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चयनकर्ताओं को गलती सुधारने का आखिरी मौका

जिम्मेदारी चयनकर्ताओं की है कि वो बल्लेबाजी को मजबूत करने पर ध्यान दें.

Updated On: Dec 01, 2016 07:44 AM IST

Vedam Jaishankar

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चयनकर्ताओं को गलती सुधारने का आखिरी मौका

सफलता से बेहतर और कुछ नहीं. लेकिन इसका खराब पहलू यह होता है कि हमारी कमियां इसकी चकाचौंध में कहीं गुम हो जाती हैं.

मोहाली टेस्ट में इंग्लैंड पर आठ विकेट से जीत ने भारत को सीरीज में 2-0 की महत्वपूर्ण बढ़त दे दी है. टेस्ट में भारतीय टीम के प्रदर्शन की सराहना होनी चाहिए.

लेकिन एक और भारतीय बल्लेबाज के चोटिल होने की सूरत में मैच का परिणाम बदल भी सकता था. चयनकर्ताओं ने टीम में रिजर्व गेंदबाज तो रखे थे लेकिन बल्लेबाज एक भी नही रखा.

भारतीय चयनकर्ताओं ने इस श्रृंखला के लिए रिजर्व में केवल गेंदबाजों को ही रखा है. यह बात सही है कि हमारी चयन समिति को टेस्ट खेलने का अनुभव ज्यादा नहीं है. समिति के अध्यक्ष एमएसके प्रसाद, देवांग गांधी, गगन खोड़ा, जतिन परांजपे और सरनदीप सिह सभी अपने कैरियर में ज्यादा टेस्ट मैच नहीं खेले. हालंकि इसका श्रृंखला के लिए रिजर्व में केवल गेंजबाजों को रखने से कोई सीथा ताल्लुक नहीं है.

इंग्लैंड के साथ पांच टेस्ट मैचों की इस घरेलू श्रृंखला में ईशांत शर्मा, भुवनेश्वर कुमार, अमित मिश्रा और हार्दिक पाण्ड्या टीम में रिजर्व खिलाड़ी की तरह शामिल किए गए हैं.

रहाणे कमजोर कड़ी

यही वजह है कि अपने कैरियर के सबसे खराब दौर से गुजर रहे अजिंक्य रहाणें टीम के लिए बोझ बन गए हैं. रहाणें की पिछली दस पारियों में नजर डालें तो उन्होंने 33, 28, 5, 57, 20, 1,13, 26, 23 और 0 के स्कोर बनाए हैं. इन पारियों में टेस्ट के साथ एकदिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय मैच भी शामिल हैं. इन आंकड़ों को देखकर कोई भी बता सकता है कि इस फार्म में रहाणें भारतीय टीम में जगह के हकदार नहीं हैं.

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Source: BCCI

जब विराट कोहली जैसा कप्तान पांच प्रमुख गेंदबाज के साथ उतरता है तो उसे पांच विशेषज्ञ बल्लेबाज भी खिलाने चाहिए. और एक विशेषज्ञ विकेटकीपर. टीम में मोहम्मद शमी, उमेश यादव, रविचंद्रन अश्विन, रविंद्र जडेजा और जयंत यादव गेंदबाज के तौर पर खेल रहे हैं.

इन दिनों रहाणें का फुटवर्क उनके खराब फार्म की गवाही दे रहा है. ऐसा लग रहा है जैसे रहाणें क्रीज पर जम गए हैं. उनके पैर हिल ही नहीं रहे. मोहाली में आदिल रशीद की गेंद पर जिस तरह से रहाणें पगबाधा आउट हुए उससे तो यही लगता है.

किसी विदेशी फिरकी गेंदबाज की गूगली पर भारतीय बल्लेबाज का गच्चा खा जाना हजम नहीं होता. अमूमन भारतीय बल्लेबाज फिरकी गेंद खेलने में महारथी होते है. क्योंकि हमारे बल्लेबाज स्पिन को पिच से नहीं बल्कि गेंदबाज के हाथ से ही नाप लेते हैं.

रहाणे भी स्पिन के बेहतरीन खिलाड़ी हैं. सामान्य हालातों में वो भी रशीद की गूगली को आसानी से पढ़ लेते. लेकिन पांच गेंदे खेलने के बाद भी उनके पैरों में हरकत नहीं होना उनकी खराब फार्म का नतीजा है. एक साधारण सी गूगली को समझे बगैर गलत लाइन पर खेले और गेंद उनके बल्ले की जगह पैर पर आकर टकरा गई.

रिजर्व गेंदबाज भी बेकार बुलाए

खराब फार्म से गुजर रहे बल्लेबाजों का आत्मविश्वास डगमगा जाता है. उनके लिए फार्म में वापसी करने का सबसे बढ़िया तरीका यह होता है कि वो रणजी मैंचों में हाथ आजमाएं. रणजी में कमजोर गेंदबाजों की धुनाई कर आप अपना खोया हुआ आत्मविश्वास आसानी से वापस पा सकते हैं. लेकिन रहाणे ऐसा नहीं कर सकते. क्योंकि भारतीय चयनकर्ताओं ने 15 की टीम में न तो सलामी बल्लेबाजी के लिए, ने मध्यक्रम के लिए और न ही किसी और तरह से बल्लेबाजी का रिजर्व रखा ही नहीं है.

हैरानी की बात यह है कि रणजी खेल रहे तीन गेंदबाजों ईशांत, भुविनेश्वर और पाण्ड्या को टेस्ट टीम में शामिल कर बैठा लिया गया है. इससे भी ज्यादा हैरानी की बात यह है कि चयनकर्ताओं ने इसी टीम को आखिरी तीन टेस्टों मैचों के लिए बरकरार रखा है.

इसका मतलब यह है कि कोहली को इन्हीं बल्लेबाजों से काम चलाना पड़ेगा. फिर चाहे वह फार्म में रहे या नहीं.

तीसरे टेस्ट से पहले लोकेश राहुल और रिद्धिमान साहा का चोट के कारण बाहर हो जाना टीम के लिए बड़ा झटका था. उनकी जगह टीम मे आए पार्थिव पटेल ने इस बार तो चयनकर्ताओं की लाज बचा ली.

हालांकि चयनकर्ताओं को अपनी गलती सुधारने का एक और मौका मिल गया है. कंधे की चोट की कारण पाण्ड्या भी अगले छह हफ्ते के लिए मैदान से दूर रहेंगे.

स्पिनरों ने बचाई लाज

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Source: BCCI

तीसरे टेस्ट में भी चयनकर्ताओं की लाज टीम के स्पिनरों के कारण बच पाई है. अश्विन, जडेजा और जयंत यादव तीनों ने ही संकट के समय टीम को ने केवल उबारा बल्कि मजबूती भी दी.

बल्लेबाजी में अश्विन आराम से नंबर 5 या 6 के बल्लेबाज हो सकते हैं. उनका टेस्ट क्रिकेट में बल्लेबाजी औसत 35 है. उन्होने अपनी पिछली कुछ अन्तरराष्ट्रीय पारियों में 40, 5, 26, 32, 70, 7, 58 और 72 के स्कोर किए हैं. जयंत यादव ने भी तीन टेस्ट पारियों में दो बार नाबाद रहते हुए 27, 35 और 55 के स्कोर बनाकर सभी को प्रभावित किया है. जबकि जडेजा ने भी बल्ले के साथ टेस्ट क्रिकेट में टीम मैनेजमैंट का भरोसा हासिल किया है. उन्होंने टेस्ट में 17, 48, 50*, 40*, 6, 14, 17*, 32*, 12, 14, 0 और 90 के स्कोर कर सभी को प्रभावित किया है.

इन तीनों के प्रदर्शन ने उपरी क्रम के बल्लेबाजों की नाकामी को ढक लिया. लेकिन संकट के समय में इनके प्रदर्शन को हमेशा दोहराए जाने की उम्मीद बेमानी है.

अब यह जिम्मेदारी चयनकर्ताओं की है कि वो हवा में तीर चलाने की बजाय बल्लेबाजी को मजबूत करने पर ध्यान दें.

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