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संडे स्‍पेशल: विराट कोहली-रोहित शर्मा जैसे खिलाड़ी लौटा सकते हैं घरेलू प्रतियोगिताओं में फुटबॉल जैसी चमक

जहां आज भी फुटबॉल अपने शुरुआती स्‍वरूप में चमक रहा है, वहीं क्रिकेट में घरेलू से ज्‍यादा अंतरराष्‍ट्रीय मुकाबले लोकप्रिय होने लगे

Updated On: Feb 10, 2019 10:14 AM IST

Rajendra Dhodapkar

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संडे स्‍पेशल: विराट कोहली-रोहित शर्मा जैसे खिलाड़ी लौटा सकते हैं घरेलू प्रतियोगिताओं में फुटबॉल जैसी चमक

क्रिकेट और फुटबॉल का शुरुआती दौर एक जैसा ही था. दोनों इंग्लैंड में घरेलू प्रतियोगिताओं की तरह लोकप्रिय हुए और इसी दौरान उनका विकास हुआ , यानी दोनों का मुख्य स्वरूप घरेलू प्रतियोगिताओं का ही था और कभी कभार अंतरराष्ट्रीय मैच भी हो जाते थे. फुटबॉल का यह स्वरूप आज भी है. फुटबॉल का ज्यादा लोकप्रिय और बुनियादी स्वरूप इंग्लिश प्रीमियर लीग , ला लीगा और बुंडसलीगा जैसी घरेलू प्रतियोगिताएं हैं और इन प्रतियोगिताओं की लोकप्रियता और दर्शकों का लगाव जैसा इन प्रतियोगिताओं और इनकी टीमों से है वैसा राष्ट्रीय टीमों और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं से नहीं है. जो वफादारी मैन यू या बार्सिलोना जैसी टीमों को हासिल है वैसी इंग्लैंड या स्पेन की टीमों की नहीं है.

Nagpur: Saurashtra players celebrate the dismissal of Vidarbha batsman Wasim Jaffer on the fourth day of the Ranji Trophy Final cricket match, in Nagpur, Wednesday, Feb. 06, 2019. (PTI Photo/ Shirish Shete)(PTI2_6_2019_000018B)

क्रिकेट में ठीक इससे विपरीत हुआ. धीरे-धीरे घरेलू प्रतियोगिताएं अपना रंग खोने लगीं और अंतरराष्ट्रीय मुकाबले ज्यादा लोकप्रिय होने लगे. अब तो घरेलू प्रतियोगिताओं के लिए दर्शक जुटना मुश्किल होने लगे हैं. तमाम क्रिकेट बोर्ड अंतरराष्ट्रीय मैचों से कमाते हैं और घरेलू क्रिकेट में उस पैसे का कुछ हिस्सा लगाते हैं. वैसे जो मज़ा किसी घरेलू प्रतियोगिता का होता है वह अंतरराष्ट्रीय मैचों का नहीं होता. जैसे रणजी ट्रॉफी में शुरुआती मैचों से लेकर फाइनल तक एक कहानी बनती है, वह बड़ी दिलचस्प होती है. टीमों का भाग्य हिचकोले खाता चलता है, एक एक अं‍क के लिए संघर्ष होता है. कभी कोई खिलाडी, कभी कोई खिलाड़ी हीरो बनता है. रहस्य, रोमांच, इमोशन, जज्‍बे से भरी यह यात्रा पूरे सीजन भर चलती है और बड़े जद्दोजहद के बाद दो टीमें फाइनल में पहुंचती हैं और करीब पांच महीने की यह यात्रा इस क्लाइमेक्स पर खत्म होती है.

India's captain Virat Kohli (L) celebrates with teammates as they pose with the trophy after winning the Test series between India and Australia at the Sydney Cricket Ground on January 7, 2019. (Photo by David GRAY / AFP) / -- IMAGE RESTRICTED TO EDITORIAL USE - STRICTLY NO COMMERCIAL USE --

आजकल अंतरराष्ट्रीय मैचों में ऐसी कोई कहानी, ऐसा कोई कथानक नहीं बनता. दो टीमें फटाफट कुछ मैच खेलती हैं और जब तक उनकी कोई स्थायी याद बने, वे टीमें कहीं और, किन्हीं और टीमों के साथ मैच खेलने पहुंच जाती हैं. ऑस्ट्रेलिया से निकल कर भारतीय टीम अभी न्यूजीलैंड में है और इस बीच श्रीलंका की टीम ऑस्ट्रेलिया में दो टेस्ट मैच हार भी चुकी है. ऑस्ट्रेलिया के खिलाड़ियों और दर्शकों को इस बीच इतना मौका भी नहीं मिला होगा कि वे भारत के खिलाफ संघर्षपूर्ण सीरीज के बारे में सोच सकें. उस सीरीज की बातें याद भी कर सकें. भारत की टीम भी ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ ऐतिहासिक जीत का मजा ले सके. इसके पहले ही न्यूजीलैंड के खिलाफ एकदिवसीय सीरीज भी शुरु हो कर खत्म हो गई. कम से कम हम जैसे पुराने जमाने के लोगों को इतनी रफ्तार रास नहीं आती.

Nagpur: Vidarbha team players celebrate after defeating Saurashtra in the final cricket match of the Ranji Trophy 2018- 19, in Nagpur, Thursday, Feb. 07, 2019. Defendng champions Vidarbha won the 85th Ranji Trophy title, beating Saurashtra by 78 runs in the summit clash. (PTI Photo/Shirish Shete)(PTI2_7_2019_000024B)

बहरहाल , भारत में रणजी ट्रॉफी फाइनल हो गया और विदर्भ की टीम सौराष्ट्र को हराकर लगातार दूसरी बार फाइनल में जीत गई. दोनों टीमों में एक समानता थी, दोनों टीमों में ऑस्ट्रेलिया से लौटा एक एक खिलाडी था. विदर्भ में उमेश यादव थे और सौराष्ट्र में चेतेश्वर पुजारा. दोनों खिलाडी क्वार्टर फ़ाइनल , सेमीफ़ाइनल और फाइनल यानी अपनी टीमों के लिए तीन- तीन मैचों के लिए उपलब्ध थे. विदर्भ के लिए क्वार्टर फाइनल और सेमीफाइनल में उमेश यादव ने बहुत बड़ी भूमिका अदा की. वैसे ही उत्तर प्रदेश के खिलाफ क्वार्टर फाइनल में और कर्नाटक के खिलाफ सेमीफाइनल में चेतेश्वर पुजारा बहुत कारगर साबित हुए.

संडे स्पेशल: आखिर क्यों लगता है किसी खिलाड़ी को अंतरराष्ट्रीय के बाद घरेलू क्रिकेट खेलना सजा जैसा!

फाइनल में भी ऐसा लग रहा था कि इन दोनों दिग्गज खिलाड़ियों पर बहुत कुछ निर्भर होगा लेकिन हुआ बिल्कुल उल्टा. विकेट पहले दिन से स्पिन ले रही थी और सारे मैच में विकेट स्पिनरों ने ही लिए. चेतेश्वर पुजारा दोनों पारियों में रन नहीं बना पाए. बल्कि विदर्भ की ओर से भी उसके दिग्गज बल्लेबाज वसीम जाफर और फैज फजल कुछ खास नहीं कर पाए. विदर्भ की जीत में सबसे बडा योगदान ऑलराउंडर आदित्य सरवटे का रहा. भले ही दोनों टीमों के स्टार खिलाड़ी नहीं चले, लेकिन गेंदबाजों के लिए अनुकूल पिच पर यह मुक़ाबला जबरदस्‍त रहा.

चंद्रकांत पंडित

चंद्रकांत पंडित

यह भी दिलचस्प है कि अच्छे कोच कैसे टीम को बदल डालते हैं. विदर्भ को विजेता बनाने का बड़ा श्रेय कोच चंद्रकांत पंडित को जाता है. उन्होने एक ऐसी टीम को लगातार दो बार विजेता बना दिया, जिसके बारे में कोई पांच दस साल पहले सोच भी नहीं सकता था. ऐसा ही कुछ साल पहले राजस्थान के साथ हुआ था, जब तारक सिन्हा को राजस्थान का कोच बनाया गया. उन्होने एक भी बार रणजी ट्रॉफी न जीती हुई टीम को लगातार दो साल विजेता बना दिया. वे दिल्ली से आकाश चोपड़ा और रॉबिन बिष्ट को राजस्थान ले गए. महाराष्ट्र के हेमंत कानिटकर को कप्तान बनाया गया और इन बाहरी खिलाड़ियों ने राजस्थान की जीत में बड़ी भूमिका अदा की. लेकिन जैसे ही तारक सिन्हा, आकाश चोपड़ा और हेमंत कानिटकर वापस लौट गए तो राजस्थान टीम फिर फिसल कर फिर पुरानी जगह पर चली गई.

वसीम जाफर

वसीम जाफर

उम्मीद है कि विदर्भ के साथ ऐसा नहीं होगा. उनकी बल्लेबाज़ी के दो सबसे मजबूत आधार स्तंभ वसीम जाफर और कप्तान फैज फजल ज्यादा साल तक नहीं खेल पाएंगे और तब बल्लेबाजी का दारोमदार युवा खिलाड़ियों पर रहेगा. तब विदर्भ की असली परीक्षा होगी. हालांकि विदर्भ में क्रिकेट की बुनियाद को मजबूत बनाने और स्थानीय प्रतियोगिताओं को बेहतर बनाने का काम हो रहा है ताकि नए प्रतिभाशाली खिलाड़ी आगे आ सकें. वे सिर्फ स्थापित या बाहरी खिलाड़ियों पर ही निर्भर नहीं हैं.

वैसे यह भी सोचना चाहिए कि अगर विराट कोहली, शिखर धवन और इशांत शर्मा नियमित रूप से दिल्ली के लिए रणजी ट्रॉफी खेलें. रोहित शर्मा और अजिंक्य राहणे मुंबई से खेलें और इसी तरह तमाम स्टार खिलाड़ी  अपने अपने राज्य से खेलें तो कितना दिलचस्प होगा. ऐसा होना तकरीबन नामुमकिन है मगर सोचने में क्या जाता है ?

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