रविवार को फुटबॉल पर एक बार फिर नस्लवाद का दाग लग गया. जर्मनी के स्टार फुटबॉलर ओजिल ने इन सबसे परेशान होकर रविवार को अपने अंतरराष्ट्रीय करियर को हमेशा हमेशा के लिए अलविदा कह दिया है. वजह बताते हुए उन्होंने साफ कहा कि वह नस्लवाद और भेदभाव का शिकार हुए हैं और इसी वजह से टीम का साथ छोड़ रहे हैं.
वर्ल्ड कप में ग्रुप स्टेज से ही जर्मनी के बाहर हो जाने के बाद लोग लगातार ओजिल पर उंगलियां उठा रहे थे. उनके प्रदर्शन के साथ-साथ उन्हें तुर्की के प्रेसीडेंट तायिप एरदोगन के साथ तस्वीर लेने के कारण निशाने पर लिया जा रहा था.
ट्वीट कर ओजिल ने फुटबॉल संघ पर साधा निशाना
मई के महीने में वर्ल्ड कप से कुछ समय पहले ओजिल की एक तस्वीर वायरल हुई थी, जिसमें वह तुर्की के राष्ट्रपति के साथ नजर आ रहे थे. इसके बाद से जर्मनी टीम के लिए ओजिल की वफादारी पर सवाल उठाए जाने लगे. जर्मनी के बाहर होने के बाद यह सिलसिला इस तरह बढ़ा कि ओजिल को टीम को ही अलविदा कहना पड़ा. ओजिल ने ट्विटर पर तीन मैसेज पिक्चर डालकर अपने दिल की बात लोगों के सामने रखी. उन्होंने जर्मनी के फुटबॉल संघ डीएफबी के अध्यक्ष पर निशाना साधा कि इस मुश्किल समय में उन्होंने ओजिल का साथ नहीं दिया. उनके टीम के कोच जोकिम पर भी उन्होंने यही आरोप लगाया. उनका कहना था कि 'मेरे पास दो दिल हैं एक तुर्की तो एक जर्मनी के लिए हैं. अगर मेरी वजह से टीम जीते तो मैं जर्मन हूं और अगर हार गई तो एक शरणार्थी, यह गलत है. तुर्की के राष्ट्रपति के साथ तस्वीर खिंचाना मेरे राजनीतिक विचारों के लिए नहीं था बल्कि यह मेरी विरासत और पैतृक देश के लिए मेरा सम्मान करने का तरीका था इसे गलत तरह से लिया गया.'
The past couple of weeks have given me time to reflect, and time to think over the events of the last few months. Consequently, I want to share my thoughts and feelings about what has happened. pic.twitter.com/WpWrlHxx74
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II / III pic.twitter.com/Jwqv76jkmd
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III / III pic.twitter.com/c8aTzYOhWU
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उन्होंने आगे लिखा 'जर्मन टीम के लिए खेलते वक्त मेरे अंदर देशभक्ति की भावना आती थी, जुनून आता था लेकिन अब ऐसा नहीं है, इस वजह से अब मैं इसे दोबारा नहीं पहनूंगा.'
जातिवाद के चलते छोड़ा मैदान
फुटबॉल में नस्लवाद कुछ नया नहीं है. पिछले कुछ महीनों में ही कई बार यह खुलकर सामने आया है. एक सर्वे के मुताबिक इंग्लिश फुटबॉल लीग और प्रीमीयर लीग में इस तरह के नस्लवादी भेदभाव पिछले साल के मुकाबले 59 प्रतिशत बढ़ा है. वहीं लुइस सुआरेज, मिलान बारोस, जॉन टेरी जैसे खिलाड़ियों पर भी इस तरह के आरोप लगाए जा चुके हैं.
पिशकारा के मिडफील्डर सुली मुंटारी ने नस्लवाद और जातिवाद के चलते ही मैच के दौरान मैदान छोड़ दिया था. पिछले साल इटली की टॉप लीग में खेलते हुए घाना के इस मिडफील्डर पर फैंस ने नस्लवादी कमेंट किए गए थे, जिसके बाद जब उन्होंने रेफरी से इस बारे में शिकायत की तो उन्हें येलो कार्ड दिखाकर मैदान से बाहर कर दिया गया, इससे वह बेहद निराश हुए थे. उन्होंने कहा था कि अगर ऐसा दोबारा होता है तो एक बार फिर मैदान छोड़कर बाहर चले जाएंगे. इस घटना ने फीफा और यूईएफए के नस्लवाद के खिलाफ चलाए जा रहे अभियानों की पोल खोल के रख दी जो खेल में इसके कम होने का दावा करते आ रहे हैं.
फ्रांस एक अपवाद
इस वर्ल्ड में जीतने वाली टीम फ्रांस शायद जर्मनी के लोगों के लिए सबसे बड़ा उदाहरण हैं. फ्रांस की 23 सदस्यों वाली टीम में 14 खिलाड़ी ऐसे हैं, जो कि अफ्रीकी मूल से ताल्लुक रखते हैं. यानि 60 फीसदी से ज्यादा खिलाड़ी अफ्रीकी मूल से संबंध रखते हैं. एम्बाप्पे, सैमयूल उम्तीती और पॉल पोग्बा ऐसे ही खिलाड़ियों में हैं जो अफ्रीकी मूल के हैं और अभी भी इसे जुड़ाव महसूस करते हैं.
जिस टीम में आधे से ज्यादा खिलाड़ी दूसरी देशों के मूल निवासी हैं लेकिन फ्रांस ने ना सिर्फ उन्हें सिर आंखों पर बिठाया बल्कि जीत के बाद वो सब पूरे देश के लिए हीरो बन गए. शायद जातिवाद को खत्म करने की ये लड़ाई अभी लंबे चलने वाली है.
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