live
S M L

Sunday Special: क्या वाकई वर्ल्ड कप में पाकिस्तान का बहिष्कार जरूरी है!

कहीं ऐसा तो नहीं कि हम ऐसे आसान कदम उठा कर ज्यादा मुश्किल लेकिन जरूरी सवालों से बच रहे हों ?

Updated On: Feb 24, 2019 09:22 AM IST

Rajendra Dhodapkar

0
Sunday Special: क्या वाकई वर्ल्ड कप में पाकिस्तान का बहिष्कार जरूरी है!

अभी अभी क्रिकेट में चर्चा विश्वकप की तैयारियों पर चल रही थी और पुलवामा में आतंकवादी हमले के बाद चर्चा का रूख बदल गया. अब चर्चा इस बात पर चल रही है कि भारत को विश्वकप में पाकिस्तान के साथ खेलना चाहिए कि नहीं. बहुत सारे लोग यह मानते हैं कि भारत को पाकिस्तान के ख़िलाफ़ नहीं खेलना चाहिए बल्कि कुछ ज्यादा उग्र प्रतिक्रियाएं ऐसी भी थीं कि भारत को आईसीसी पर पाकिस्तान को विश्वकप से बाहर रखने के लिए दबाव बनाना चाहिए.

vinod rai - Copy बीसीसीआई को चलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई समिति के सदस्य विनोद राय ऐसी चिट्ठी आईसीसी को लिखने के समर्थक थे. बहरहाल अच्छा हुआ कि बीसीसीआई ने यह फ़ैसला टाल दिया.

आसान नहीं है फैसला यह सच है कि पुलवामा हमले की भारत में ज़बर्दस्त प्रतिक्रिया हुई है और यह स्वाभाविक भी है. यह भी स्वाभाविक है कि सारे देश में बहुत भावुक उत्तेजना का माहौल है. लेकिन पाकिस्तान के साथ क्रिकेट विश्व कप में खेलने या न खेलने के बारे में फ़ैसला इतना आसान नहीं है और इसके दूरगामी नतीजे हो सकते हैं. ऐसे फ़ैसले अगर भावुकता के माहौल में न किए जाएँ तो ही अच्छा होता है.

पाकिस्तान में बैठे आतंकी समूहों और पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान में मौजूद उनके समर्थक और सहयोगियों के प्रति क्या कार्रवाई की जाए,   यह राष्ट्रीय महत्व का सवाल है और उसका फ़ैसला सोच समझ कर करना ज़रूरी है.

आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का सरगना मौलाना मसूद अजहर

आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का सरगना मौलाना मसूद अजहर

खेल या फ़िल्में या अन्य कलाएं अमूमन राजनीति या कूटनीति में हाशिए पर ही रहती हैं और उनका ख़ास राजनयिक या व्यापारिक या सामरिक महत्व नहीं होता. लेकिन चूँकि वे लोगों की नज़रों में होती हैं इसलिए राजनैतिक संकटों के वक्त वे आसान शिकार हो जाती हैं. अगर पाकिस्तानी खिलाड़ियों का कलाकारों का बहिष्कार होता है तो इससे कोई बडी दिक्कत नहीं होती लेकिन ख़बर बडी बन जाती है. इसलिए कला या खेल ऐसे वक्त पर ‘सॉफ़्ट टार्गेट’ होते हैं. अगर शिवसेना मुंबई में पिच खोद देती है या भारत विश्वकप में पाकिस्तान से नहीं खेलता तो उसकी बडी चर्चा होती है, इसीलिए जब भी ऐसा प्रसंग आता है तो पाकिस्तान से क्रिकेट न खेलने या पाकिस्तानी फ़िल्म अभिनेताओं के बहिष्कार की माँग सबसे पहले होती है. इसका अर्थ यह नहीं कि खेलों को राजनीति से अलग रखना चाहिये या रखा जा सकता है, जीवन की किसी भी गतिविधि की तरह खेल भी राजनीति से प्रभावित होते हैं या उसे प्रभावित कर सकते हैं.

खेलों में बहिष्कार को एक प्रभावशाली राजनैतिक औज़ार बनाने का सबसे बडा उदाहरण रंगभेद को लेकर दक्षिण अफ्रीका के बहिष्कार का है. पिछली सदी के पचास के दशक में खेलों में दक्षिण अफ्रीका के बहिष्कार का मुद्दा जड़ पकड़ने लगा और दस बारह साल में वह विश्वव्यापी हो गया.

लेकिन वह मुद्दा एक सचमुच के राजनैतिक आंदोलन की तरह मज़बूत हुआ था वह कोई क्षणिक भावुक प्रतिक्रिया नहीं थी ऐसी भावुक प्रतिक्रिया से तुरंत फ़ुरसत प्रचार तो मिल जाता है लेकिन उसका कोई फ़ायदा समस्या के समाधान में नहीं होता जैसा रंगभेद विरोधी आंदोलन का हुआ था. अभी माहौल इतना भावुक उत्तेजना से भरा हुआ है कि शायद तार्किक बात के लिए बहुत कम जगह बची है. सुनील गावस्कर जैसे कम ही लोग हैं जो धारा के विपरीत समझदारी की बात कर रहे हैं. पाकिस्तान के ख़िलाफ़ न खेलने का फ़ैसला भी किया जा सकता है लेकिन यह फ़ैसला यह सोच कर करना चाहिए कि क्या यह किसी दूरगामी रणनीति का हिस्सा है और इससे समस्या के हल में कोई मदद मिलेगी या यह भावुकता मे किया गया फौरी फैसला है. ऐसा तो नहीं कि हम ऐसे आसान कदम उठा कर ज्यादा मुश्किल लेकिन जरूरी सवालों से बच रहे हों ?

0

अन्य बड़ी खबरें

वीडियो
KUMBH: IT's MORE THAN A MELA

क्रिकेट स्कोर्स और भी

Firstpost Hindi