कप्तान के तौर पर विराट कोहली के दो साल पूरे होने वाले हैं. ये समय कई मायनों में अलग रहा है. आक्रामक, हमेशा आगे बढ़कर खेलना पहले दिन से विराट की खासियत रहा है. जीतने के लिए खेलते हैं. जब तक बहुत जरूरी न हो, ड्रॉ उनके दिमाग में नहीं होता. कोहली की टीम संघर्ष में कभी पीछे नहीं रहती. कभी-कभी अपने कप्तान की छवि की ही तरह सामने वालों से भिड़ जाने में नहीं हिचकते. मीडिया के साथ कप्तान की बातचीत में भी पिछले कप्तानों के मुकाबले ज्यादा खुलापन दिखता है.
कई बार पांच गेंदबाजों को टीम में खिलाया गया है. हालांकि इसकी जिद नहीं दिखी, जो उम्मीद कोहली से थी. उन्होंने एक बॉलिंग ऑलराउंडर के साथ चार गेंदबाजों को खिलाया है. उन्होंने चार गेंदबाजों को छह विशेषज्ञ बल्लेबाजों के साथ खिलाया है. कुल मिलाकर अपने रुख में लचीलापन दिखाते रहे हैं कोहली.
तेज गेंदबाजों का बदला अंदाज
कोहली के बाद भारतीय तेज गेंदबाजों का असर और छवि पॉजिटिव तरीके से बदली है. जब कप्तान ने टीम की जिम्मेदारी पहली बार संभाली थी, तो उनका सबसे पहला फोकस गेंदबाजों की हौसलाअफजाई था. इससे पहले कई बार तेज गेंदबाजों को कमजोर कड़ी माना जाता था.
टीम के साथ कामयाबी का जश्न मनाते विराट कोहली.
दो साल बाद छवि बदल रही है. अब तेज गेंदबाज ज्यादा बड़े रोल में दिखाई दे रहे हैं. वे कंधे पर हाथ रखे कप्तान का साथ देते नजर आ रहे हैं. यहां पर महेंद्र सिंह धोनी के मुकाबले कोहली अलग नजर आते हैं. कई बार धोनी सार्वजनिक तौर पर तेज गेंदबाजों को लताड़ चुके हैं. उन्होंने एक बार कहा था कि तेज गेंदबाजों को अपना दिमाग ज्यादा इस्तेमाल करने की जरूरत है.
कोहली ने तेज गेंदबाजों के रोल को ज्यादा अहमियत दी है. विशाखापत्तनम में इंग्लैंड पर जीत के बाद उन्होंने कहा भी, ‘हम सिर्फ स्पिनर्स के साथ नहीं, तेज गेंदबाजों के साथ भी खेलते हैं. जीत में उनका योगदान अहम है.’
कहा जा सकता है कि धोनी भी अपने रवैये में सही थे. वह एक पेशेवर तरीके से गेंदबाजों को डील करते थे – अगर आप भारतीय क्रिकेट टीम में आने लायक हैं, तो आपको अपना काम पता होना चाहिए. फिर आपका हाथ पकड़कर आगे बढ़ाने की जरूरत नहीं है.
दूसरी तरफ कोहली हमेशा मदद का हाथ बढ़ाने को तैयार रहते हैं. कोहली को टेस्ट में आक्रामकता के बारे में अंदाजा है. उन्हें पता है कि विदेश में टेस्ट कप्तान के तौर पर कामयाबी पाने के लिए आपको विश्वास से भरी और आक्रामक तेज गेंदबाजी की जरूरत है. उनका तरीका सही साबित हो रहा है.
तेज गेंदबाजों का जीत में बड़ा रोल
मोहम्मद शमी ने दूसरे टेस्ट में जिस तरह एलिस्टर कुक का ऑफ स्टंप तोड़ था, वो एक तरह से प्रतीक था. दुनिया के बेहतरीन बल्लेबाज को जिस तरह क्रीज का इस्तेमाल करते हुए चकमा दिया, वो भी स्पेशल था. जिस तरह उमेश यादव ने इसी टेस्ट की पहली पारी में बेन स्टोक्स और जॉनी बेयरस्टो के बीच 110 रन की साझेदारी तोड़ी, वो कमाल था. उम्मीदें और जिम्मेदारी बदलती दिख रही हैं. भारतीय तेज गेंदबाजों को एक समय स्पिनर को आराम देने के लिए आक्रमण पर लगाया जाता था, अब वे पूरी तरह गेम में जुड़े हुए हैं. लक्ष्य ज्यादा ऊंचे हैं. कोहली के छोटे से कार्यकाल में तेज गेंदबाजों का असर साफ दिखाई देता है.
मोहम्मद शमी इंग्लैंड के खिलाफ विकेट लेने के बाद.
कोलंबो में इशांत शर्मा के पांच विकेट की मदद से कोहली ने पिछले साल पहली सीरीज जीती थी. भुवनेश्वर कुमार के पांच विकेटों की मदद से न्यूजीलैंड के खिलाफ कोलकाता टेस्ट जीतने में मदद मिली. इसी मैच में शमी ने दोनों पारियों में 3-3 विकेट लिए थे.
भुवी ने इससे पहले वेस्ट इंडीज में दो महीना पहले पारी में पांच विकेट लिए थे. पिछले साल दिल्ली टेस्ट में दक्षिण अफ्रीकी निचले क्रम को यादव ने झकझोर दिया था. शमी ने भी ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ पांच और वेस्ट इंडीज के खिलाफ चार विकेट पारी में लिए थे.
इसके साथ हमें ध्यान रखना चाहिए कि इंग्लैंड के खिलाफ राजकोट टेस्ट में यादव को खराब फील्डिंग की वजह से नुकसान उठाना पड़ा. इसी तरह इशांत ने भले ही दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ एक ही विकेट लिया हो, लेकिन स्पैल अच्छा था.
तेज गेंदबाजों के साथ अपनी योजनाओं को तैयार करना कोहली के लिए आसान नहीं था. चोट और बीमारी ने लगातार तेज गेंदबाजों को टीम में अंदर-बाहर किया है. इशांत बीमारी और निलंबन से बाहर हुए. भुवी और शमी लंबे समय तक चोटिल रहे हैं.
कोहली की कप्तानी के 19 टेस्ट में महज पांच बार ऐसा ही हुआ है कि दो लगातार टेस्ट मैचों में एक जैसा गेंदबाजी आक्रमण हो. किसी तेज गेंदबाज ने 12 से ज्यादा मैच नहीं खेले हैं. इशांत और यादव ने 12-12 खेले हैं। शमी ने 11 टेस्ट खेले हैं, लेकिन सबसे ज्यादा 33 विकेट लिए हैं. भुवी ने सबसे कम चार मैच खेले हैं, लेकिन बेस्ट औसत (करीब 23) है. वरुण एरॉन अभी तक कभी टीम में नहीं आ पाए हैं.
साफ है कि तेज गेंदबाज कोहली की कप्तानी में शानदार प्रदर्शन की कोशिश कर रहे हैं. कोहली का भी भरोसा उनमें बढ़ता जा रहा है, जो भारतीय क्रिकेट के लिए अच्छे संकेत हैं.
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