चौथे वनडे की खास बात थी दो लंबे युवा गेंदबाजों का प्रदर्शन. भारत को जिस तरह उन्होंने अपनी तीखी शॉर्ट पिच गेंदबाजी से परेशान किया. उन्होंने बहुत सोच-समझकर शॉर्ट पिच गेंदों का इस्तेमाल किया.
अलाजारी जोसेफ 20 साल के हैं. वेस्टइंडीज की अंडर 19 विश्व कप में जीत के कई हीरो में वो भी एक थे. उन्होंने दिखाया कि पिछले दौर के तमाम दिग्गज जैसे एंडी रॉबर्ट्स, जोएल गार्नर, ऑस्ट्रेलिया के जस्टिन लैंगर जैसे लोग उन्हें हालिया समय में वेस्टइंडीज के सबसे बड़े गेंदबाजी टैलेंट के तौर पर क्यों देखते रहे हैं.
अतीत के तमाम बेहतरीन तेज गेंदबाजों की तरह जोसेफ भी काफी युवा उम्र में आ गए थे. एक साल के अंदर ही उन्होंने 19 साल की उम्र में इंटरनेशनल क्रिकेट में पदार्पण किया. अभी वह पांच टेस्ट, 11 वनडे और तीन टी 20 मैच खेल चुके हैं.
रविवार को एंटीगा में उन्होंने सात ओवर के पहले स्पैल में दिखाया कि उनकी गेंदबाजी में किस कदर आग हो सकती है. यहां ऐसी पिच थी, जो तेज गेंदबाजों की पसंदीदा नहीं कही जा सकती. यहां उन्होंने बाउंसर का बेहतरीन इस्तेमाल करते हुए टॉप ऑर्डर को झकझोर दिया.
जोसेफ के पास दो तरह की बाउंसर हैं. एक वो, जैसी ज्यादातर की जाती है. दूसरी वो, जो बल्लेबाज की तरफ तेजी से आती है. उन्होंने दिनेश कार्तिक को ऐसी ही गेंद पर आउट किया है. किस्मत उनके साथ होती, तो अजिंक्य रहाणे का भी विकेट मिल जाता. रहाणे ने हुक करने की कोशिश की थी, लेकिन गेंद फील्डर से बस, जरा सा दूर रह गई.
पिछले वनडे से ही साफ था कि वेस्टइंडीज टीम नहीं चाहती कि विराट कोहली अपनी पसंदीदा रफ्तार से पारी आगे बढ़ाएं. कोहली शुरुआत में थोड़ा वक्त लेते हैं. वो प्लेसमेंट और रनिंग के जरिए स्कोर बढ़ाते हैं. ओवर पिच गेंदों पर ड्राइव के अलावा वो सेट होने तक बड़े शॉट नहीं खेलते. यकीनन, एक बार टिक जाने के बाद वो अपने अपने तरकश के तमाम शॉट्स बहुत अच्छी तरह खेलते हैं.
वेस्टइंडीज ने उन्हें पारी की शुरुआत में शॉर्ट पिच गेंदों के साथ आजमाने की रणनीति अपनाई. इससे सुनिश्चित किया गया कि वो एक-दो रन आराम से न ले पाएं. उनके रन सोख लिए गए. मजबूर किया कि पारी की शुरुआत में वो बड़ा शॉट खेलने की कोशिश करें.
कोहली ने कुछ गेंदों को छोड़ दिया. लेकिन उसके बाद वो जेसन होल्डर की शॉर्ट पिच गेंद पर हुक करने का लालच नहीं रोक सके. हुक गलत हुआ और विकेट कीपर ने कैच किया. छह ओवर के बाद कार्तिक का आउट होना बिल्कुल विराट जैसा ही था.
यह साफ है कि बाउंसर का इस्तेमाल भारतीय बल्लेबाजों को परेशानी में डालने के लिए किया जाता रहेगा. वेस्टइंडीज के लंबे कद के गेंदबाज होल्डर, जोसेफ और मिगुएल कमिंस भारतीय बल्लेबाजों की हुकिंग स्किल की परीक्षा लेते रहेंगे.
यकीनन, सिर पर निशाना साधते हुए बाउंसर बल्लेबाजों के लिए खेलने में आसान होते हैं. ऐसे बाउंसर, जो कंधे या गर्दन पर हों, वो बल्लेबाज को सबसे ज्यादा मुश्किल में डालते हैं.
भारतीय बल्लेबाजों के लिए समस्या आईपीएल जैसी आउटफील्ड भी हैं, जो बहुत छोटी होती है. वहां शिखर धवन और रोहित शर्मा जैसे बल्लेबाज बमुश्किल हुक करते हैं. वे बैकफुट पर जाते हैं और फाइन लेग या लॉन्ग लेग के ऊपर से खेल देते हैं. लेकिन जब मैदान बड़े आकार का होता है, तब ये काम नहीं आता. वे बाउंड्री रोप के काफी अंदर कैच हो जाते हैं.
बल्लेबाजों को अपने बेसिक्स ठीक करने होंगे. उन्हें शॉर्ट पिच गेंदों पर लाइन के भीतर आना होगा. हुक करते हुए कलाइयों को रोल करना जरूरी है. इसके अलावा, टॉप ऑर्डर से अलग बाकी बल्लेबाजों को दबाव में बल्लेबाजी की आदत नहीं है. टारगेट बड़ा नहीं था. ऐसे में केदार जाधव, हार्दिक पांड्या, रवींद्र जडेजा और कुलदीप यादव जैसे लोगों को महेंद्र सिंह धोनी के साथ अड़कर बल्लेबाजी करनी चाहिए थी. लेकिन इनमें से कोई ऐसा नहीं लगा कि वे अपनी टीम को मैच जिता सकते हैं.
कुलदीप यादव ने जिस तरह बल्लेबाजी की, वो देखना शर्मनाक था. पारी के अहम मौके पर उनके बल्ले और गेंद में संपर्क नहीं हो पा रहा था. वो सिर्फ बल्ला घुमा रहे थे. यह तो साफ है कि कामयाबी के लिए भारतीय टॉप ऑर्डर की भूमिका अहम है. जिन टीमों के पास लंबे तेज गेंदबाज हैं, वे उन पर सटीक बाउंसर से हमला बोलेंगे. खासतौर पर अब, जब पारी की शुरुआत में दो नई गेंदों का इस्तेमाल होता है.
वेस्टइंडीज के पास दो गेंदबाज हैं. होल्डर ने 27 रन देकर पांच विकेट लिए. जोसेफ ने 46 रन देकर दो विकेट लिए. दोनों ने दिखाया कि भारत के खिलाफ कामयाबी कैसे हासिल की जा सकती है. जरा सोचिए, अगर उनके पास चार ऐसे गेंदबाज और थोड़ी और मददगार पिच होती, तब क्या होता!
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