माही की जिंदगी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं. तभी उन पर बनी फिल्म सौ करोड़ से ऊपर की कमाई भी कर गई.
पर्दे से बाहर एक लीविंग लीजेंड बनने के सफर में अगर उनके अतीत का जिक्र न हो, तो माही के महान बनने की बात अधूरी छूट सकती है.
माही की कहानी से जुड़े पन्ने कहते हैं, कि 'कैप्टन कूल' अगर चाहें तो बहुत शरारती भी बन सकते हैं.
2001 में मिली रेलवे की नौकरी
उस वक्त धोनी की उम्र सिर्फ उन्नीस बरस की थी. जब साल 2001 में दक्षिण पूर्व रेलवे में उन्हें टिकट चेकर की नौकरी मिली थी.
दुनिया का तीसरा सबसे लंबा प्लेटफार्म खड़गपुर महेंद्र सिंह धोनी की पहली पोस्टिंग का गवाह बना. माही को 13 हजार क्वार्टरों वाली कॉलोनी में बैचलर कमरा यानि एक कमरे का मकान मिला.
माही और उनके दोस्तों के साथ कॉलोनी के सिक्युरिटी गार्डों का बर्ताव अच्छा नहीं था. अक्सर नोंक-झोंक हुआ करती थी. तग आकर एक रोज माही ने सिक्योरुटी गार्डों को सबक सिखाने की ठानी. हिसाब चुकता करने के लिये प्लान बना.अमावस की एक रात का वक्त चुना. माही एंड गैंग ने खुद को सफेद चादर में लपेटा और पूरे कैंपस में शोर मचाते हुए दौड़ना शुरु कर दिया. माही की मस्ती को रात के अंधेरे में सिक्युरिटी गार्ड भूतों का तांडव समझ बैठे.बेचारे डरे हुए गार्ड सिर पे पैर रख कर भाग निकले. माही अपनी शरारत पर हंस हंस कर बेहाल हो गए.
रांची की मेटालर्जिकल एंड इंजीनियरिंग कंसल्टेंट इंडिया लिमिटेड ( मेकॉन ) कंपनी में माही के पिता टेक्नीशियन थे. उनका परिवार मुख्य खेल परिसर के पास ही रहता था.
माही ने उस खेल मैदान पर अपना अच्छा खासा समय बिताया था. जूनियर स्कूल लेवल पर माही बैडमिंटन और फुटबॉल के अच्छे खिलाड़ी थे.
बारह साल की उम्र में उन्होंने पहली दफे क्रिकेट मैच खेला. डीएवी जवाहर विद्या मंदिर स्कूल के कोच केशब रंजन माही की गोलकीपिंग से बेहद प्रभावित थे.
केशब रंजन ने माही को स्कूल क्रिकेट टीम के लिये विकेट कीपिंग करने को कहा. माही ने जवाब दिया कि – टीम में मौका मिलेगा तो खेलूंगा.
और बाकी, जैसा कहा जाता है कि अब इतिहास है.
क्रिकेट को अपनाने के बाद माही की आंखों में सचिन बनने का सपना पल रहा था.
'जब मैं बड़ा हो रहा था तब सचिन तेंदुलकार भगवान थे.'
सचिन का था प्रभाव
मास्टर ब्लास्टर ने जिस तरह खुद को तैयार किया. उससे माही गहरे प्रभावित थे, और सचिन की तरह ही अच्छा क्रिकेटर और एक बेहतरीन इंसान बनना चाहते थे.
जब वो कम उम्र वाले खिलाड़ियों की टीम में खेल रहे थे, तब उनकी एक ही ख्वाहिश थी, कि कम से कम एक बार तेंदुलकर से मुलाकात हो जाए और कम से कम एक मैच उनके साथ या उनके खिलाफ खेलने का मौका मिल जाए.
साल 2000-01 में पुणे में दिलीप ट्रॉफी का मैच था. सितारों से भरी वेस्ट जोन टीम के खिलाफ ईस्ट जोन टीम में उन्हें रिजर्व कीपर के तौर पर पहला मौका मिला.
ड्रेसिंग रूम में माही को अपने भगवान यानी सचिन से रूबरू होने का मौका मिला. उस वक्त सचिन ने 199 रनों की बेमिसाल पारी खेली थी.
माही अपने साथी खिलाड़ियों के लिये पानी की बोतल लेकर मैदान में दौड़ते भागते रहते. माही की इच्छा उस वक्त पूरी हुई, जब सचिन ने उन्हें बुलाकर एक घूंट पीने का पानी मांगा.
वक्त बदला. माही जिस सचिन से बस एक मुलाकात का सपना संजोए थे. उनके साथ वो भारतीय टीम में 9 साल तक खेले.
आज क्रिकेट के ‘भगवान’ भी खुद माही के मुरीद हैं. क्योंकि उसी माही ने 'भगवान' के विश्व कप जीतने के सपने को साकार किया.
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