22 अगस्त की सुबह थी. साल था 2006. सुबह एक फोन कॉल से नींद खुली. एक टीवी पत्रकार का फोन था. सवाल था – किसी हॉकी प्लेयर को गोली लग गई है क्या? नींद खुलते ही ऐसे सवाल की उम्मीद आप नहीं करते. न ही, किसी खिलाड़ी को गोली लगना इतना आम है. हॉकी वर्ल्ड कप करीब था. दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में कैंप था.
नेशनल स्टेडियम में कदम रखते ही पत्रकारों का हुजूम था. हरेंद्र सिंह दिख रहे थे, जो अभी नेशनल कोच हैं. उस वक्त वो असिस्टेंट कोच थे. उनके आंसू नहीं रुक रहे थे- भगवान हमेशा हमारे साथ ऐसा क्यों करता है? अब तक सब कुछ साफ हो चुका था. टीम की रीढ़ कहे जाने वाले संदीप सिंह को गोली लग गई थी. वो भी रीढ़ के बिल्कुल आसपास.
संदीप दिल्ली आ रहे थे. वो शताब्दी एक्सप्रेस में बैठे. सुबह करीब दस बजे ट्रेन दिल्ली पहुंचती है. कोच नंबर सी 8 में संदीप सिंह और राजपाल सिंह बैठे थे. संदीप अंबाला से ट्रेन में बैठे थे, जो जगह उनके घर शाहबाद के करीब है. उन्हें जर्मनी जाना था, जहां वर्ल्ड कप खेला जाना था. उसी कोच में आरपीएफ के एएसआई मोहर सिंह थे. कुरुक्षेत्र के पास ट्रेन पहुंची, तभी तेज आवाज हुई. इसी के साथ लोगों ने संदीप को अपनी सीट से गिरते देखा.
हम 12 साल बाद इस घटना को क्यों याद कर रहे हैं? वजह है. संदीप सिंह पर बनी फिल्म सूरमा रिलीज होने वाली है. उसका ट्रेलर आ चुका है. ऐसे में 12 साल पहले की उस घटना का याद आना स्वाभाविक है. संभव है कि फिल्म में तमाम नाटकीयता भरी गई हो, जो आमतौर पर फिल्म के साथ होता है. ऐसे में उन घटनाओं को याद करना जरूरी है, जो संदीप की जिंदगी से जुड़ी हुई हैं.
संदीप का घर शाहबाद है, जो महिला हॉकी खिलाड़ियों के लिए जाना जाता है. एक वक्त था, जब भारतीय टीम में आधी से ज्यादा लड़कियां शाहबाद से होती थीं. उनके कोच थे बलदेव सिंह. अब भी शाहबाद की लड़कियां भारतीय टीम का हिस्सा हैं. संख्या जरूर पहले के मुकाबले कम हुई है. लड़कियों के गढ़ में एक परिवार था, जिससे बिक्रमजीत सिंह आए. बिक्रमजीत 2001 की उस टीम का हिस्सा थे, जिसने जूनियर वर्ल्ड कप जीता. उनके छोटे भाई संदीप सिंह.
संदीप की चर्चा सबसे पहले 2004 में हुई. वह भारत की जीत में टॉप स्कोरर थे. उनके करियर में हरेंद्र सिंह का बड़ा रोल था, जो उस वक्त उनके कोच थे. भारत की जीत भी पाकिस्तान के खिलाफ पाकिस्तान में थी. हीरो बनने के लिए इससे बड़ा मौका और क्या हो सकता था. इसी साल उन्हें सीनियर टीम में मौका मिला. यहां तक कि ओलिंपिक टीम में भी.
यहां से लेकर शताब्दी ट्रेन में उस सुबह तक संदीप ने खेल में खासा सुधार किया. लेकिन वो सुबह उनके लिए जिंदगी का अलग संदेश लेकर आई थी. संदीप ने वापसी की. हालांकि कोच जोकिम कारवाल्हो ने उन्हें 2008 ओलिंपिक्स क्वालिफायर्स के लिए नहीं चुना. टीम ओलिंपिक के लिए क्वालिफाई भी नहीं कर पाई. संदीप ने कोच अजय कुमार के साथ सुल्तान अजलन शाह कप में वापसी की. नौ गोल के साथ टॉप स्कोरर रहे. उसके बाद अगले ओलिंपिक के लिए क्वालिफायर में भी वो 16 गोल के साथ टॉप स्कोरर थे. यह अलग बात है कि 2012 के लंदन ओलिंपिक में भारत आखिरी नंबर पर रहा. इसी के साथ एक तरह से संदीप का इंटरनेशनल हॉकी के साथ जुड़ाव खत्म होता गया.
सूरमा में संदीप का किरदार दिलजीत दोसांझ निभा रहे हैं. उनकी गर्लफ्रेंड और फिर पत्नी का रोल तापसी पन्नू ने किया है. संदीप की पत्नी का नाम हरजिंदर कौर है. वो हॉकी खिलाड़ी रही हैं. शाहबाद से ही हैं. यह अलग बात है कि काफी समय तक संदीप सार्वजनिक तौर पर शादी की बात से बचने की कोशिश करते थे. उनके एक बेटा भी है.
कुल मिलाकर यह है हॉकी के सूरमा संदीप सिंह की कहानी. इसमें सिनेमा का रुपहला पर्दा जाहिर तौर पर कुछ और नाटकीय पल जोड़ेगा. दिलजीत दोसांझ इसे ग्लैमर देंगे. तापसी पन्नू भी. आज भले ही शताब्दी ट्रेन की वो घटना संदीप की कहानी को बड़े पर्दे पर ले आई हो. लेकिन यकीनन गोली की वो आवाज अब भी संदीप को याद होगी. वो कहते भी हैं, ‘ऐसा लगा कि कुछ गरम गरम शरीर में घुस गया है. हाथ लगाया तो पूरा हाथ खून से रंग गया.’
चंडीगढ़ में उनकी तीन घंटे की सर्जरी हुई. डॉक्टर्स ने माना कि दुर्भाग्य के साथ सौभाग्य भी रहा. अगर गोली नर्व्स तक जाती, तो पैरालिसिस हो सकता था. उसके बाद भी वापसी मामूली बात नहीं थी. उस वापसी से रुपहले पर्दे तक का सफर संदीप के लिए अलग जिंदगी की शुरुआत जैसा होगा.
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