इसका व्यावसायिक या आर्थिक मतलब कुछ भी हो, श्रीलंकाई क्रिकेट टीम के वर्तमान भारत दौरे का क्रिकेट के लिहाज से कोई खास मतलब नहीं है. अभी-अभी भारतीय टीम श्रीलंका के दौरे से लौटी है जहां उसने श्रीलंकाई टीम को उसके अपने मैदानों पर ज़ोरदार ढंग से हराया है. श्रीलंका टीम की जो भी स्थिति हो, उसे श्रीलंका में हराना एक उपलब्धि है. उसके तुरंत बाद उसे भारत बुलाकर हराने में कोई चुनौती नहीं है, लेकिन बीसीसीआई के तौर तरीके हम जैसे लोगों की ही नहीं सुप्रीम कोर्ट और उसके नियुक्त विद्वान लोगों की समझ और पहुंच के बाहर हैं. अब इस दौरे को भारतीय टीम दक्षिण अफ्रीका के दौरे की तैयारी के लिए कैंप की तरह इस्तेमाल कर रही है, हालांकि उस दौरे को काट-छांट कर छोटा कर दिया गया है.
इस श्रीलंकाई दौरे की एक उपलब्धि यह है कि कुछ खिलाड़ियों को अपना व्यक्तिगत रिकॉर्ड बेहतर करने का मौका मिल गया है. इसमें अब तक सबसे महत्वपूर्ण रिकॉर्ड रोहित शर्मा का तीसरा एकदिवसीय दोहरा शतक है. रोहित शर्मा के अलावा कोई बल्लेबाज दो दोहरे शतक तक भी नहीं पहुंचा है. किसी को भी रोहित की बराबरी करने के लिए भारी मशक्कत करनी पड़ेगी.
रोहित शर्मा जब रन बनाते हैं तो उन्हें देखना क्रिकेटप्रेमियों के लिए पैसा वसूल अनुभव होता है. एक वक्त के बाद ऐसा लगता है कि जैसे गेंदबाज भी इसीलिए गेंदबाजी कर रहे हैं ताकि रोहित मनचाहे शॉट लगा कर लोगों को आनंद दे सकें. इसीलिए जब वह बाद के सौ सवा सौ रन 35-40 गेंदों में बनाते हैं तो ऐसा नहीं लगता कि वह कोई जोखिम उठा रहे हैं. वह शुद्ध किताबी शॉट खेलते हुए लगातार छक्के मारते रहते हैं. इसलिए भी रोहित की बराबरी करना दूसरे बल्लेबाजों के लिए मुश्किल होगा, क्योंकि इस गति से रन बनाने के लिए उन्हें खतरा मोल लेना होगा और उनके आउट होने की आशंका बढ़ जाएगी.
वनडे का दोहरा शतक बनाम टेस्ट का तिहरा शतक
क्या हम एक दिवसीय क्रिकेट में दो सौ रन बनाने की तुलना टेस्ट में तीन सौ से ज्यादा रन बनाने से कर सकते हैं? एक मायने में एक दिवसीय क्रिकेट में दो सौ बनाना टेस्ट में तीन सौ बनाने से ज्यादा मुश्किल है. इसकी वजह यह है कि एक दिवसीय क्रिकेट की एक इनिंग में सिर्फ तीन सौ जायज गेंदें हैं, जिनमें से एक बल्लेबाज के हिस्से में लगभग डेढ़ सौ गेंदों से ज्यादा नहीं आ सकतीं. यानी उसे लगभग एक 135 के स्ट्राइक रेट से रन बनाने हैं. इस ताबड़तोड़ गति से रन बनाने की कोशिश में खतरे बहुत हैं इसलिए इस कीर्तिमान तक पहुंचना ज्यादा मुश्किल हो जाता है.
ओपनर ही बना सकते हैं वनडे में दोहरा शतक
इस कीर्तिमान को टेस्ट के तिहरे शतक की बराबरी में रखने में एक दिक्कत है कि इस कीर्तिमान तक पहुंचने की कोशिश व्यावहारिक रूप से सिर्फ ओपनिंग बल्लेबाज कर सकते हैं. अभी तक जिन भी बल्लेबाजों ने यह कीर्तिमान बनाया है वे सभी ओपनिंग बल्लेबाज हैं. क्योंकि वे ही हैं जिन्हें हर इनिंग में पूरे पचास ओवर खेलने का मौका मिलता है. बाकी बल्लेबाजों को इससे कम ही ओवर खेलने को मिलते हैं.
यह हो सकता है कि कभी विराट कोहली ऐसा करिश्मा कर दिखाएं, लेकिन ऐसे मील के पत्थर को हम सार्वभौमिक कीर्तिमान नहीं मान सकते जिसे व्यावहारिक तौर पर सिर्फ ओपनिंग बल्लेबाज ही हासिल कर सकें. टेस्ट क्रिकेट में तीन सौ रन बनाने के लिए ऐसी कोई अनिवार्यता नहीं है. माइकल क्लार्क, ब्रेंडन मैकुलम, करुण नायर जैसे बल्लेबाजों ने पांचवें नंबर पर बल्लेबाजी करते हुए तीन सौ रन बनाए, जबकि एकदिवसीय क्रिकेट में पांचवें नंबर के बल्लेबाज के लिए दो सौ रन बनाने का अवसर लगभग है ही नहीं.
टेस्ट में 300 रन बनाना हुआ पहले से आसान
टेस्ट क्रिकेट में तीन सौ रन बनाना मुश्किल तो है ही, लेकिन ऐसा लगता है कि वक्त के साथ यह अपेक्षाकृत आसान हो गया है. टेस्ट क्रिकेट के इतिहास में अब तक कुल तीस तिहरे शतक लगे हैं. इनमें से 19 क्रिकेट के आधुनिक युग में यानी हेलमेट आने के बाद लगे हैं और इनमें से भी 15 सिर्फ पिछले पंद्रह साल में लगे हैं.
क्या बल्लेबाजों के उपकरण के बेहतर होने और पिचों के बल्लेबाजी के अनुकूल होने से तिहरे शतक लगाना आसान हो गया है ? यह एक वजह हो सकती है, लेकिन यह एकमात्र वजह नहीं है. अगर ऐसा होता तो यह क्यों हुआ कि अस्सी के दशक में एक भी तिहरा शतक नहीं है. सन 1974 में लॉरेंस रो के तिहरे शतक के बाद अगला तिहरा शतक ग्राहम गूच ने सन 1990 में लगाया. दरअसल सन 1958 में गैरी सोबर्स के तिहरे शतक के बाद सन 1990 के गूच के शतक के बीच 32 साल में सिर्फ चार तिहरे शतक हैं.
तिहरे शतक लगाने वाले ज्यादातर बल्लेबाज आक्रामक
इसका अर्थ यह है कि टेक्नॉलाजी से ज्यादा बल्लेबाजों के बल्लेबाजी के तरीके ने तिहरे शतक लगाए जाने पर असर डाला है. लोग यह सोचते हैं कि तिहरा शतक वे बल्लेबाज लगा सकते हैं जो लंबे वक्त तक विकेट पर टिके रहने में माहिर होते हैं. यानी रक्षात्मक बल्लेबाजों के ऐसी इनिंग खेलने की ज्यादा संभावना होती है.
लेकिन अगर आप तिहरे शतक लगाने वाले बल्लेबाजों की लिस्ट पर नजर डालें तो इसमें सर लेन हटन और हनीफ मोहम्मद जैसे अपवादों को छोड़कर ज्यादातर आक्रामक और तेज गति से खेलने वाले बल्लेबाज हैं यानी वीरेंद्र सहवाग का इस लिस्ट में होना अपवाद नहीं, बल्कि नियम की तसदीक करता है. दो बार तिहरा शतक लगाने वाले पहले बल्लेबाज सर डॉन ब्रैडमैन ने एक तिहरा शतक एक दिन में लगाया था,लंच के पहले एक शतक, चाय तक दूसरा और आखिरी सत्र में तीसरा शतक.
साठ, सत्तर और अस्सी के दशक में लगे सबसे कम तिहरे शतक
शायद धीमी गति से बल्लेबाजी करने वाले बल्लेबाज इतनी लंबी पारी खेलने तक अपना दमखम और एकाग्रता नहीं बनाए रख पाते जितनी तिहरा शतक लगाने के लिए जरूरी है. इसीलिए साठ, सत्तर और अस्सी के दशक में सबसे कम तिहरे शतक लगे. क्योंकि यह धीमी बल्लेबाजी का दौर था, जब दिन में सवा दो सौ, ढाई सौ रन बनना आम नियम था. कभी-कभी इससे कम रन भी बनते थे. 21वीं शताब्दी में अब तक पंद्रह तिहरे शतक लगने की वजह भी यही लगती है कि इन दिनों खेल आम तौर पर ज्यादा आक्रामक हुआ है. सीमित ओवरों के खेल के असर की वजह से बल्लेबाजों की टेस्ट में बड़ी पारी खेलने की क्षमता कम नहीं, बल्कि ज्यादा हुई है.
इसलिए रोहित से ज्यादा कीर्तिमानों की उम्मीद की जा सकती है और दूसरे बल्लेबाजों से उन्हें चुनौती देने की भी. इसलिए क्रिकेट प्रेमियों को भी भरपूर मजा आने की उम्मीद है, भले ही क्रिकेट संगठन बेमतलब के दौरे करवाता रहे.
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