पूर्व कप्तान और पाकिस्तान के वजीर-ए आज़म इमरान खान को करतारपुर कॉरिडोर के रास्ते दोनों देशों के बीच संभावित दोस्ती पर बात करते देख अच्छा लगा. यकीनन यह फैसला दोनों ओर के पंजाब के बीच पुल का काम करेगा. लेकिन अगर इमरान खान इस मौके पर क्रिकेट पर भी एक लाइन बोलते तो यह दोनों देशों के लोगों को फिर से एक दूसरे के करीब लाने का जरिया बन सकती थी.
भारत लगातार अपने कट्टर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेलने से इनकार करता आ रहा है. इस मौके पर वह भारत सरकार के क्रिकेट के दरवाजे भी खोलने की गुजारिश कर सकते थे. बेशक किसी दूसरे देश में ही सही, दोनों देशों के बीच मुकाबले इस समय विश्व क्रिकेट के लिए अहम हैं.
खासकर तब, जब पाकिस्तान से न खेलने के कारण एशिया में भारत को टक्कर देने वाला कोई नहीं है और एशिया से बाहर उसके जीतने के लाले हैं. भारतीय टीम पर सपाट पिचों के शेर का लेबल लगा है.
भारतीय टीम पाकिस्तान के साथ खेल जारी रख वह इस छवि को कुछ हद तक धुंधला कर सकती है. रोचक यह भी है कि भारत और पाकिस्तान के बीच सब कुछ हो रहा है. सिर्फ क्रिकेट पर ही पाबंदी का कारण समझ से बाहर है.
करतारपुर में भारत सरकार के नुमाइंदों के तौर पर दो केंद्रीय मंत्री भी मौजूद थे. खबर है कि पाकिस्तान भारत को सार्क का न्योता भेजेगा. पाकिस्तानी चीनी से लदे कई सौ ट्रक हर हफ्ते अटारी बॉर्डर पार कर रहे हैं. दोनों देशों के बीच तथाकथित बैकडोर चैनल बातचीत भी चल चुकी है. ऐसा कुछ नजर नहीं आता जो रुका हो. सिवाय क्रिकेट को छोड़कर.
इस महीने लाहौर में हुई एशियन क्रिकेट काउंसिल (एसीसी) की बैठक में भारत ने नुमाइंदगी करने से इनकार कर दिया. दुनिया के सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड को इस समय सुप्रीम कोर्ट की ओर से नियुक्त प्रशासकों की एक कमेटी चला रही है.
इस बैठक में भारतीय क्रिकेट बोर्ड के किसी अधिकारी को ना भेजने के फैसले के बारे में कमेटी के हवाले से कहा गया कि पाकिस्तान के साथ मौजूदा संबंध ठीक नहीं हैं और फिर सुरक्षा का भी खतरा है.
क्या हालात सिर्फ क्रिकेट को लेकर खराब हैं! क्या स्थिति ऐसी है कि दोनों ओर से सारे रास्ते बंद हो गए हैं!
अगर ऐसा है तो किसी को तो जवाब देना चाहिए कि इमरान खान के पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बनने के बाद उसे भारतीय टीम के सभी सदस्यों के ऑटोग्राफ वाला बल्ला बतौर मुबारकबाद भेजने का फैसला किसका था! फैसला भारत सरकार का था या पाकिस्तान में भारत के उच्चायुक्त अजय बिसारिया या फिर भारतीय टीम का या क्रिकेट बोर्ड का!
शफकत अमानत अली ने इसे गौरव के साथ स्वीकार किया. यह जानते हुए भी कि ‘वैष्णव जन तो तेने’ एक ‘भजन’ है और पाकिस्तान के कई लोगों को बुरा लग सकता है. लेकिन उन्हें ऐसा दिल से गाया कि सभी के दिलों को छू गया.
वीडियो में पाकिस्तान वाले हिस्से में शफकत साहब की आवाज की शुरुआत में ही बैकग्राउंड में लाहौर की शान मीनार-ए-पाकिस्तान के खूबसूरत एरियल शॉट्स भी हैं! यह लोकप्रिय स्थल भारत और पाकिस्तान के बंटवारे की वजहों के दस्तावेजों में से एक है. लेकिन कही भी आधिकारिक नहीं है कि शफाकत साहब को गुजारिश भेजने का फैसला किसका था! बतौर एक मुल्क भारत का या फिर सिर्फ विदेश मंत्रालय का!
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अगर दोनों देशों के बीच संबंध इतने खराब हैं कि भारत के क्रिकेट बोर्ड अपने अधिकारियों को पाकिस्तान भेजने से इनकार कर रहा है तो किसी को बताना चाहिए कि आखिर ये सब हो कैसे रहा है!
पाकिस्तान के पूर्व स्टार शाहिद आफरीदी दोनों मुल्कों के सियासी मसलों पर बयान के कारण विवाद में आए हैं. भारतीय क्रिकेटर भी ऐसे बयानों के लिए उनकी लानत-जमानत कर चुके हैं. लेकिन जब वह रिटायर हुए तो पूरी भारतीय टीम ने विराट कोहली की 18 नंबर की वनडे जर्सी पर ऑटोग्राफ किए. उन्हें अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में योगदान के लिए यह शर्ट तोहफे में दी गई. किसने यह पहल की और किसने यह फैसला लिया! भारत सरकार ने, भारतीय बोर्ड ने या फिर भारतीय खिलाड़ियों ने!
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