हो सकता है कि हमारा चांद कभी एलियंस का घर रहा हो. नई रिसर्च इसी ओर इशारा कर रही है. वैज्ञानिकों का सोचना है कि उल्का पिंडों के ब्लास्ट के बाद हो सकता है कि आज से अरबों साल पहले चांद पर एलियंस रहते हों.
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, दो प्लेनेटरी रिसर्चर्स को अपनी रिसर्च में पता चला है कि 400 करोड़ साल पहले चांद पर ऐसी परिस्थितियां थीं, जिनमें जीवन का विकास हो सकता था. ऐसी ही परिस्थितियां साढ़े तीन करोड़ साल पहले भी एक ज्वालामुखी के सक्रिय होने के दौरान भी उत्पन्न हुई थीं.
इस वक्त चांद पर बहुत सी गैसें और भाप था. इन गैसों से सतह पर तरल पानी बना होगा. साथ ही ऐसा वातावरण बना होगा जिससे ये परिस्थितियां बनी रहें.
ये रिसर्च कर रहे वॉशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी के एस्ट्रोबायोलॉजिस्ट डर्क शुल्ज ने कहा, 'अगर चांद पर एक लंबे वक्त तक तरल पानी और ऐसा वातावरण रहा होगा तो हम समझते हैं कि चांद के सतह पर थोड़े समय के लिए ही सही लेकिन जीवन संभव रहा होगा.' इस रिसर्च में उनके सहयोगी रहे यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन के प्लेनेटरी साइंस एंड एस्ट्रोबायोलॉजी के प्रोफेसर इयन क्रॉफर्ड.
रिसर्च बताती हैं कि उस वक्त चांद एक चुंबकीय क्षेत्र से घिरा हुआ था, जो इस पर रह रहे जीवों को अंतरिक्ष के खतरनाक चक्रवातों से बचाता. पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत साइनोबैक्टीरिया के रूप में साढ़े तीन सौ करोड़ के आस-पास की मानी जाती है. इस वक्त सोलर सिस्टम में उल्का पिंडों के विस्फोट और ऐसी घटनाएं आम थीं, ऐसे में ये संभव है कि विस्फोटों के साथ ही जीवन चांद तक पहुंचा हो.
डॉ. शुल्ज ने कहा कि 'इस बात की काफी संभावना लगती है कि चांद उस वक्त रहने लायक हो. हो सकता है कि उसके तरल पानी में माइक्रोब्स हों.'
इस रिसर्च के बाद वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि ये अनुमान नासा और दूसरी स्पेस एजेंसियों को चांद पर और गहराई से खोज के लिए प्रोग्राम बनाने को प्रोत्साहित करेंगे.
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