किसी भी बड़ी सीरीज से पहले टॉप बल्लेबाजों के स्कोर के आगे शतक दिखाई देने से टीम और उसके चाहने वालों का आत्मविश्वास मजबूत होना लाजिमी है. लेकिन जरूरी यह है कि एशिया से बाहर के दौरे से पहले ऐसे शतक अपने से मजबूत और चुनौती देने वाली टीम के खिलाफ बनें.
श्रीलंका के खिलाफ पहले दो टेस्ट मैचों में टीम इंडिया के तीन बल्लेबाज सेंचुरी लगा चुके हैं जबकि नागपुर में कप्तान विराट कोहली का दोहरा शतक बना. लेकिन सवाल उठता है कि क्या यह जबरदस्त फॉर्म टीम के लिए अगले महीने से शुरू होने वाले दक्षिण अफ्रीका के दौरे में भी मददगार होगी!
टीम इंडिया के हाल के सालों के रिकॉर्ड खंगालने पर एक बात साफ दिखती है कि जब भी उसने एशिया से बाहर होने वाली सीरीज से ठीक पहले कमजोर टीम की बखिया उधेड़ी, बाहर जाकर उसकी बल्लेबाजी का दुनिया में तमाशा बना है.
यह जानते हुए भी साउथ अफ्रीका के दौरे से ठीक पहले श्रीलंका जैसी लंगड़ाती टीम, जिसे विराट की टीम उसके अपने घर में पीट कर आई है, खेलना गलत फैसला साबित हो सकता है.
2010 में अफ्रीकी दौरे से पहले न्यूजीलैंड को घर में मारा था
साउथ अफ्रीका के 2010 के दौरे से ठीक पहले भारत ने अपने घर पर न्यूजीलैंड के खिलाफ अहमदाबाद, हैदराबाद और नागपुर में तीन टेस्ट खेले थे. अहमदाबाद टेस्ट की पहली पारी में वीरेंद्र सहवाग (173) और राहुल द्रविड़ (104) ने ड्रॉ मैच में न्यूजीलैंड के गेंदबाजों को जमकर लूटा. दूसरी पारी में हरभजन सिंह भी 115 रन की पारी खेल कर गए, जबकि वीवीएस लक्ष्मण महज 9 रन से शतक बनाने से चूक गए थे.
हैदराबाद में हरभजन सिंह ने लगातार दूसरी सेंचुरी ठोक दी. वह मैच ड्रॉ रहा. नागपुर में राहुल द्रविड़ के 191 और महेंद्र सिंह धोनी के 98 रनों की बदौलत भारत एक पारी और 198 रन से जीता. यह नवंबर 2010 की बात है.
दिसंबर में टीम इंडिया सेंचुरियन की पिच पर थी. पहले मैच की पहली पारी में टीम इंडिया का स्कोर किसी के मोबाइल नंबर जैसा था. सात बल्लेबाज दस रन से ऊपर नहीं पहुंचे जिनमें से तीन जीरो पर आउट हुए. साउथ अफ्रीका वह मैच एक पारी और 25 रन से जीता.
डेल स्टेन और मोर्ने मोर्कल ने डरबन टेस्ट की पहली टीम इंडिया के पत्ते खोल दिए और टीम का स्कोर था 205 रन. वह मैच जहीर खान (6 विकेट), एस श्रीसंत (4) और हरभजन सिंह (6) का साबित हुआ, क्योंकि मेजबान भी 131 पर सिमट गए और दूसरी पारी में वीवीएस लक्ष्मण 96 रन पारी खेल गए.
दूसरी पारी में 6 बल्लेबाजों के दस का स्कोर पार न कर पाने के बावजूद भारत वह लो-स्कोरिंग मैच 87 रन से जीता.
2011 में ऑस्ट्रेलिया दौरे से पहले दर्ज की थी जीत
दिसंबर 2011 के ऑस्ट्रेलिया के दौरे के एक महीना पहले टीम इंडिया दिल्ली और कोलकाता में वेस्टइंडीज के खिलाफ खेली. दिल्ली और कोलकाता में वेस्टइंडीज को धो दिया गया. कोलकाता में स्कोर बोर्ड पर राहुल द्रविड़, लक्ष्मण और धोनी के नाम पर शतक चढ़े.
लेकिन जब दिसंबर में टीम पहले टेस्ट के लिए मेलबर्न पहुंची, पहली पारी के 282 में सबसे अधिक रनों में 68 राहुल द्रविड़ के थे. जबकि दूसरी पारी 169 पर सिमट गई और ऑस्ट्रेलिया वह मैच 122 रन से जीता.
इसके बाद सिडनी टीम पहली पारी 191 पर सिमट गई. इसमें सबसे अधिक धोनी के 57 रन थे. भारत को सिडनी में एक पारी और 68 रन से शर्मनाक हार मिली.
पर्थ टेस्ट की दोनों पारियों में टीम का स्कोर 161 और 171 था. भारत वहां भी एक पारी और 37 रन से हारा. एडिलेड टेस्ट में भारत की पहली पारी के 272 में से 116 विराट के थे जबकि दूसरी पारी 201 में बैठ गई. भारत वहां भी 298 रन पिटा.
2013 में भी गलती सुधारने की नहीं हुई कोशिश
इन बड़ी हार से कोई सबक न लेते हुए 2013 में भी इसे दोहराया गया.
दिसंबर 2013 के साउथ अफ्रीका दौरे से ठीक पहले टीम इंडिया ने फिर वेस्टइंडीज से दो मैचों की सीरीज खेली. भारत वो दोनों मैच जीता. इसमें रोहित शर्मा के दो, आर अश्विन और चेतेश्वर पुजारा का एक-एक शतक था.
दिसंबर 2013 में जोहनिसबर्ग के ड्रॉ मैच में कोहली और पुजारा ने सेंचुरियां जरुर मारी. लेकिन डरबन में टीम 350 रन भी पार नहीं कर पाई. भारत वहां दस विकेट से हारा.
डरबन के बाद फरवरी 2014 से लेकर जनवरी 2015 तक टीम इंडिया ने न्यूजीलैंड, इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया में 11 टेस्ट मैच खेले जिसमें सिर्फ वह लॉर्ड्स में ही जीत पाई. 6 मैचों में उसे हार मिली जबकि एक ड्रॉ रहा.
उम्मीद और दुआ करनी चाहिए कि विराट की टीम इस बार इस सारे आंकड़ों पर मिट्टी डालने में सफल होगी.
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