आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं कि जैसे-जैसे कैश का फ्लो बढ़ रहा है, वैसे-वैसे डिजिटल लेनदेन की संख्या में गिरावट आ रही है.
पिछले साल नवंबर में 500 रुपये और 1000 रुपयों का विमुद्रीकरण सही मायने में अर्थव्यवस्था से काले धन को बाहर ले आने और भारत को डिजिटल लेनदेन के दौर में दाखिल कराने के लिए एक उठाया गया कदम था. जब सफलता पहले ही संदिग्ध हो, तो आने वाले दिनों के बारे में क्या कहा जा सकता है?
यह पता लगाने के लिए कि भारत के लोगों और देश में नकदी प्रवाह की प्रणाली पर इसका कितना असर पड़ा है, हमने देश में कैशलेस लेनदेन को लेकर आरबीआई द्वारा पेश किये गए आंकड़ों का विश्लेषण किया.
इस आंकड़े में निम्नलिखित तथ्य शामिल हैं:
- अक्टूबर 2014 से फरवरी 2017 की अवधि में पॉइंट ऑन सेल (POS) मशीनों पर क्रेडिट कार्ड (सीसी) और डेबिट कार्ड (डीसी) के माध्यम से कितना लेनदेन हुआ
- अक्टूबर 2014 से फरवरी 2017 की अवधि में पॉइंट ऑन सेल (POS) मशीनों पर क्रेडिट कार्ड (सीसी) और डेबिट कार्ड (डीसी) के माध्यम से कितने का लेनदेन हुआ
- दिसंबर 2016 से फरवरी 2017 तक भीम ऐप के माध्यम से कुल लेनदेन की राशि.
- अगस्त 2016 से फरवरी 2017 के बीच यूपीआई के माध्यम से लेनदेन की कुल राशि
एटीएम पर किए गए लेनदेन को नजरअंदाज किया गया था क्योंकि यहां केवल नकदी लेनदेन ही होता है
नवंबर में नोटों के नोटबंदी के साथ डिजिटल वॉलेट सेवाओं की लोकप्रियता में संक्षिप्त लेकिन जबरदस्त वृद्धि देखी गई. पेटीएम और फ्रीचार्ज जैसी वॉलेट सेवाओं के अनुसार नोटबंदी के बाद के महीने में इन सेवाओं के माध्यम से होने वाला लेनदेन आम तौर पर पूरे साल के बराबर था.
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विभिन्न रिपोर्टों से पता चलता है कि पेटीएम और फ्रीचार्ज के इस्तेमाल से लेनदेन की संख्या में 1500 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई. हालांकि इन ऐप के द्वारा किए गए लेनदेन की संख्या पर कोई ठोस आंकड़ा तो उपलब्ध नहीं है, लेकिन उनके उपयोग में अब साफ तौर पर गिरावट आई है.
जनवरी में पेटीएम से लेनदेन करने वाले उपयोगकर्ताओं की संख्या 130 मिलियन से 190 मिलियन तक हो गई, लेकिन फरवरी में इसमें बढ़ोतरी बेहद मामूली रही, क्योंकि उपयोगकर्ताओं की संख्या 190 मिलियन से बढ़कर 200 मिलियन तक ही पहुंची.
कोई शक नहीं कि इसमें अब भी बढ़ोतरी तो हो रही है, लेकिन इस बढ़ोतरी की दर में गिरावट आ रही है.
बैंकों के अनुसार 2016 के नवंबर-दिसंबर के महीनों में खास रूप से छोटी मात्रा में सीसी और डीसी लेनदेन में बढ़ोतरी हुई. यह महत्वपूर्ण था, क्योंकि इसका मतलब था कि लोग लेनदेन के लिए अपने कार्ड का उपयोग कर रहे थे, जो परंपरागत रूप से कैश इस्तेमाल करते थे. इनमें दैनिक किराने के सामान, भोजन आदि शामिल हो सकते हैं.
अक्तूबर 2014 से मार्च 2016 की अवधि में सीसी/डीसी लेनदेन की संख्या 100 मिलियन से बढ़कर 200 मिलियन हो गई. इसे दो साल की अवधि के लिए विकास की खराब दर नहीं कहा जा सकता है. हालांकि मार्च 2016 से नवंबर 2016 की अवधि के दौरान ये संख्या 200 मिलियन से बढ़कर 300 मिलियन तक जा पहुंची.
नोटबंदी के बाद (नवंबर 2016 में) ये संख्या लगभग 300 मिलियन से बढ़कर 500 मिलियन तक जा पहुंची. कहा जा सकता है कि हालात पहले से और बेहतर हुए.
दिसंबर के बाद हालांकि कैश की स्थिति बेहतर होने के कारण लेनदेन की कुल संख्या 500 मिलियन से गिरकर करीब 350 मिलियन हो गई. गिरावट की ये दर अक्टूबर से दिसंबर 2016 तक के लेनदेन में हुई वृद्धि की दर की तरह बहुत बड़ी तो नहीं थी, लेकिन सीसी/डीसी के उपयोग में आयी गिरावट की प्रवृत्ति बहुत स्पष्ट है. जिस दर पर सीसी/डीसी का इस्तेमाल गिर रहा है, उसे हमें 3 महीने के भीतर पूर्व नोटबंदी के स्तर तक पहुंचाना चाहिए.
सीसी/ डीसी के माध्यम से कितने पैसे का लेनदेन हुआ, इसका ग्राफ देखते हुए लगता है कि वही प्रवृत्ति यहां भी जारी है. दिसंबर 2016 के बाद से कुल लेनदेन की राशि में लगातार गिरावट आई है.
हालांकि ऐसा लग सकता है कि नोटबंदी अपने दोनों अपेक्षित लक्ष्यों को हासिल करने में असफल रहा है. ऐसे में संकटमोचक के रूप में यूपीआई और भीम ऐप सामने आए हैं.
लेनदेन के लिए भीम और यूपीआई दोनों पर नज़र डालने पर साफ हो जाता है कि इन सेवाओं का उपयोग लगातार बढ़ रहा है. बताया गया है कि सीसी/डीसी के माध्यम से लेनदेन की राशि का हज़ारवां हिस्सा भीम के माध्यम से किया गया. इसी तरह यूपीआई के माध्यम से लेन-देन की गई राशि सीसी/डीसी लेनदेन की राशि का सौवां भाग है.
दुर्भाग्यवश, यूपीआई और भीम के जरिए लेनदेन की अपेक्षाकृत कम मात्रा को देखते हुए अभी यह बहस करना मुश्किल है कि ये सेवाएं सफल चुकी हैं. इन सेवाओं का उपयोग बढ़ रहा है, लेकिन यह अभी बहुत पीछे हैं और यह कार्ड से लेनदेन के साथ टक्कर नहीं ले सकतीं.
यूपीआई और भीम को लेनदेन के व्यवहार में व्यापक स्वीकृति प्राप्त करने से पहले एक लंबा रास्ता तय करना अभी भी बाक़ी है. इस आंकड़े से हम अच्छी तरह ये निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि नोटबंदी ने लोगों के लेनदेन के उन तरीकों पर तो प्रभाव डाला ही है, जैसा कि वो पहले से करते आ रहे थे, लेकिन पिछले तीन महीनों के रुझान को देखते हुए ऐसा लगता है कि यह अस्थायी है.
हम अभी भी मार्च 2017 के आंकड़ों का इंतजार कर रहे हैं और फिर उसके अनुसार ही हम अपने ग्राफ को अपडेट करेंगे.
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