पंजाबी भांगड़ा गाने और जश्न के शोर के बीच शुभमन गिल से बातचीत उनके पिता लखविंदर सिंह गिल का फोन नंबर भेजने की गुजारिश के साथ खत्म हुई. एक मिनट के बाद फोन की स्क्रीन पर डिजिटल विजिटिंग कार्ड था. शुभमन द्वारा फॉरवर्ड कार्ड ‘भापा जी,’ ‘पापा ’ या ‘डैडी’ के नाम से नहीं, बल्कि ‘गॉडफादर’ के नाम से सेव था.
“मेरे फादर ने बहुत कुर्बानियां दी हैं मेरे लिए. मेरा क्रिकेट और यह वर्ल्ड कप उनके लिए हैं.,” भावुक शुभमन फैसला कर चुके थे कि घर पहुंच कर अपनी पेशेवर जिंदगी का सबसे बेहतरीन तोहफा उन्हें किसके साथ और कैसे बांटना है.
अंडर-19 विश्व कप में भारतीय टीम में पाकिस्तान के खिलाफ शतक के अलावा तीन अर्धशतकों के साथ सबसे अधिक 372 रन बनाने वाले नंबर तीन के इस बल्लेबाज के पास पिता के लिए भावुक होने के हजारों कारण हैं.
किसान के लिए जमीन मां से बढ़कर होती है और एक पिता के लिए औलाद उसका जिगर. लखविंदर को करीब एक दशक पहले बेटे के क्रिकेट के लिए इस मां से दूर होने का मुश्किल फैसला करना पड़ा. लखविंदर अमीर किसान हैं और फाजिल्का जिले के जलालाबाद हल्के के जयमल सिंहवाला गांव में उनकी दूर-दूर तक दिखाई देने वाली खेती है.
बचपन में खिलौनों की जगह बैट-बॉल के लिए जिद करने वाले बेटे ने क्रिकेटर बनने का सपना देखा था, इसलिए लखविंदर ने गांव छोड़कर मोहाली में बसने का फैसला किया.
साल में तीन चार फसलों के लिए सैकड़ों बार पिता मोहाली से 320 किलोमीटर दूर फाजिल्का जाते, काम करते और फिर अपने अकेले बेटे के क्रिकेट के शौक को बड़ा करने में जुट जाते.
‘मैं बहुत खुश हूं. इसके लिए मैंने खराब समय भी देखा है, लेकिन मैं उसे बुरा नहीं कहूंगा क्योंकि यह सब जिंदगी का हिस्सा है.’ 46 साल के लखविंदर बेटे गिल की इस यात्रा के अहम पड़ाव पर बहुत खुश हैं. वह कहते हैं, ‘इसके क्रिकेट के कारण मैं अपने परिवार की कई शादियों में नहीं गया और बहुत कुछ ऐसा करना पड़ा जो रिश्तेदारी में बदनामी का सबब हो सकता था. लेकिन मेरे सामने बेटे का सपना था जो वह तीन साल की उम्र से देख रहा है. मैंने उसे अपने तकिए के नीचे बैट रख कर सोते देखा है.’
असल में पिता लखविंदर बेटे की अब तक की इस यात्रा में उनके सारथी रहे हैं. अनेकों बार हुआ जब शुभमन को सुबह मैच खेलना होता था. तब पिता फाजिल्का में खेतों पर काम निपटाकर ओवरनाइट ड्राइव के बाद भी उसे पटियाला या पंजाब के किसी दूसरे हिस्से के क्रिकेट ग्राउंड तक छोड़ने जाते थे.
अपनी जमीन और बेटे के सपने को साकार करने की यात्रा के बीच अनेकों बार तय किए 320 किलोमीटर के सफर के बारे में लखविंदर बताते हैं, ‘शुभमन का कोई और शौक नहीं है, क्रिकेट के अलावा. ना बाइक है और ना ही उसने कार रखी है. मेरे पास इनोवा कार है और मेरी जिम्मेवारी उसे लाने-ले जाने की रहती है. वाहेगुरु की मेहर है कि मैं अपने बेटे के मैच लिए कभी लेट नहीं हुआ. उसका पूरा शेड्यूल मेरी उंगलियों पर रहता है.’
विश्व कप जीतने के बाद शुभमन ने पिता को फोन किया. ज्यादा बात नहीं हो पाई, लेकिन पिता को जो चाहिए था, उसका वादा बेटे ने कर दिया था.
‘शूबी ने जब फोन किया तो न्यूजीलैंड में सुबह के चार बजे थे. उसने कहा कि उसने पैकिंग कर ली है और टीम संडे को वहां से निकलेगी. फिर बोला, मैं आकर थुआंनू घुट के झप्पी पाड़ीं आ. (मैंने आने के बाद आपको जोर से गले लगाना है).”
जाहिर है कि यह एक बेटे का अपने पिता के लिए इससे अच्छा शुक्राना नहीं हो सकता.
यकीनन पिता के लिए यह झप्पी पृथ्वी शॉ और उनकी पूरी टीम के आईसीसी ट्रॉफी उठाने की खुशी से कहीं ज्यादा सुकून और संतोष देने वाली होगी.
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