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भारतीय हॉकी में कोच आया, कोच गया की कहानी (पार्ट 1) : 17 साल में कौन आया, क्यों आया और क्यों गया

नई कहानी हरेंद्र सिंह की है. श्योर्ड मरीन्ये की जगह उन्हें पुरुष हॉकी टीम की कमान सौंपी गई थी, लेकिन अब उनको भी चलता कर दिया गया है

Updated On: Jan 10, 2019 06:57 PM IST

Shailesh Chaturvedi Shailesh Chaturvedi

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भारतीय हॉकी में कोच आया, कोच गया की कहानी (पार्ट 1) : 17 साल में कौन आया, क्यों आया और क्यों गया

भारतीय हॉकी में कोच का आना और जाना सतत प्रक्रिया जैसा है. बाकी कुछ भी बदल जाए. लेकिन कोच बदले जाने की दास्तान नहीं बदलती. 2017 में जब  रोलंट ओल्टमंस को हटाया गया, तो सवाल उठे कि यह सही फैसला है या गलत. उसके बाद से अब तक दो कोच और हटाए जा चुके हैं. किसी के जाने पर सवाल पूछा जाता है. किसी के आने पर. लेकिन इन सवालों के जवाब मिलने से पहले ही कोच चला जाता है. नई कहानी हरेंद्र सिंह की है.

ओल्टमंस ने जाते हुए कहा था कि भारतीय सिस्टम में काम करना आसान नहीं है. ऐसा ज्यादातर विदेशी कोच कहकर गए हैं. मरीन्ये अगर कहना भी चाहते होंगे, तो अभी नहीं कहेंगे, क्योंकि उन्हें पुरुष टीम से हटाकर महिला टीम का कोच बनाया गया था और वहां वो अब तक टिके हुए हैं. भारतीय हॉकी कोच या खिलाड़ियों को हटाए जाने की कहानियों से भरी पड़ी है. हम आपको बता रहे हैं कि पिछले डेढ़ दशक या यूं कहें कि 17 साल में में कौन भारतीय हॉकी टीम का कोच बना और उन्हें किस तरह हटाया गया.

हमारी लिस्ट में कुछ ऐसे नाम नहीं हैं, जो कुछ महीनों के लिए कोच बने. इनमें अजय कुमार बंसल, क्लेरेंस लोबो और जगबीर सिंह शामिल हैं. हरेंद्र सिंह का नाम भी एक बार हैं, क्योंकि इससे पहले वो महज एक टूर्नामेंट के लिए कोच बने थे. रिक चार्ल्सवर्थ का नाम भी शामिल नहीं कर रहे हैं, जो कोच के तौर पर नहीं आए थे. हम 2002 से शुरू कर रहे हैं. ये वो समय था, जब सेड्रिक डिसूजा कोच थे. उन्हें विश्व कप के बीच से ही हटा दिया गया था. उसके बाद अप्रैल में राजिंदर सिंह सीनियर कोच बने थे. इसके बाद बार-बार कोच बदले गए हैं. बीच कुल 17 कोच बने हैं. यानी 17 साल में 17 कोच. लेकिन एक-एक टूर्नामेंट के लिए आए स्टॉप गैप कोच को इस लिस्ट से अलग रखते हुए उनके आने और जाने की वजह जानते हैं, जो ज्यादा समय तक रहे. ऐसे 12 कोच हैं.
 

राजिंदर सिंह सीनियर

2001 की जूनियर वर्ल्ड कप विजेता टीम के कोच राजिंदर सिंह सीनियर को सीनियर टीम की कमान सौंपी गई. उस टीम ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया. धनराज पिल्लै, बलजीत सिंह ढिल्लों जैसे सीनियर खिलाड़ियों के साथ गगन अजीत सिंह, जुगराज सिंह, प्रभजोत सिंह, दीपक ठाकुर, अर्जुन हलप्पा जैसे युवा खिलाड़ी थे. जब ऐसा लग रहा था कि भारतीय टीम सही रास्ते पर है. उस समय राजिंदर सिंह को हटा दिया गया. वो भी 2004 एथेंस ओलिंपिक से करीब एक महीना पहले.

हटाए जाने का कारण

उस वक्त हॉकी इंडिया नहीं, भारतीय हॉकी फेडरेशन यानी आईएचएफ था. तब आईएचएफ अध्यक्ष केपीएस गिल ने कोई आधिकारिक वजह नहीं बताई थी. उन्होंने कई बार सवाल पूछे जाने पर तमतमाते हुए कहा था कि मैं किसी ऐसे को कोच नहीं बना सकता, जो देश के साथ खिलवाड़ करे. बाद में बताया गया कि राजिंदर सिंह सीनियर एक विदेश दौरे पर कुछ ऐसे लोगों के घर डिनर पर गए थे, जिन्हें खालिस्तानी समर्थक माना जाता था. गिल उससे नाराज थे. हालांकि राजिंदर सीनियर इन आरोपों को लगातार नकारते रहे.

गेरहार्ड राख

जर्मनी के गेरहार्ड राख को अचानक भारतीय हॉकी टीम का कोच बना दिया गया था. एथेंस ओलिंपिक में उनके रवैये को लेकर तमाम खिलाड़ी नाराज थे. इनमें धनराज पिल्लै प्रमुख थे. धनराज को उनके आखिरी ओलिंपिक मैच में ठीक से खेलने का मौका भी नहीं दिया गया. राख बुरी तरह फेल हुए. वो लगातार कहते हैं कि उन्होंने हटने का फैसला किया. लेकिन कहा यही जाता है कि आईएचएफ अध्यक्ष केपीएस गिल उनसे इस कदर नाराज थे कि उन्होंने दिल्ली के तालकटोरा रोड के अपने घर में राख को घुसने नहीं दिया था. उन्हें बताए बगैर जगबीर सिंह की कोचिंग में भारतीय टीम फ्रांस के साथ टेस्ट सीरीज खेली.

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एक टीवी चैनल ने बड़े पैसे देकर राख को कुछ धमाकेदार बोलने के लिए बुलाया. राख बोले भी. उन्होंने भारतीय हॉकी को ‘बिग मैड हाउस’ कहा. यह अलग बात है कि हटाए जाने के बाद राख लगातार भारतीय हॉकी के अधिकारियों और पत्रकारों को फोन करके मिन्नतें करते रहे कि उनकी वापसी के लिए कुछ मदद करें.

राजिंदर सिंह जूनियर

2005 की शुरुआत में राजिंदर सिंह जूनियर को कोच बनाया गया. घरेलू हॉकी में उनका बड़ा योगदान था. वो पीएसबी के कोच थे, जो नेशनल चैंपियन थी. राजिंदर सिंह ने पहला काम किया कि मीडिया से बात करना कम कर दिया. बेहद मिलनसार राजिंदर जूनियर मीडिया से भागने लगे. लेकिन इसके बावजूद उनका कार्यकाल लंबा नहीं हो सका. रिजल्ट अच्छे थे नहीं. वो करीब एक साल कोच रहे. मार्च, 2006 में उन्हें हटा दिया गया. उन्होंने हटाए जाने के लिए आईएचएफ सेक्रेटरी ज्योतिकुमारन को दोषी करार दिया. उनके ‘तानाशाही रवैये’ से राजिंदर नाराज थे. कहा जाता है कि दोनों के बीच एक सीरीज के दौरान काफी जोरदार झगड़ा हुआ था.

वासुदेवन भास्करन

केपीएस गिल के कार्यकाल मे वासुदेवन भास्करन को आने और जाने के लिए जाना जाता है. वो बार-बार कोच बने. बार-बार फेल हुए. बार-बार हटाए गए. हर बार कड़वाहट के साथ हटे. उसके बावजूद वापस आए. करीब एक साल कोच रहे. उस दौरान एशियाड भी थे. आते ही उन्होंने एशियाड की टीम से कप्तान विरेन रस्किन्हा को हटाकर गुरबाज सिंह को टीम में ले लिया. पहली बार भारतीय टीम एशियाड से बगैर पदक जीते लौटी. भास्करन का हश्र वही हुआ, जो हर बार होता था. उन्हें हटा दिया गया. 2007 के पहले क्वार्टर तक ही वो कोच रहे.

(इसके बाद कौन कोच आए और गएउनकी कहानी दूसरे पार्ट में)

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