हम टेनिस के ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंटों को देखें तो पता चलता है कि पिछले दो दशकों से लिएंडर पेस, महेश भूपति और सानिया मिर्जा में से किसी न किसी का धमाल मचता रहा है. लेकिन पिछले दो सालों से इन टूर्नामेंटों में भारतीय धमक नदारद नजर आ रही है. लेकिन इस बार रोहन बोपन्ना और दिविज शरण ग्रैंड स्लैम में जोड़ी बनाकर उतर रहे हैं. इस जोड़ी के ऑस्ट्रेलियन ओपन में प्रदर्शन से साफ होगा कि यह कितनी कारगर रहेगी. बोपन्ना और दिविज के अच्छे प्रदर्शन से जोड़ी बनाए रखने का भरोसा बढ़ेगा. साथ ही 2020 में होने वाले टोक्यो ओलिंपिक में पदक उम्मीदें भी इस जोड़ी के इस सत्र में किए जाने वाले प्रदर्शन पर बहुत कुछ निर्भर करेंगी.
बोपन्ना और दिविज ने खिताब से की है शुरुआत
इन दोनों खिलाड़ियों ने पिछले साल के आखिर में एशियाई खेलों में भारत के लिए पुरुष डबल्स में स्वर्ण पदक जीता. इसके बाद दोनों में संपर्क बना रहा और उन्होंने इस सीजन में जोड़ी बनाकर खेलने का फैसला किया. बोपन्ना और दिविज एटीपी 250 टूर्नामेंट महाराष्ट्र ओपन में पहली ही परीक्षा को पास करने में सफल रहे. इस जोड़ी ने इसमें खिताब जीतकर शुरुआत की है. इससे लगता है कि पूत के पांव पालने में दिख गए हैं. पर इस जोड़ी की सही मायनों में परीक्षा ऑस्ट्रेलियन ओपन में होनी है. यह सही है कि इस जोड़ी से एकदम ग्रैंड स्लैम खिताब जीतने की उम्मीद नहीं लगाई जा सकती है. लेकिन सेमीफाइनल या क्वार्टर फाइनल तक चुनौती पेश करने पर ही आगे उम्मीदें पाली जा सकती हैं. इससे भी महत्वपूर्ण इस बड़े मंच पर यह देखने को मिलेगा कि दोनों के बीच तालमेल कैसा रहता है. यदि तालमेल सही रहता है तो यह उम्मीद की जा सकती है कि वह जैसे-जैसे एटीपी टूर्नामेंटों में खेलेंगे, उनके खेल में निखार आता जाएगा.
दोनों के बीच अच्छी केमिस्ट्री है
किसी भी जोड़ी की सफलता में उसके खेल कौशल के साथ उसकी केमिस्ट्री कैसी है, इस पर बहुत निर्भर करता है. बोपन्ना और दिविज की कोर्ट और उसके बाहर केमिस्ट्री अच्छी है. इसकी प्रमुख वजह दोनों का मिजाज एक सा है. इसके अलावा दोनों इंडियन ऑयल कंपनी में काम करते हैं. इस कारण साथ खेलते रहे हैं और तमाम मौकों पर अभ्यास भी साथ किया है और ट्रेनिंग भी साथ की है. दोनों की रैंकिंग भी लगभग समान ही है. रोहन बोपन्ना की रैंकिंग में महाराष्ट्र ओपन का खिताब जीतने से तीन स्थानों का सुधार आया है. वह 32वीं रैंकिंग पर पहुंच गए हैं और दिविज शरण 36वीं रैंकिंग पर हैं. पिछले साल हम एशियाई खेलों के स्वर्ण पदक को छोड़ दें तो दोनों का साल बिना खिताब वाला रहा है. लेकिन अब लगता है कि आपस में जोड़ी बनाने से तकदीर चमक सकती है.
दाएं-बाएं हाथ का तालमेल बनेगा मारक
डबल्स मुकाबलों में जोड़ियों की सफलता के लिए दो बातों बहुत अहम होती हैं. एक तो दाएं और बाएं हाथ का तालमेल खेल में पैनापन लाता है. दूसरे खिलाड़ी आगे और पीछे के कोर्ट में खेलने वाले हैं तो इससे भी प्रदर्शन में पैनापन आता है. दाएं हाथ से खेलने वाले रोहन बोपन्ना झन्नाटेदार सर्विस के लिए मशहूर हैं और उनके ग्राउंड स्ट्रोक बहुत ही विस्फोटक होते हैं, इसलिए वह बैक कोर्ट में खेलने की क्षमता रखते हैं. वहीं बाएं हाथ से खेलने वाले दिविज नेट पर खेलने वाले खिलाड़ी हैं. बोपन्ना ने इस जोड़ी को बनाते समय कहा था कि दिविज जब नेट पर खेलते हैं तो प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी दवाब में आ ही जाते हैं. ऐसा वह अपनी नपी तुली वॉलियों के बल पर करते हैं. एक बात जरूर है कि दिविज की सर्विस बहुत दमदार नहीं है. लेकिन एशियाई खेलों के बाद बोपन्ना के संपर्क में आने के बाद उनकी सर्विस में बहुत सुधार देखने को मिला है. यह सच है कि दिविज की सर्विस में अच्छा सुधार हो जाए तो यह जोड़ी एटीपी सर्किट में बहुत घातक साबित हो सकती है.
घरेलू जोड़ीदार का कोई जवाब नहीं
रोहन बोपन्ना कहते हैं कि देश के ही जोड़ीदार के साथ खेलने का कोई जवाब नहीं है. वह कहते हैं कि 2012 में लंदन ओलिंपिक में महेश भूपति के साथ जोड़ी बनाकर खेले थे, तब मुझे इस बात का अहसास हुआ. इसके बाद ही मैं भूपति के साथ 2013 के सत्र में जोड़ी बनाकर खेला पर आशातीत सफलता नहीं मिली. सर्किट में 2013 मे बाद भारतीय जोड़ी नहीं खेली है. पेस और भूपति जरूर अलग-अलग खिलाड़ियों के साथ जोड़ी बनाकर सफलताएं अर्जित करते रहे हैं. सानिया मिर्जा का भी काफी समय तक जलवा दिखा है. घरेलू जोड़ीदार होने का फायदा यह होता है कि दोनों में आपसी समझ बेहतर बन पाती है. डबल्स में एक-दूसरे के प्रति भरोसे से ही गाड़ी आगे खिंचती है. फिर सर्किट में लंबे समय तक घर से दूर रहने पर एक साथी हमेशा साथ रहता है.
अब तक की सबसे सफल जोड़ी पेस और भूपति
एंडर पेस और महेश भूपति ने 1998 में जोड़ी बनाकर खेलना शुरू किया और इस जोड़ी ने सफलता का ऐसा परचम लहराया कि टेनिस जगत स्तब्ध रह गया. इस जोड़ी ने पहले साल यानी 1998 में तीन ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंटों के सेमीफाइनल तक चुनौती पेश की. लेकिन इस जोड़ी का साल 1999 का समय स्वर्णकाल कहा जा सकता है. इस साल इस जोड़ी ने चारों ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंटों के फाइनल तक चुनौती पेश की और फ्रेंच ओपन और विंबलडन के खिताब जीतने में सफल रही. इस जोड़ी ने 25 एटीपी खिताबों पर भी कब्जा जमाया. जब यह लगने लगा कि यह जोड़ी दुनिया में राज करेगी, तब ही दोनों में मतभेद होने से जोड़ी टूट गई. इस जोड़ी ने डेविस कप में भारत के लिए 23 डबल्स मुकाबले जीते. अब बोपन्ना और दिविज शरण पर है कि वह पेस और भूपति की यादों को शानदार प्रदर्शन करके फिर से ताजा कर दें. वह ऐसा कर सके तो उनकी साख बन जाएगी.
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