इस महीने की 31 तारीख को चंद्रमा का एक अनूठा रूप देखने को मिलेगा, जिसे खगोल वैज्ञानिक अंग्रेजी में ‘सुपर ब्लू मून’ कहते हैं.
एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी ऑफ इंडिया की पब्लिक आउटरीच कमेटी के अध्यक्ष नीरूज मोहन के अनुसार 'ग्रेगोरियन कैलेंडर के एक ही महीने में जब दो बार पूर्णिमा पड़े तो सुपर ब्लू मून होने की संभावना रहती है. पूर्ण चंद्रग्रहण, सुपर मून और ब्लू मून समेत तीन खगोलीय घटनाओं को समन्वित रूप से ‘सुपर ब्लू मून’ कहा जाता है.'
अपनी कक्षा में चक्कर लगाते हुए एक समय ऐसा आता है जब पूर्णिमा के दिन चंद्रमा धरती के सबसे करीब होता है. ऐसे में चांद का आकार बड़ा और रंग काफी चमकदार दिखाई पड़ता है. उस दौरान चंद्रमा के बड़े आकार के कारण उसे ‘सुपर मून’ की संज्ञा दी जाती है.
ग्रेगोरियन कैलेंडर के एक ही महीने में दूसरी बार ‘सुपर मून’ पड़े तो उसे ‘ब्लू मून’ कहा जाता है. हालांकि इसका संबंध चंद्रमा के रंग से बिल्कुल नहीं है. वास्तव में पाश्चात्य देशों में ‘ब्लू’ को विशिष्टता का पर्याय माना गया है. चांद के विशिष्ट रूप के कारण ही उसे यहां ‘ब्लू’ संज्ञा दी गई है. ब्लू मून के दिन चंद्र ग्रहण भी हो तो इसे ‘सुपर ब्लू मून ग्रहण’ कहते हैं.
31 जनवरी को भारतीय समय के अनुसार छह बजकर 22 मिनट से सात बजकर 38 मिनट के बीच धरती इस खगोलीय घटना का गवाह बनेगी. यह 2018 का पहला ग्रहण होगा. इसका संयोग दुर्लभ होता है और कई वर्षों के अंतराल पर यह घटनाक्रम देखने को मिलता है. विज्ञान-प्रेमियों के लिए यह दिन बेहद खास होता है क्योंकि उन्हें चांद के खास स्वरूप को देखने की उत्सुकता रहती है.
पुणे के इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी ऐंड एस्ट्रोफिजिक्स से जुड़े खगोल वैज्ञानिक समीर धुर्डे के अनुसार 'सुपर मून के दिन चंद्रमा सामान्य से 14 प्रतिशत बड़ा और 30 प्रतिशत अधिक चमकदार दिखाई पड़ेगा. हालांकि, नंगी आंखों से इस अंतर का अंदाजा लगा पाना आसान नहीं है.'
खगोल वैज्ञानिकों के अनुसार यह एक सामान्य खगोलीय घटना है. पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए चंद्रमा अपना एक चक्कर 27.3 दिन में पूरा करता है. लेकिन दो क्रमागत पूर्णिमाओं के बीच 29.5 दिनों का अंतर होता है. दो पूर्णिमाओं के बीच यह अंतर होने का कारण चंद्रमा की कक्षा का अंडाकार या दीर्घ-वृत्ताकार होना है. एक महीने में आमतौर पर 28, 30 या फिर 31 दिन होते हैं. ऐसे में एक ही महीने में दो बार पूर्णिमा होने की संभावना भी कम ही होती है. इसलिए सुपर मून भी कई वर्षों के बाद होता है.
ऐसे दिखेगा चांद
इस घटनाक्रम की एक विशेषता यह भी है कि चंद्रग्रहण के बावजूद चांद पूरी तरह काला दिखाई देने के बजाए तांबे के रंग जैसा दिखाई पड़ेगा. डॉ समीर के मुताबिक 'इसमें धरती के उस पारदर्शी वातावरण की भूमिका होती है. चंद्रग्रहण के दौरान सूर्य और चांद के बीच में धरती के होने से चांद पर प्रकाश नहीं पहुंच पाता. इस दौरान सूर्य के प्रकाश में मौजूद विभिन्न रंग इस पारदर्शी वातावरण में बिखर जाते हैं, जबकि लाल रंग पूरी तरह बिखर नहीं पाता और चांद तक पहुंच जाता है. ब्लू मून के दौरान इसी लाल रंग के कारण चांद का रंग तांबे जैसा दिखाई पड़ता है.'
पारंपरिक भारतीय कैलेंडर आमतौर पर चांद की स्थिति पर आधारित हैं. हिंदू, इस्लामिक और तिब्बती कैलेंडरों में भी महीने में एक से अधिक पूर्णिमा नहीं हो सकती क्योंकि इन कैलेंडरों के मुताबिक महीने का आरंभ और अंत अमावस्या या फिर पूर्णिमा से होता है. इसलिए ब्लू मून का संबंध किसी खगोलीय घटना के बजाय सांस्कृतिक मान्यता से अधिक माना जाता है.
इसमें भी भ्रम है कि पिछली बार ‘ब्लू मून’ 30 दिसंबर 1982 को दिखाई पड़ा था या फिर 31 मार्च 1866 को. वैज्ञानिकों के अनुसार इन दोनों ही तारीखों पर ब्लू मून दिखाई पड़ा था. लेकिन भारत समेत विश्व के कई अन्य देशों में ब्लू मून पिछली बार 30 दिसंबर 1982 को दिखाई दिया था. वहीं, 31 मार्च 1866 को अमेरिका समेत विश्व के अन्य हिस्सों में ब्लू मून दिखा था. इस भ्रम के पैदा होने का कारण दोनों देशों के मानक समय में अंतर होना है.
पिछली बार एक ब्लू मून ग्रहण 30 दिसंबर, 1982 को पड़ा था, जो भारत के पूर्वी भाग में दिखाई दे रहा था. 1 दिसंबर और 30 दिसंबर, 1982 दोनों ही पूर्णिमा के दिन थे, जिसमें से दूसरी पूर्णिमा को ब्लू मून कहा गया. हालांकि, अमेरिकी टाइम जोन के अनुसार पूर्णिमा 1 दिसंबर के बजाय 30 नवंबर, 1982 को थी. इसलिए उसे अमेरिका में ब्लू मून नहीं माना गया था. यही कारण है कि अमेरिकी मीडिया में प्रचारित किया जा रहा है कि इस बार 152 साल बाद ब्लू मून दिखेगा. अगली बार ब्लू मून 31 दिसंबर, 2028 को पड़ने वाला है.
(इंडिया साइंस वायर के लिए डॉ टी.वी. वेंकटेश्वरन की रिपोर्ट)
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