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Hockey World Cup 2018 : किस चश्मे से देखना चाहेंगे टीम इंडिया का प्रदर्शन, निराशा वाले या उम्मीदों भरे?

भारतीय टीम से सेमीफाइनल की उम्मीद थी, जहां उसने निराश किया... लेकिन पिछले 24 साल में सबसे अच्छी रैंक हासिल की

Updated On: Dec 14, 2018 01:42 PM IST

Shailesh Chaturvedi Shailesh Chaturvedi

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Hockey World Cup 2018 : किस चश्मे से देखना चाहेंगे टीम इंडिया का प्रदर्शन, निराशा वाले या उम्मीदों भरे?

दर्शकों की स्तब्ध तस्वीर. आंसुओं में डूबे कुछ भारतीय खिलाड़ी. भर्राई आवाज में बात करते भारतीय कोच हरेंद्र सिंह... 16 हजार से ज्यादा दर्शकों से भरा खामोश कलिंग स्टेडियम. ये सब गुरुवार रात करीब आठ बजे से लेकर नौ बजे के बीच का माहौल था. क्वार्टर फाइनल मैच से पहले ही सेमीफाइनल के पास या टिकट की मांग हो रही थी. क्वार्टर फाइनल तो पार किया ही मान लिया गया था. दर्शक समझ नहीं पा रहे थे कि जिस टीम के लिए सेमीफाइनल पक्का मानकर चल रहे हैं, वे कैसे टूर्नामेंट से बाहर हो सकते हैं. नजारा भावुक था, जहां तर्कों की गुंजाइश कम थी.

अब जरा तर्कों की तरफ नजर डालते हुए देखने का वक्त है कि क्या भारतीय टीम ने वाकई निराश किया? जवाब है कि अगर नेदरलैंड्स के खिलाफ मैच देखा जाए तो हां. उस टीम ने हमें एकतरफा मुकाबले में नहीं हराया. हम लगातार मैच में थे. लेकिन मैच में चंद लम्हे होते हैं, जो विजेता तय करते हैं. वहां टीम हार गई. पूरे टूर्नामेंट के लिहाज से श्रीजेश की गोलकीपिंग यकीनन उनके स्तर के मुकाबले कमजोर नजर आई. वो 2016 या 2017 वाले श्रीजेश नहीं दिखे. यह अलग बात है कि उनमें और नंबर दो गोलकीपर में फर्क अब भी इतना बड़ा है कि श्रीजेश का विकल्प नहीं सोचा जा सकता.

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नजर आया अनुभवहीनता का फर्क

भारतीय फॉरवर्ड लाइन खासतौर पर क्वार्टर फाइनल मैच में निराश कर गई. यहां अनुभव का फर्क समझ आया. या यूं कहें कि लगातार जीतने वाली टीम की मानसिकता कितनी अलग होती है, वो समझ आया. नेदरलैंड्स और भारतीय टीम पहले हाफ में लगभग बराबरी पर थे. भारतीय फॉरवर्ड ऐसा लग रहा था कि बोल्ट को मात देने की कोशिश में हैं. रफ्तार उनकी खासियत थी. इसी को नेदरलैंड्स ने कम कर दिया. जैसे ही रणनीति बदली, उसके लिहाज से खुद को कैसे बदला जाए, ये भारतीय टीम नहीं समझ पाई. यहीं अनुभव का फर्क समझ में आता है. शायद सरदार सिंह का मिड फील्ड में होना यहां फर्क डालता. लेकिन शायद कभी किसी सवाल का जवाब नहीं होता.

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फॉरवर्ड लाइन किसी प्लान के तहत मूव बना रही है, ये कम से कम चौथे क्वार्टर में तो नहीं समझ में आया. हरेंद्र लगातार कहते रहे हैं कि ‘रश’ करने का कोई मतलब नहीं है. जब दबाव नहीं था, तब हरेंद्र की बात टीम ने मानी भी. लेकिन जैसे ही दबाव आया, वो सबक भूल गए. यह अनुभवहीनता का नतीजा है. वैसे भी भारतीय टीम की औसत उम्र 23.5 है. इसमें श्रीजेश 30 साल के हैं. उनको हटा दें तो औसत उम्र 23 के करीब आ जाती है. इससे समझ आता है कि टीम किस कदर अनुभवहीन है. यही बात नेदरलैंड्स के खिलाफ मैच में नजर आई. यहां मैदान पर टीम को समझाने और अपने अनुभव का फायदा दिलाने वाला कोई नहीं था. यहां भी शायद रमनदीप सिंह और एसवी सुनील होते, तो अनुभव का फर्क पड़ सकता था. लेकिन एक बार फिर, शायद किसी सवाल का जवाब नहीं होता है.

फॉरवर्ड लाइन रहा कमजोर लिंक

मनदीप ने मैच की शुरुआत में ही मौका खोया. दिलप्रीत हड़बड़ी में दिखाई दिए. आकाशदीप का डिफ्लेक्शन एक बार पोस्ट से अलग निकल गया. नीलकांता का पुश बहुत कमजोर था. इनमें से कई गलतियां नहीं होतीं, अगर यह वर्ल्ड कप क्वार्टर फाइनल नहीं होता. कम दबाव और ज्यादा दबाव वाले गेम में फर्क अनुभव का होता है. लेकिन इन सबके बीच ये थोड़ा सा पीछे जाना चाहिए. याद करना चाहिए कि वर्ल्ड कप शुरू होने से एक-डेढ़ महीने पहले क्या हो रहा था. सरदार सिंह को रिटायरमेंट के लिए मजबूर कर दिया गया. उन्हें टीम से बाहर कर दिया गया. रमनदीप घायल थे. बिरेंद्र लाकड़ा फिट नहीं थे. रुपिंदरपाल सिंह फॉर्म में नहीं थे. टीम घोषणा से चंद रोज पहले एसवी सुनील भी घायल हो गए. इसके अलावा, हाई परफॉर्मेंस डायरेक्टर डेविड जॉन की वजह से टीम में खासी नाराजगी थी. टीम बिखरी हुई दिख रही थी.

India's Akashdeep Singh (C) celebrates with teammates after scoring a goal during the field hockey quarter-final match between India and Netherland at the 2018 Hockey World Cup in Bhubaneswar on December 13, 2018. (Photo by Dibyangshu SARKAR / AFP)

सुनील को इलाज के लिए दिल्ली भेजा जा रहा था, उससे एक रोज पहले हरेंद्र के चेहरे पर निराशा साफ नजर आ रही थी, ‘पूरा प्लान गड़बड़ा गया.’ अब क्या होगा? इस सवाल पर उन्होंने कहा था, ‘अनफिट प्लेयर तो नहीं लूंगा. हम हर बड़े टूर्नामेंट में कोई अनफिट प्लेयर उसकी रेप्यूटेशन पर लेते हैं. उसके बाद वो हमको भारी पड़ जाता है.’ लेकिन उनको भी पता था कि रमनदीप और सुनील का नहीं होना उन्हें नए सिरे से प्लान करने पर मजबूर कर रहा है. वो उन्होंने किया भी. उन्होंने उस रोज कहा था, ‘अब मैं रिस्क लूंगा. बैकफायर हो सकता है. लेकिन क्लिक कर गया तो सब बदल जाएगा.’

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शायद वो जिस रिस्क की बात कर रहे थे, वो युवा खिलाड़ियों को लेने को लेकर था. इसके अलावा मैदान पर फॉर्मेशन के लिए भी था. वो रिस्क हरेंद्र ने लिया. नतीजा यह है कि भारत ने छठे नंबर पर वर्ल्ड कप खत्म किया है. हमने दो मैच जीते हैं. एक ड्रॉ खेला. पूल में टॉप पर रहे. तीन बार की वर्ल्ड कप चैंपियन, 2012 ओलिंपिक सिल्वर मेडलिस्ट और 2014 वर्ल्ड कप सिल्वर मेडलिस्ट नेदरलैंड्स के खिलाफ करीबी मुकाबला हारे. हरेंद्र हालांकि रिकॉर्ड्स पर भरोसा न करने की बात करते हैं. लेकिन एक नजर डालना जरूरी है.

पिछले 24 साल की बेस्ट पोजीशन पर रही भारतीय टीम

भारतीय टीम ने इस प्रदर्शन से बेहतर प्रदर्शन 24 साल पहले किया था. 1994 में टीम पांचवें नंबर पर आई थी. उसके बाद नंबर रहे 9, 10, 11, 8 और नौ. इसमें से एक बार यानी 2010 में वर्ल्ड कप भारत में ही हुआ था. तब भारत ने आठवें नंबर पर अभियान खत्म किया था. इस बार वर्ल्ड कप के जिस तरह के नियम हैं, उसमें अगर जर्मन टीम सेमीफाइनल में पहुंचती तो भारत पांचवें नंबर पर होता. संभव है कि क्लासिफिकेशन मैच होते तो छठे की जगह गिरकर आठवें या उठकर पांचवें नंबर पर आया जा सकता था. लेकिन नियम अगर बने हैं, तो उसी के लिहाज से बात करनी होगी. टूटी, बिखरी, साढ़े 23 साल औसत उम्र वाली टीम अगर छठे नंबर पर समाप्ति कर रही है, तो कुछ चीजें सही ही की गई होंगी.

India's Simranjeet Singh (L) with teammates celebrate after scoring a goal against Belgium  during the field hockey group stage match between India and Belgium at the 2018 Hockey World in Bhubaneswar on December 2, 2018. (Photo by Dibyangshu SARKAR / AFP)

खासतौर पर डिफेंस. भारतीय डिफेंस ने ज्यादातर समय प्रभावित किया. नेदरलैंड्स के खिलाफ मैच में भी सुरेंदर कुमार दीवार की तरह दिखे. वरुण ने कुछ अच्छे बचाव किए. बिरेंद्र लाकड़ा या हरमनप्रीत अपनी जगह मुस्तैद नजर आए. पहले गोल को छोड़ दिया जाए, तो पूरे मैच में डिफेंस ने शानदार काम किया. यहां तक कि मैच के आखिर में जब बगैर गोलकीपर भारतीय टीम खेल रही थी, तो एक पेनल्टी कॉर्नर तक बचा लिया.

भारतीय टीम अगर 2020 टोक्यो की तैयारी के लिहाज से इस वर्ल्ड कप को देख रही थी, तो यकीनन ऐसा बेस बना है, जिस पर अच्छी टीम खड़ी की जा सकती है. सवाल यही है कि हॉकी इंडिया इस वर्ल्ड कप को कैसे देख रहा था. क्या अधिकारी मेडल से कम या सेमीफाइनल से कम उम्मीद करने को तैयार नहीं थे? अगर वो तैयार नहीं थे, तो वही होगा, जो भारतीय हॉकी में हर बड़े टूर्नामेंट के बाद होता आया है. एक बार फिर कोच और टीम को लेकर उथल-पुथल होगी. फिर नई टीम बनाने की कोशिश होगी. फिर उम्मीदें बंधाई जाएंगी. ...और फिर निराशा हाथ आएगी. अगले कुछ दिनों में समझ आएगा कि इस प्रदर्शन को वर्तमान की निराशा के तौर पर देखा जाएगा या भविष्य की उम्मीदों के.

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