जिस घर की बुनियादी जरूरतें नहीं पूरी हो पातीं उसकी बेटी एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीते, ये उनके लिए सपने जैसे बात थी. गुजरे बुधवार को इंडोनेशिया में जब हेप्टाथलन स्पर्धा में स्वप्ना बर्मन गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच रही थीं तो पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी के घोषपाड़ा मोहल्ले में टीन की छत वाले घर में एक पुराने टीवी पर रिक्शाचालक पंचानन का परिवार ये गौरव का पल देख रहा था. स्वप्ना की मां के आंसू नहीं रुक रहे थे. जिंदगी में हर बाधा को लांघने वाली स्वप्ना ने सात बाधाओं को लांघकर सोना अपने नाम किया. वह इस स्पर्धा में सोना जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हैं. स्वप्ना के पिता पंचानन बर्मन रिक्शा चलाते हैं, लेकिन बीते कुछ दिनों से उम्र के साथ लगी बीमारी के कारण बिस्तर पर हैं.
स्वप्ना ने सात स्पर्धाओं में कुल 6026 अंकों के साथ पहला स्थान हासिल किया. स्वप्ना ने 100 मीटर में हीट-2 में 981 अंकों के साथ चौथा स्थान हासिल किया था. ऊंची कूद में 1003 अंकों के साथ पहले स्थान पर कब्जा जमाया. गोला फेंक में वह 707 अंकों के साथ दूसरे स्थान पर रहीं. 200 मीटर रेस में उन्होंने हीट-2 में 790 अंक लिए.
अपनी बेटी की सफलता से खुश स्वप्ना की मां बाशोना इतनी भावुक हो गई थीं कि उनके मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे. बेटी के लिए वह पूरे दिन भगवान के घर में अर्जी लगा रही थीं. स्वप्ना की मां ने अपने आप को काली माता के मंदिर में बंद कर लिया था. इस मां ने अपनी बेटी को इतिहास रचते नहीं देखा क्योंकि वह अपनी बेटी की सफलता की दुआ करने में व्यस्त थीं. स्वप्ना जब जीतीं तो उनके गाल पर पट्टी बंधी थी. दरअसल स्पर्धा से दो दिन पहले उनके दांत में दर्द होने लगा था. दर्द काफी तेज था लेकिन वह नहीं चाहती थीं कि वर्षों की मेहनत बेकार जाए. इसलिए उन्होंने दर्द को भुलाकर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया.
एक समय ऐसा भी था कि स्वप्ना को अपने लिए सही जूतों के लिए संघर्ष करना पड़ता था, क्योंकि उनके दोनों पैरों में छह-छह उंगलियां हैं. पांव की अतिरिक्त चौड़ाई खेलों में उसकी लैंडिंग को मुश्किल बना देती है इसी कारण उसके जूते जल्दी फट जाते हैं.
स्वप्ना के बचपन के कोच सुकांत सिन्हा ने कहा कि उसे अपने खेल संबंधी महंगे उपकरण खरीदने में काफी परेशानी होती है. बकौल सुकांत, ‘मैं 2006 से 2013 तक उनका कोच रहा. वह काफी गरीब परिवार से आती है और उसके लिए अपनी ट्रेनिंग का खर्च उठाना मुश्किल होता था. जब वह चौथी क्लास में थी तब ही मैंने उसमें प्रतिभा देख ली थी. इसके बाद मैंने उसे ट्रेनिंग देना शुरू किया.’
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