पिछले सालों में बल्लेबाजी के तौर तरीकों में बहुत फर्क आया है. जितना फर्क बल्लेबाजी में आया है उतना गेंदबाजी में नहीं आया है. खेल बल्लेबाज के पक्ष में झुकता चला गया है और यह गेंदबाजों का कमाल ही है कि वे बिना किसी तकनीकी परिवर्तन के उन्हीं सीमाओं के अंदर नए नए हथियार खोजते रहते हैं. सबसे बड़ा बदलाव तो यह हुआ है कि पिचें बल्लेबाजों के लिए ज्यादा अनुकूल होती जा रही हैं.
नहीं ढकी जाती थीं पिचें
नए लोगों को यह जानकर शायद आश्चर्य हो कि एक वक्त में पिच को ढंकने का रिवाज तक नहीं था. ऐसे में बारिश हो जाने पर पिच गीली हो जाती थी और बारिश रुकने पर बल्लेबाजों को सूखती हुई पिच पर खेलना पड़ता था. सूखती पिच पर बल्लेबाजी करना मुश्किल ही नहीं तकरीबन नामुमकिन होता था. एक मजेदार किस्सा है, सन 1948 के ऑस्ट्रेलिया दौरे पर तीसरे टेस्ट मैच में एक रात बारिश हो गई, तो भारत के कप्तान लाला अमरनाथ ने आगे बल्लेबाजी करने की बजाय पारी घोषित कर दी ताकि ऑस्ट्रेलिया को सूखती पिच पर बल्लेबाजी करनी पड़े, हालांकि भारत का स्कोर तब ऑस्ट्रेलिया से कम था. लेकिन ऑस्ट्रेलिया के कप्तान डॉन ब्रैडमैन ने भी चतुराई की. उन्होंने बल्लेबाजी का क्रम उलट दिया और नंबर ग्यारह और दस के बल्लेबाजों को ओपन करने भेज दिया. इन बल्लेबाजों ने कुछ वक्त तो निकाल ही दिया, तीन विकेट निकल गए, लेकिन इस बीच पिच सूख गई. इसके बाद आर्थर मॉरिस और ब्रैडमैन आए. दोनों ने शतक जमाए और अंत में ऑस्ट्रेलिया ने वह टेस्ट जीत लिया.
रक्षात्मक साधनों ने खत्म किया बल्लेबाजों का डर
विकेट ढंकना शुरू होने से बल्लेबाजों को बड़ी राहत मिली. इसके बाद धीरे-धीरे पिचें भी बल्लेबाजी के ज्यादा अनुकूल बनने लगीं. पिच की गुणवत्ता को लेकर आईसीसी के सख्त नजरिए की वजह से भी स्थानीय क्रिकेट संगठन ज्यादा सतर्क हो गए, क्योंकि मैच रेफरी की प्रतिकूल टिप्पणी से काफी नुकसान होने का अंदेशा रहता है.
दूसरा बड़ा फर्क बल्लेबाजी के साजोसामान में बदलाव की वजह से हुआ. सबसे क्रांतिकारी बदलाव तो हेलमेट की वजह से हुआ, जिससे बल्लेबाजों को सिर पर चोट लगने का डर लगभग खत्म हो गया. इसके बाद और भी रक्षात्मक साधन आए और पुराने रक्षात्मक साधन बेहतर हुए. आज से पचास साल पहले तो थाईगार्ड भी नहीं होता था, बल्कि ओपनिंग बल्लेबाज यदाकदा तेज गेंदों की चोट से बचने के लिए जांघों पर तौलिये बांध लेते थे. वेस्टइंडीज के तेज गेंदबाजों के खौफ के दौर में अंग्रेज बल्लेबाजों ने चेस्टगार्ड पहनना शुरू किया. कोहनी तो बचाने के लिए सुनील गावस्कर ने एल्बोगार्ड का अविष्कार किया. गावस्कर ने ही फाइबरग्लास से बने हल्के पैड भी इजाद किए.
बल्लों में भी आया बदलाव
बल्लेबाजी में बहुत बड़ा फर्क बल्लों में बदलाव से आया. बल्ले ज्यादा भारी और चौड़े होने लगे. पुराने दौर में टेस्ट खिलाड़ियों के पास भी ज्यादा से ज्यादा दो तीन बल्ले होते थे, इसलिए उन्हें बचाए रखना बहुत जरूरी था. नवाब पटौदी की तो आदत थी कि वे अपने आप कोई बल्ला नहीं रखते थे, सामने किसी भी खिलाड़ी का बल्ला दिखता था, उसे लेकर बल्लेबाजी करने चल देते थे. सुनील गावस्कर ने नवाब पटौदी मेमोरियल लेक्चर में बताया कि पटौदी जिस भी खिलाड़ी का बल्ला लेकर बल्लेबाजी करते थे, वह पटौदी के अच्छा खेलने पर शान तो बघारता था. लेकिन यह डर भी उसे लगा रहता था कि अगर बल्ला टूट फूट गया तो मुसीबत हो जाएगी.
जब खिलाड़ियों के पास अच्छा पैसा आने लगा और बल्ला बनाने वाली कंपनियां बडे खिलाड़ियों के लिए बल्ले मुफ्त में देने लगीं तो खिलाड़ियों का यह डर खत्म हो गया. पहले बल्ले ऐसे बनते थे कि ज्यादा दिन चलें, इसलिए उनकी लकड़ी को दबाकर उसकी मजबूती और घनत्व बढ़ाने की कोशिश की जाती थी, लेकिन उससे बल्ले की लकड़ी का लचीलेपन कम हो जाता था. इसे बल्ले से टकराकर गेंद कम दूरी तक जा पाती थी.
अब खिलाड़ियों को बल्ला टूटने की परवाह नहीं है इसलिए लकड़ी को दबाया नहीं जाता, ऐसे में बल्ले का स्ट्रोक बढ़ जाता है. आजकल जो गेंद बाहरी किनारा लेकर थर्डमैन पर सीमा के पार जाकर गिरती है, उसकी वजह यह है. आजकल बल्ले की एकाध चिप्पी निकल जाने पर जैसे बारहवां खिलाड़ी चार- पांच बल्ले लेकर दौड़ता है, यह पुराने दौर के बल्लेबाजों के लिए आश्चर्य लोक के नजारे जैसा है. पहले के बल्लेबाजों के बल्ले तो जगह-जगह टेप चिपकाए हुए किसी राणा सांगा की तरह दिखते थे. बल्लों की चौड़ाई तो इन दिनों ऐसी बढ़ गई कि आईसीसी को उस पर नियंत्रण के लिए नियम बनाना पड़ा.
आधुनिकता ने बदला खेल
इन सब तकनीकी वजहों के अलावा सीमित ओवरों के क्रिकेट ने भी बल्लेबाजी की तकनीक बहुत बदल दी. इसीलिए आजकल कमेंट्री में अक्सर यह मुहावरा सुनने में आता है कि ‘मॉडर्न डे बैट्समैन’ ऐसा करते हैं या उनकी मानसिकता ऐसी होती है. दुनिया में मॉडर्निटी या आधुनिकता, औद्योगिक क्रांति के साथ आई, लेकिन क्रिकेट का तो इतिहास ही औद्योगिक क्रांति के बाद शुरू होता है, इसलिए उसमें आधुनिकता भी पिछले तीन चार दशकों से ही आई मानी जाती है, उसके पहले का दौर तो पूर्वआधुनिकता का दौर है.
कमेंट्री करने वाले ज्यादातर खिलाड़ी परिवर्तन के दौर साक्षी और भागीदार रहे हैं, इसलिए वे इसे बेहतर ढंग से समझ सकते हैं. बल्लेबाजी में इन बदलावों का असर खेल की रणनीति, गेंदबाजी और क्षेत्ररक्षण पर भी पड़ा है. इसकी चर्चा अगली बार करेंगे कि क्रिकेट के इस आधुनिक युग में क्या-क्या बदला.
हंदवाड़ा में भी आतंकियों के साथ एक एनकाउंटर चल रहा है. बताया जा रहा है कि यहां के यारू इलाके में जवानों ने दो आतंकियों को घेर रखा है
कांग्रेस में शामिल हो कर अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत करने जा रहीं फिल्म अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर का कहना है कि वह ग्लैमर के कारण नहीं बल्कि विचारधारा के कारण कांग्रेस में आई हैं
पीएम के संबोधन पर राहुल गांधी ने उनपर कुछ इसतरह तंज कसा.
मलाइका अरोड़ा दूसरी बार शादी करने जा रही हैं
संयुक्त निदेशक स्तर के एक अधिकारी को जरूरी दस्तावेजों के साथ बुधवार लंदन रवाना होने का काम सौंपा गया है.