सचिन तेंदुलकर की फिल्म सचिन : अ बिलियन ड्रीम्स रिलीज होने वाली है. सचिन ने इस मौके पर अपनी फिल्म से लेकर जिंदगी तक बहुत कुछ बात की है. इस बीच फिल्म के निर्देशक जेम्स एर्सकिन ने भी कुछ सवालों के जवाब दिए हैं. हम इस इंटरव्यू को दो भागों में आपके लिए ला रहे हैं. ये है पहला हिस्सा आपके लिए -
फिल्म का अनुभव कैसा रहा?
सचिन - हमने लगभग वैसी ही तैयारी की, जैसे किसी मैच के लिए करते हैं. जितनी जरूरी बातें हैं, उन्हें तैयार करके मैदान पर उतरते हैं और अपना बेस्ट देने की कोशिश करते हैं. पूरी फिल्म मेरे सफर को लेकर है. इसमें सब कुछ सच है. कुछ भी फिक्शन नहीं है. हमने कुछ ऐसी चीजें जोड़ी हैं, जो यकीनन व्यक्तिगत और प्राइवेट हैं. परिवार से जुड़े लम्हे हैं. लोगों को वो सब भी देखने को मिलेगा. लेकिन उस सफर को फिर से जीना मेरे लिए बहुत स्पेशल था.
फिल्म के संगीत में भी क्या आपका जुड़ाव रहा?
सचिन - कोई एआर रहमान को क्या बता सकता है! यह वैसे ही है, जैसे रहमान मुझे बताएं कि बल्लेबाजी कैसे करनी है. मैं उनके काम में दखल नहीं देना चाहता. वहां वो बॉस हैं.
जेम्स एर्सकिन – हमने सचिन के पसंदीदा ट्रैक फिल्म में इस्तेमाल किए हैं.
सचिन – रहमान लगातार खुद को बेहतर करते हैं. वो मुझसे कहते थे कि हम हर बार और बेहतर करेंगे. हर बार जब हमने ट्रैक सुने वो पहले से बेहतर थे. फिर फाइनल वर्जन आया. मैं पोवाई में उनके स्टूडियो गया. हमने साथ में ट्रैक सुने. इरशाद भी वहां थे. उन्होंने गाने का मतलब मुझे समझाया. बाकी गानों की तरह वो पहली बार में उस तरह समझ नहीं आ रहे थे. लेकिन आप जितनी बार सुनें वो पहले से बेहतर लगते हैं और आपकी जुबान पर चढ़ जाते हैं. ये टिपिकल रहमान के गाने हैं. मुझे लगता है कि गाने बहुत अच्छी तरह लिखे गए हैं.
जब पहली बार फिल्म देखी, तो किस तरह के भावनाएं उमड़ीं?
सचिन – मैंने शायद फिल्म 20 बार देखी होगी. इसमें कई ऐसे सीन हैं, जहां मैं इमोशनल हो गया. मैंने सेना के जवानों के साथ फिल्म देखी तब भी इमोशनल हो गया था. मुझे लगता है कि लोग भी कुछ जगहों पर भावुक होंगे.
जेम्स – मैंने फिल्म हजारों बार देख ली है, फिर भी इमोशनल हो जाता है. मैं कल ही इसके प्लेबैक सुनकर रोया हूं.
आप किस तरह की फिल्म देखते हैं?
सचिन – मैं बचपन से ही हर तरह की फिल्म देखना हूं. यकीन बचपन में इंग्लिश मूवीज ज्यादा नहीं देखता था. लेकिन मराठी और हिंदी फिल्में खूब देखीं. फिर मैंने इंग्लिश फिल्में देखना भी शुरू किया. स्कूल दिनों में एक्शन मूवीज पसंद आती थीं. उस समय गंभीर या ड्रामा वाली फिल्में नहीं देखता था. बल्कि हम दोस्त तो मिलकर पुरानी मराठी फिल्में देखते हैं. बचपन में हम साथ जाकर फिल्में देखते थे और खूब हंसते थे. अगले कुछ दिनों में मैं दो मराठी फिल्में देखने का प्लान कर रहा हूं.
क्या फिल्म में कुछ ऐसी भी है, जो रह गया हो?
सचिन - उनके पास दस हजार घंटे की फुटेज थी. मैं वाकई चकित हूं कि कैसे 35 साल की कहानी को दो घंटे और 17 मिनट में समेटा है.
जेम्स – आप परफेक्ट फिल्म कभी नहीं बना सकते. खासतौर पर सचिन के बारे में. बस, आप अपनी तरफ से भरपूर कोशिश कर सकते हैं.
कलाकारों के चयन में आपका क्या रोल रहा?
सचिन – बिल्कुल नहीं. मैं कहा भी कि पहली पारी मैंने खेली. अब आपको दूसरी पारी खेलनी है.
क्या आपने बच्चों (कलाकारों) से बात की?
सचिन – उन्होंने मुझसे बात की कि मैं कैसा था. मेरे भाई से बड़ी मदद मिली. एक जानकारी और दे दूं कि फिल्म स्टूडियो में नहीं, मेरे घर में शूट हुई है. जब आप पांच साल के सचिन को देखेंगे, तो वो मेरा घर है. बांद्रा के साहित्य सहवास का घर. आप देखेंगे कि कैसे अजित मुझे खेलना सिखा रहे हैं. उसी मैदान पर जहां खेलना सीखकर मैं बड़ा हुआ. सब कुछ जितना संभव था, सच है. सिर्फ एक ही बात नहीं हो सकती थी कि मैं वापस पांच साल का हो जाऊं. उसे हमें मैनेज करना पड़ा.
फिल्म में हमें पर्सनल लाइफ देखने को मिलेगी?
सचिन – ऐसे लम्हे हैं. मेरा परिवार बात कर रहा है. मेरी पत्नी बात कर रही है. इसके अलावा तमाम पर्सनल चीजें देखने को मिलेंगी. जब आप थिएटर से बाहर निकलेंगे, तो कहेंगे कि हमने इतना कुछ देखने की उम्मीद नहीं की थी.
क्या आप अब भी उन जगहों पर जाते हैं, जहां बड़े हुए?
सचिन – पिछले कुछ समय में मुझे वक्त नहीं मिला. लेकिन मैं वहां जाता था. दोस्तों के साथ टेबल टेनिस खेलता था. अब दोस्त आ जाते हैं खेलने. हम टच में रहते हैं. ज्यादातर अब मेरे घर पर मुलाकात होती है. मैं तीन हफ्ते पहले वहां था.
क्या कभी ऐसा मौका आया, जब फेम आने की वजह से आप पर असर पड़ा?
सचिन – शुरुआती समय में, जब मैंने भारत के लिए खेलना शुरू किया था. मुझे अच्छी तरह याद है कि मेरे पिता मुझे हमेशा सही बातें सिखाते थे. उनका संदेश यही होता था कि जिंदगी में ये सब चीजें टेंपरेरी हैं. तब हम दस या 15 साल की बात करते थे. कोई नहीं जानता थआ कि मेरा करियर 24 साल तक चलेगा. वो हमेशा कहते थे कि खेलना जिंदगी का सिर्फ एक हिस्सा है. क्रिकेटिंग दिन खत्म होने का बाद बहुत कुछ होगा. जब आप 16 के हों, तो बहुत आसान होता है कि कामयाबी आपके दिमाग पर चढ़ जाए. उन्होंने कहा था कि तुम्हारा सफर अभी शुरू ही हुआ है. तुमने सिर्फ दरवाजा खोला है. अब लोग देखेंगे कि तुम क्या करते हो. इसलिए सोचो कि ये तुम्हारी शुरुआत है, अंत नहीं. सबसे पहले अच्छा इंसान बनने की कोशिश करो.
जेम्स एर्सकिन – फिल्म में उनके पिता की वही फुटेज है, जो उपलब्ध थी. वो किसी ने नहीं देखी है. फिल्म पिता और पुत्र के बारे में है. इसमें एक पिता के तौर पर सचिन की भी बात है. एक पिता, एक पति और एक भाई के तौर पर. एक बेटे के तौर पर उनकी कहानी है और एक पिता के तौर पर भी. यहां तक कि फिल्म में रहमान ने एक गाना अपने बेटे से गवाया है.
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