थापक ने कहा कि फेसबुक अकाउंट डिलीट करने का समय आ गया है. मगर लोग कह रहे हैं कि हमारा डेटा चुराकर कंपनियां क्या कर लेंगी. मसलन आप अगर फेसबुक पर केवल फोटो बदलते हैं, हंसी-मजाक करते हैं तो उससे क्या? ये पूंछ पकड़कर हाथी को झाड़ू जैसा बताना है. एक बात समझिए आपका डेटा नहीं चुराया जा रहा, आप वो डेटा हैं जिसे चुराया जा रहा है.

फेसबुक आपको बेचता है

आप गूगल पर कुछ भी तलाशते सकते हैं. आपको रास्ता बताया जाता है. फेसबुक पर आप तस्वीरें पोस्ट करते हैं. लोग आपके विचार पढ़कर लाइक करते हैं. आप छोटे मोटे सेलेब्रिटी बन जाते हैं. और ये सब सुविधाएं मुफ्त में हैं. तो फिर फेसबुक और गूगल जैसी कंपनियों की कमाई कैसे होती है? इस मूल सवाल के जवाब में जाएंगे तो पूरा मामला समझ आ जाएगा.

गूगल और फेसबुक जैसी कंपनियां अपने एंप्लॉइज़ को कई-कई करोड़ की तनख्वाह देती हैं. हर हफ्ते की दर से छोटी-मोटी कंपनियों को खरीदती हैं. ये कमाई उन विज्ञापनों से नहीं हो सकती जो आपको सर्फिंग करते वक्त दिखाई देते हैं. दरअसल आप और हम वो कच्चा माल हैं जिसे ट्विटर और फेसबुक बेचता हैं.

ये होता कैसे है

आप जितना ज्यादा सोशल मीडिया पर ऐक्टिव रहते हैं उतना आप का 'डिजिटल फुटप्रिंट' गहरा होता जाता है. आप क्या सोचते हैं. आपकी कमाई कितनी है. आपके खर्च कितने हैं. आपके बारे में गूगल और फेसबुक आपके मां-बाप से ज्यादा जानता है. और इस डेटा को अलग-अलग कंपनियों और संगठनों को बेचता है. दुनिया के बड़े-बड़े उद्योगपति कहते हैं, 'डेटा इज़ द न्यू ऑयल.' यानि डेटा नए जमाने का तेल का कुंआ है.

और खतरनाक है स्थिति

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आपको सरकार की आर्थिक नीतियों से समस्या हो लेकिन आपको उसकी धर्म की राजनीति पसंद हो. आप इससे जुड़े हुए पोस्ट लाइक, शेयर करते हैं, उनपर दिल बनाते हैं. अब सरकार के ठेके पर कंपनी आपको ऐसे पोस्ट दिखाएगी जिससे लगेगा कि आपके धर्म पर खतरा है, अत्याचार हो रहा है. आपको यदि बचना है तो इसी पार्टी को वोट दें. आप देंगे, कुछ लोग पैसे के दम पर करोड़ों लोगों को चलाएंगे. जबकी वास्तविक स्थिति किसी और तरह से खराब होगी.

अमेरिका में ऐसा ही हुआ. कहा गया कि अमेरिका को फिर से महान बनाना है. बंदूक रखना अमेरिका में पिता से पुत्र को ट्रांसफर की गई विरासत है. लोगों ने माना और ट्रंप को चुनाव जितवा दिया.

भारत में स्थित और खराब हो सकती है. मान लीजिए ये कंपनी डेटा के आधार पर किसी पार्टी से कहे कि अगर देश में 4-5 जगहों पर दंगे हो जाएं तो उसकी सरकार बनेगी. प्लांट किया हुआ दंगा भी हो सकता है और उससे जुड़ी हुई खबरें भी चलेंगी. ये सब हकीकत से परे होगा. लेकिन आपको लगेगा कि यही जरूरी है. ऐसा ही होना चाहिए. कई ऐसे मामले हैं जहां ये खेल आजमाया जा चुका है.

इससे आपको क्या नुकसान है

आपने अमेज़न पर नया मोबाइल फोन तलाशा और आपको अपने फोन में हर जगह फोन के विज्ञापन दिखने लगे. इससे नुकसान क्या है? बात इतनी भर नहीं है.

एक काल्पनिक सी लगने वाली स्थिति के बारे में सोचिए. आपने फेसबुक पर डाला कि आपके बेटी हुई, आपने उसकी कई सारी तस्वीरें भी पोस्ट की. फेसबुक ने ये डेटा ऐसी कंपनी को बेचा जो बच्चों के स्वास्थ्य से जुड़ी है. अब आपकी फीड में ऐसे लेख, पोस्ट और स्पॉन्सर्ड लिंक दिखाए जाएंगे कि अपने बच्चे को एक्सवाई टाईप का 25,000 रुपए का इंजेक्शन नहीं लगवाया तो उसे एक दुर्लभ बीमारी हो सकती है. जहां कई लोग व्हॉट्सऐप की खबरों पर यकीन कर लेते हैं. कमेंट में 5 लिखकर चमत्कार होने का इंतजार कर सकते हैं, वहां ऐसे लेख पर विश्वास करके आप ये वैक्सीन भी खरीद सकते हैं.

जिस वैक्सीन की आपके देश में कोई जरूरत न हो उसकी मांग पैदा की जा सकती है. हो सकता है कि इससे आपके बच्चे को नुक्सान हो. हो सकता है कि ये किसी बड़ी कंपनी का इंसानी बच्चों पर वैक्सीन टेस्ट करने का प्रोजेक्ट हो. और इस ग्यान का आधार कुछ नहीं होगा. अगर आपको ये कोरी कल्पना लगती है तो आरओ प्यूरिफायर का केस देखिए.

ज्यादातर रिपोर्ट्स बताती हैं कि आरओ का पानी आपको फायदा पहुंचाने से ज्यादा नुक्सान पहुंचाता है. उसके सारे मिनिरल खत्म हो जाते हैं. और आपके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता खत्म हो जाती है. लगातार आरओ का पानी इस्तेमाल करने वाले सामान्य साफ पानी पीकर बीमार पड़ जाते हैं. जबकि अगर आपके पानी में फ्लोराइड और आर्सेनिक की अशुद्धि नहीं हो तो आरओ की कोई जरूरत नहीं.

इसके बावजूद आप आरओ इस्तेमाल करते हैं, क्यों? क्योंकि एक कंपनी के सेल्समैन ने आपसे इसे इस्तेमाल करने के लिए कहा. सामान्य सेल्समैन को आप मना कर सकते हैं. जबकि आप अपनी जेब में एक चलता फिरता बिग बॉस लेकर घूम रहे हैं.

हम सब त्रासदी के पात्र हैं

गोस्वामी तुलसीदास की पंक्ति है कि जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिय तैसी. फेसबुक वही है. आप नारीवादी हैं. आपको लगता है कि सारे पुरुष वहशी हैं. बलात्कारी हैं. आप ऐसे लेख, पोस्ट शेयर करते/करती हैं. फेसबुक आपको ऐसे लोगों से जोड़ेगा जिनकी ऐसी ही सोच हो. आप ऐसे लोगों पर कमेंट करेंगे. ऐसी ही पोस्ट आपकी फीड में आएंगी.

FACEBOOK, YOUTUBE, SOCIAL MEDIA

धीरे-धीरे आपको विश्वास हो जाएगा कि दुनिया भर के पुरुष खराब हैं. फेसबुक अपने विज्ञापनों में फेमिनिस्ट छपा हुआ झोला तो बेचेगा ही साथ ही आपकी विचारधारा तय कर देगा. ऐसे लोग कल को टीचर बनेंगे. प्रोफेसर बनकर क्लास में पढ़ाएंगे और अगली पीढ़ी को यही विचारधारा विरासत में देंगे. फेसबुक के लिए अगली पीढ़ी पर कब्जा करना और आसान होगा.

इसी तरह आपको लगता है कि सारी शहरी महिलाएं शराब पीती हैं, सब 'चरित्रहीन' हैं. वही फेसबुक आपको कुछ और दिखाएगा. आपको सख्त लड़का बने रहने वाली टीशर्ट बेचेगा. इसके साथ ही बताएगा कि पूरा नारीवादी आंदोलन बेकार है. आप कमेंट करेंगे, शेयर करेंगे और लड़ेंगे. बिल्लियों के झगड़े में समाज का बंदरबांट होगा. खतरनाक बात है कि ऐसे ओपिनियन वाले लोग अगर ज्यादा पॉपुलर होते हैं तो उन्हें तमाम डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उन्हें बतौर विचारक बुलाया जाता है.

क्या आपको भी लगता है कि फेसबुक पर हर कोई प्रिया प्रकाश पर लिख रहा है, हर कोई जयपुर की बात कर रहा है. हर कोई विराट अनुष्का पर ही पोस्ट कर रहा है. आप गलत हैं. आपकी टाइमलाइन पर ऊपर से नीचे ये सब दिखने का मतलब है कि आपकी सोच, रुचि, इसी तरह की है. आप 1 महीना अपनी विचारधारा से ठीक उल्टा कमेंट कीजिए. वैसे लिंक तलाश के देखिए, शेयर करिए. आपको दुनिया बिलकुल दूसरी तरह से दिखेगी.

फेसबुक पर क्रांति करना एक भ्रम है. हम सब (जिसमें पढ़ने और लिखने वाला दोनों शामिल हैं) अपने आपको अलग-अलग दुकानदारों को बेच रहे हैं. इसके बदले में छोटे-मोटे फायदे भी होते हैं. लेकिन कुल मिलाकर इसे छोड़ना भी संभव नहीं है.

इसीलिए कोशिश करके निजी सफलताओं, खुशियों और उपलब्धियों को अनजान लोगों से शेयर करना छोड़िए, आप 70 की उम्र में कैसे दिखेंगे, देखना छोड़िए. अगर पेंटर, फोटोग्राफर, लेखक बनना है तो पहले फेसबुक के बाहर बनिए, संभव है कि आप डेटा के चाबुक से भेंड़ की तरह से कम हांके जाए.

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