विश्वनाथन आनंद के विश्व चैंपियन बनने के बाद से भारतीय शतरंज की दिशा एकदम से बदल गई है. आनंद के 1988 में देश का पहला ग्रैंडमास्टर बनने के समय लगा था कि इस मुकाम तक पहुंचना बहुत ही मुश्किल है. लेकिन पिछले कुछ सालों में देश में ग्रैंडमास्टर बनने की रफ्तार को देखकर लगने लगा है कि यह काम अब उतना मुश्किल नहीं रहा है. अब तो बहुत ही कम उम्र में खिलाड़ी यह सम्मान पाने लगे हैं. तमिलनाडु के डी गुकेश ने तो देश में सबसे कम उम्र में ग्रैंडमास्टर बनने का गौरव हासिल कर लिया है. उन्होंने 12 साल, सात महीने और 17 दिन में ग्रैंडमास्टर बनकर पिछले साल जून में ग्रैंडमास्टर बने रमेश बाबू प्रगनानंद का रिकॉर्ड तोड़ा है. रमेश बाबू प्रगनानंद 12 साल, 10 माह और 13 दिन में ग्रैंडमास्टर बने थे. गुकेश अब सर्जेई कर्जाकिन के बाद दुनिया में दूसरे सबसे कम उम्र में बने ग्रैंडमास्टर हैं.
गुकेश तोड़ सकते थे विश्व रिकॉर्ड
गुकेश के सामने कर्जाकिन के विश्व रिकॉर्ड को तोड़ने का मौका था. कर्जाकिन ने 2002 में 12 साल और सात माह की उम्र में ग्रैंडमास्टर बनकर विश्व रिकॉर्ड बनाया था. गुकेश ने पिछले साल नवंबर में बार्सिलोना में विश्व अंडर-12 चैंपियन बनने के दौरान यदि आधा अंक और बना लिया होता तो वह उस समय ही ग्रैंडमास्टर बन गए होते और विश्व रिकॉर्ड उनके नाम दर्ज हो चुका होता. लेकिन उन्हें ग्रैंडमास्टर टाइटिल पाने के लिए दिल्ली इंटरनेशनल ओपन ग्रैंडमास्टर्स शतरंज टूर्नामेंट तक इंतजार करना पड़ा और कर्जाकिन के रिकॉर्ड से 17 दिन पिछड़ गए. गुकेश ने पांच साल के करियर में ही बहुत कुछ हासिल कर लिया है. गुकेश की मां पद्मा कुमारी कहती हैं कि पांच साल पहले जब गुकेश ने शतरंज को गंभीरतापूर्वक लेना शुरू किया तो हमारे दिमाग में कोई रिकॉर्ड नहीं था और हम उसे प्रोफेशनल खिलाड़ी बनाना चाहते थे. पर वह पांच साल में ही ग्रैंडमास्टर बन जाएगा, यह हमने कभी नहीं सोचा था.
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कितना था मुश्किल पहले ग्रैंडमास्टर बनना
देश में पहला ग्रैंडमास्टर नॉर्म पाने वाले प्रवीण थिप्से थे. लेकिन उनसे पहले विश्वनाथन आनंद 1988 में ग्रैंडमास्टर बन गए. थिप्से को यह सम्मान पाने के लिए 1997 तक इंतजार करना पड़ा. इस दौरान दिब्येंदु बरुआ भी ग्रैंडमास्टर बन गए. इस तरह थिप्से देश के तीसरे ग्रैंडमास्टर हैं. पहले सम्मान पाना बेहद मुश्किल था, इसलिए आनंद के 1988 में ग्रैंडमास्टर बनने के 12 साल बाद तक यानी 2000 तक देश को सिर्फ पांच ही ग्रैंडमास्टर मिल सके. पहले तीन ग्रैंडमास्टर्स के साथ अभिजीत कुंटे और कृष्णन शशिकिरण के नाम ही जुड़ सके. लेकिन इसके बाद 18 साल में देश में ग्रैंडमास्टर्स की संख्या 59 तक पहुंच गई है.
कैसे आया है यह बदलाव
असल में ग्रैंडमास्टर नॉर्म पाने के लिए जरूरी है कि आप टूर्नामेंट में एक तिहाई ग्रैंडमास्टर्स से खेले हों और कम से कम तीन ग्रैंडमास्टर्स से खेलना जरूरी होता है. इस तरह के ही टूर्नामेंट में ग्रैंडमास्टर नॉर्म को हासिल किया जा सकता है. पर पिछले एक दशक में देश में ग्रैंडमास्टर्स की भरमार होने से देश में होने वाले ज्यादातर टूर्नामेंटों का दर्जा ऊंचा हो गया है, जिसकी वजह से खिलाड़ियों को ग्रैंडमास्टर बनने के लिए देश से बाहर जाने की भी जरूरत नहीं होती है. इसी का परिणाम है कि देश में 2013 से लेकर अब तक करीब छह साल में 21 नए ग्रैंडमास्टर बन गए हैं. इसके विपरीत शुरुआती सालों में देश में बड़ी कैटेगरी का टूर्नामेंट नहीं होने की वजह से खिलाड़ियों को विदेश जाना पड़ता था और कई बार विपरीत हालात में खेलना पड़ता था. इसके अलावा देश में शतरंज खेलने वाले युवाओं को प्रशिक्षित करने की सुविधाएं भी बढ़ी हैं. इसके अलावा देश में शतरंज का स्तर ऊंचा होने से प्रतिस्पर्धा बढ़ी है, इससे खिलाड़ियों को तैयारी करने में मदद मिलती है.
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गुकेश को इस मुकाम तक पहुंचाने में पिता का भी है त्याग
तमिलनाडु के रहने वाले गुकेश डॉक्टर माता-पिता की संतान हैं. उनके पिता डॉक्टर रजनीकांत ईएनटी के विशेषज्ञ हैं और माता पद्मा कुमारी भी डाक्टर हैं. माता डाक्टर पद्मा कुमारी ने गुकेश के सबसे कम उम्र में ग्रैंडमास्टर बनने पर भावुक होते हुए कहा कि बेटे ने जब शतरंज खिलाड़ी बनने की इच्छा जाहिर की और इस तरफ अपनी दिलचस्पी दिखाई तो पिता ने अपने करियर की बेटे के खातिर बलि चढ़ा दी. पिता रजनीकांत पिछले पांच साल से बेटे को कहां खिलाना चाहिए यह योजना बनाते हैं. योजना बनाने के बाद उस स्थान का टिकट बुक कराने के साथ ठहरने की व्यवस्था करते हैं. पर बेटे ने भी पिता की मेहनत को चार चांद लगाते हुए यह साबित कर दिया है कि वह अब आगे से गुकेश के पिता ही कहलाएंगे.
पर देश को नहीं मिल सका है दूसरा आनंद
इसमें कोई दो राय नहीं है कि देश में पिछले एक दशक में शतरंज का माहौल एकदम से बदला है. आज भारतीय दुनियाभर में चमक बिखेरते नजर आते हैं. पर हम इन प्रयासों के बाद दूसरा आनंद नहीं निकाल सके हैं. आनंद ने 2000 से 2002 तक फीडे विश्व चैंपियन बनने के बाद 2007 और 2013 में विश्व चैंपियन बनने का गौरव हासिल किया. वह 2800 रेटिंग प्वाइंट पार करने वाले इकलौते भारतीय हैं. वह मार्च 2011 को 2817 रेटिंग प्वाइंट तक पहुंचे. आनंद के बाद देश में 58 ग्रैंडमास्टर निकल चुके हैं. लेकिन कोई भी विश्व चैंपियन बनने की आस नहीं जगा सका है. पेंटाला हरिकृष्ण 2001 में ग्रैंडमास्टर बने और 2006 में ग्रैंडमास्टर बने परिमार्जन नेगी से आनंद की जगह लेने की उम्मीद जगाई गई. लेकिन दोनों ही उम्मीदों पर खरे नहीं उतर सके. लेकिन पिछले कुछ समय में देश को प्रगनानंद, निहाल सरीन और गुकेश के रूप में तीन कम उम्र वाले ग्रैंडमास्टर मिले हैं. इन तीनों को यदि सही तरीके से तैयार किया जाए तो ये यंग ब्रिगेड देश को दूसरा आनंद देने की क्षमता रखती है.
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