महिलाओं की 3000 मीटर स्टीपलचेज में रजत पदक जीतने वाली अनुभवी खिलाड़ी सुधा सिंह ने पिछले एशियन गेम्स की निराशा को पीछे छोड़कर सिल्वर मेडल जीतने से राहत की सांस ली. उत्तर प्रदेश के अमेठी की रहने वाली 32 वर्षीय खिलाड़ी ने कहा, ‘मैंने 2014 इंचियोन में अपना व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ समय दिया था, लेकिन वह मेडल के लिए काफी नहीं था. उसके कोई मायने नहीं थे.’ सुधा ने चीन के ग्वांग्झू में 2010 के एशियन गेम्स में स्वर्ण जीता था.
अमेठी के शिवाजी नगर में रहने वाली सुधा सिंह के पिता ने हमेशा ही उनके सपनों का साथ दिया. सुधा की खेल में दिलचस्पी होने के कारण परिवार के किसी सदस्य ने कभी भी उन्हें रोका-टोका नहीं. सुधा पहले मोहल्ले की गलियों और सड़क के फुटपाथ पर ही अभ्यास करती थी. उनकी मेहनत और लगन ने उन्हें साल 2003 में स्पोर्ट्स हॉस्टल, लखनऊ में पहुंचाया.
पानी और बाधा को पार करके दौड़ पूरी करने वाले स्टीपल चेज जैसे खेल को खेलने वाली सुधा ने जीवन की दौड़ में भी किसी रुकावट को अपनी सफलता के आगे नहीं आने दिया. यही वजह है कि 15 साल में उसने एक से बढ़कर एक उपलब्धि हासिल की. एशियन गेम्स में तो मानो उसकी किस्मत ही बदल गई.
इस बार सुधा और उनके मेडल के बीच एक और बड़ी चुनौती थी वो थी उनकी उम्र. 32 साल की सुधा को कोई भी मेडल का दावेदार नहीं मान रहा था लेकिन उन्होंने खुद को साबित किया.
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