जुलाई की दस तारीख को विराट कोहली की टीम के लिए नए कोच के नाम का खुलासा होने की उम्मीद है. लेकिन जिस तरह से माहौल बनाया जा चुका है, उससे इस पूरी प्रक्रिया पर सवालिया निशान लग जाता है.सीधे शब्दों में कहा जाए तो यह मामला अंदर ही अंदर निपटने की तैयारी है.
कप्तान कोहली को कौन पसंद है, सभी जानते हैं. मुंबई से दिग्गज क्रिकेटर और महान सुनील गावस्कर भी बता चुके हैं कि रेस में सबसे आगे कौन है. कोच को चुनने वाली एडवाइजरी कमेटी के सदस्य और एक और महान क्रिकेटर को भी यह नाम पसंद है.
अब सवाल उठता है कि बाकी उम्मीदवारों का इस रेस में क्या भविष्य है क्योंकि यह दौड़ सैफ अली खान के बनियान के उस विज्ञापन की तरह नजर आ रही है, जिसमें वह कई धावकों के बीच रेस जीत जाते हैं, वो भी ‘बड़े आराम से’.
इस सब में रोचक पहलू है कि कोच की योग्यता क्या होनी चाहिए, इसके बारे में बीसीसीआई से कुछ भी साफ नहीं किया है. उसकी बेवसाइट पर एक ई-मेल लिंक है और उसी पर सभी को आवेदन भेजना है.
पिछले साल बीसीसीआई ने टीम के चीफ कोच के पद के आवेदन के लिए नौ शर्ते रखी थीं. उनमें से कुछ विवादित भी साबित हुई लेकिन कुछ तो पैमाने थे देश की सबसे बड़ी टीम की जिम्मेदारी संभालने के लिए. इस बार कुछ भी नहीं.
बीसीसीआई को पीसीबी से सीखने की जरूरत?
यहां बीसीसीआई अपने पड़ोसी पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड से सीख सकता है. पीसीबी जब भी कोच के लिए आवेदन आमंत्रित करता है तो हर बार योग्यता के लिए कुछ न कुछ नया जुड़ा होता है जो कि सिर्फ पेशेवर कोचों को ही आवेदन के लिए प्रेरित करता है.
पिछले साल पीसीबी ने टीम के चीफ कोच के लिए आवेदन आमंत्रित किए. आवेदन की शर्तों में एक थी कि आवेदन करने वाले के पास बतौर कोच किसी राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय टीम के साथ पांच साल काम करने का अनुभव होना चाहिए. साथ ही वे पूर्व खिलाड़ी जो दस साल तक प्रथम श्रेणी का क्रिकेट खेल चुके हैं, आवेदन कर सकते हैं.
बीसीसीआई देश में लेवल-2 और लेवल-3 को कोच तैयार करने के लिए पिछले दस सालों में कई करोड़ खर्च चुका है. कई स्टेट एसोसिएशन सिर्फ लेवल-3 कोचों को ही प्राथमिकताएं दे रहीं हैं.
लेकिन जब राष्ट्रीय टीम की जिम्मेदारी सौंपने की बात आती है तो लेवल-2 और 3 सब पीछे छूट जाते हैं. मोटी रकम पर कोच वहीं बनता है जिसका बीसीसीआई और कप्तान में पहुंच को लेवल ऊंचा हो.
अब सवाल उठता है कि बाकी मासूम उम्मीदवारों का क्या भविष्य है?
पूर्व सीनियर कोच लालचंद राजपूत भी दौड़ में हैं. वह आवेदन की तारीख बढ़ाए जाने को लेकर भी अपना गुस्सा जाहिर कर चुके हैं. साफ था कि तारीख बढ़ाने का मकसद सबसे फेवरेट को दौड़ के बीच घुसाना था. लालचंद का गुस्सा जायज है लेकिन वह चुप बैठ गए हैं.
लेकिन कोच के नाम की घोषणा होने के बाद सभी चुप बैठेगें, इसमें थोड़ी शंका हैं. यहां एक और रोचक पहलू है कि कोच की दौड़ में कप्तान के दो उम्मीदवार हैं.
कोहली को अंदाजा था कि कुंबले के आवेदन करने की स्थिति में रवि शास्त्री आगे नहीं आएंगे. लिहाजा उन्होंने दिल्ली के अपने साथी विरेंदर सहवाग को आगे कर दिया. फिर शास्त्री भी रेस में कूद गए और कहानी में ट्विस्ट आ गया.
अब एक सवाल और खड़ा होता है कि सहवाग कोहली के कहने पर उस शख्स के खिलाफ खड़े हो गए जिसके साथ उन्होंने न केवल एक दशक से भी अधिक समय तक ड्रेसिंग रूम साझा किया था बल्कि बतौर कप्तान उनका कैरियर भी खत्म होने से बचाया. लेकिन अब कोहली ने ही उन्हें टोपी पहना दी.
अब जैसा कि कहा जाता है कि सब माया है, लगता नहीं कि सहवाग को शास्त्री के साथ कोई जिम्मेदारी मिल जाती है तो वह कुछ बोलेंगे. वह भी ‘बड़े आराम’ से ऑफर स्वीकार कर सकते हैं.
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