एक दशक से ज्यादा समय हो गया. क्रिकेट में कोच आए थे ग्रेग चैपल. उन्होंने युवा टीम बनाने की कोशिश की थी. उन्होंने सौरव गांगुली को तो टीम के लायक नहीं ही माना था. उनके अलावा, सचिन तेंदुलकर, जहीर खान, वीरेंद्र सहवाग जैसे खिलाड़ी भी उनके निशाने पर थे. 2007 के वर्ल्ड कप के लिए दो साल पहले उन्होंने ‘युवा टीम’ बनानी शुरू की थी. वो टीम वर्ल्ड कप में बुरी तरह हारी. टीम न तो युवाओं की बन पाई, न सीनियर्स की.
अब एक और वर्ल्ड कप है. हॉकी का वर्ल्ड कप. चैपल ने जो काम वर्ल्ड कप से दो-तीन साल पहले शुरू किया था, वो काम हॉकी के हाई परफॉर्मेंस डायरेक्टर डेविड जॉन तीन महीना पहले करना चाहते थे. ग्रेग चैपल की तरह डेविड जॉन भी ऑस्ट्रेलियन हैं. उनको भी सीनियर पसंद नहीं हैं. इसे वो छुपाते भी नहीं. वो समय-समय पर पत्रकारों को अपनी नापसंद बता देते हैं. उन्होंने पहले सरदार सिंह को रिटायरमेंट के लिए मजबूर किया. फिर एक-दो पत्रकारों को बता दिया कि कैसे श्रीजेश, रूपिंदर पाल सिंह और एसवी सुनील के भी दिन पूरे होने वाले हैं.
टूर्नामेंट के बीच ही खिलाड़ियों पर फैसला!
एक दिलचस्प घटना है. जकार्ता में एशियन गेम्स चल रहे थे. उसी दौरान एक पत्रकार से बात हुई, जिसने बताया कि सरदार सिंह के दिन खत्म हो गए हैं, ‘डेविड उसको नहीं रहने देगा.’ तब तक हॉकी के सारे मैच खत्म भी नहीं हुए थे. उसने बताया कि डेविड ने स्टेडियम से बाहर निकलते हुए कहा कि सरदार की वजह से हारे. ये सेमीफाइनल मैच के बाद की बात है.
यह बात समझी जा सकती है कि हाई परफॉर्मेंस डायरेक्टर किसी खिलाड़ी के खेल से नाराज हो. लेकिन यह समझना नामुमकिन है कि टूर्नामेंट के बीच कोई सार्वजनिक तौर पर यह कैसे कह सकता है कि फलां खिलाड़ी की वजह से हारे. एशियन गेम्स के बाद अभी और कुछ नहीं हुआ है. इस बीच डेविड जॉन ने बता दिया कि कुछ खिलाड़ियों को नोटिस पर रखा जा रहा है. उससे पहले खबर ‘लीक’ हुई थी कि कोच हरेंद्र सिंह को नोटिस पर रखा जा रहा है.
यह बिल्कुल वैसे ही है, जैसे क्रिकेट में ग्रेग चैपल के वक्त हुआ था. फर्क यही है कि हॉकी इंडिया ने वर्ल्ड कप का इंतजार किए बगैर डेविड जॉन को सेलेक्शन में दखल न देने का आदेश दे दिया है. साथ ही, हॉकी इंडिया की सीईओ से यह भी पूछ लिया है कि डेविड जॉन ने पिछले दो साल में क्या-क्या किया है. क्या वो सारे काम किए हैं, जो हाई परफॉर्मेंस डायरेक्टर के तौर पर उन्हें करने चाहिए थे?
जान लीजिए कि डेविड जॉन हैं कौन
सबसे पहले यह जान लें कि डेविड जॉन हैं कौन. उन्हें माइकल नॉब्स लाए थे. वो एक तरह से फिटनेस ट्रेनर थे. यह बात 2012 ओलिंपिक्स से पहले की है. उस समय की टीम नॉब्स से नहीं, डेविड जॉन से डरती थी. एक समय तो यहां तक हो गया कि मैच में क्या रणनीति होगी, वो भी डेविड जॉन तय करने लगे. उस दौर में भारतीय खिलाड़ियों की फिटनेस बहुत सुधरी. लेकिन डेविड जॉन और हॉकी इंडिया इस गलतफहमी का शिकार हो गया कि फिटनेस ट्रेनर को हाई परफॉर्मेंस डायरेक्टर बनाया जा सकता है.
रोलंट ओल्टमंस हाई परफॉर्मेंस डायरेक्टर थे. जब उन्हें पूरी तरह कोच का जिम्मा दिया गया, तब डेविड जॉन को हाई परफॉर्मेंस डायरेक्टर बना दिया गया. हालत यह हुई कि एक टूर्नामेंट में कौन सी टीम खेलेगी, यह ओल्टमंस को पता भी नहीं था, क्योंकि डेविड जॉन ने टीम चुनी थी. यहीं से ओल्टमंस की विदाई तय हुई और जॉन का दखल बढ़ता गया.
काम का हिसाब मांगा, लेकिन बहुत देर से
अब उनसे काम का हिसाब मांगा गया है. लेकिन काफी देर हो चुकी है. वो भारतीय हॉकी का बड़ा नुकसान कर चुके हैं. दो अक्टूबर को उनसे सेलेक्शन में शामिल होने का अधिकार छीना गया है. यानी वर्ल्ड कप से महज एक महीना, 26 दिन पहले. इस बीच सरदार सिंह को उन्होंने रिटायर करवा ही दिया, जो वर्ल्ड कप में अहम साबित हो सकते थे. दिलचस्प है कि जिस मीटिंग में सरदार को बाहर किए जाने का फैसला हुआ, तब डेविड जॉन को कुछ वीडियो दिखाए गए थे. उसमें सरदार सिंह के कुछ मूव थे. हर खिलाड़ी की मैच में गलतियों के आंकड़े भी दिए गए थे. हर मामले में सरदार आगे थे. लेकिन डेविड जॉन सुनने को तैयार नहीं हुए. उन्होंने सरदार को टीम में न लेने का फैसला किया, जिसके बाद भारतीय टीम के पूर्व कप्तान ने रिटायरमेंट ले लिया.
उसके बाद भी एशियन चैंपियंस ट्रॉफी की टीम में कप्तान बदलने का फैसला हुआ. श्रीजेश की जगह मनप्रीत को कप्तान बना दिया गया. हालांकि हॉकी में कप्तान की इतनी अहमियत नहीं होती. लेकिन जब श्रीजेश को कप्तानी दी गई थी, तो यही बताया गया था कि कम से कम वर्ल्ड कप तक वो कप्तान रहेंगे, ताकि कंसिस्टेंसी रहे.
डेविड जॉन ने पूरी टीम को हिला दिया है. डेढ़ महीने में इसमें क्या बदलाव होगा, नहीं कहा जा सकता. अब तो ये खबरें भी हैं कि वर्ल्ड कप के बाद उनकी विदाई करवाई जा सकती है. उनकी जगह रोलंट ओल्टमंस को हाई परफॉर्मेंस डायरेक्टर बनाकर वापस लाया जा सकता है. लेकिन जो वक्त बरबाद हुआ, उसका क्या. ऐसा भारतीय हॉकी में हमेशा होता रहा है. लंदन ओलिंपिक्स मे गलत कोच, उसके बाद टेरी वॉल्श की गलत तरह से विदाई, उसके बाद रोलंट ओल्टमंस की जगह महिला हॉकी टीम के कोच को लाया जाना, फिर डेविड जॉन को इस कदर पावरफुल बना देना.... ये सारे फैसले भारतीय हॉकी को परेशानी में डालने वाले रहे हैं. इन फैसलों के बीच भी क्या हमें वर्ल्ड कप में भारत के बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद करनी चाहिए?
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