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आखिर क्यों भारतीय क्रिकेट की इस खूबसूरत फिल्मी कहानी का अब ‘द एंड’ होना जाना चाहिए!

2015 में धोनी को 737 ब़ॉल खेलने को मिलीं जिनमें उनके 640 रन थे. इसके अगले साल उन्होंने278 रन बनाने के लिए 347 गेंद खर्च की जबकि 2017 सें यह अंतर और बढ़ा क्योंकि 930 गेंद खेलने के बाद धोनी के सिर्फ 788 रने थे.

Updated On: Jan 19, 2019 12:24 PM IST

Jasvinder Sidhu Jasvinder Sidhu

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आखिर क्यों भारतीय क्रिकेट की इस खूबसूरत फिल्मी कहानी का अब ‘द एंड’ होना जाना चाहिए!

इसमें कोई दोराय नहीं है कि इंडिया अगर ऑस्ट्रेलिया में वनडे सीरीज जीती है तो उसका बड़ा श्रेय महेंद्र सिंह धोनी को जाता है. सीरीज जीतने के बाद हेड कोच रवि शास्त्री ने कहा भी कि धोनी जैसा खिलाड़ी 40 साल में एक बार आता है और उनकी जगह कोई दूसरा नहीं ले सकता. खुद धोनी ने कहा कि वह मध्यक्रम में कहीं भी खेलने को तैयार हैं.

जीत के जश्न में एक सवाल का जवाब जरुर तलाशना जरुरी है कि क्या धोनी को विश्वकप की टीम के रखना तर्कसंगत हैं! अगर धोनी विश्व कप की योजना का हिस्सा है तो युवा व आक्रामक बल्लेबाज ऋषभ पंत का क्या किरदार रहने वाला है. इस सीरीज में भी जीत के बावजूद धोनी की बल्लेबाजी में आए धीमेपन पर चर्चा और बहस हो रही है.

पिछले दो-तीन साल की धोनी की बल्लेबाजी के आंकड़ों पर नजर डालने से अंदाजा होता है कि उनके रिफ्लेक्सेस कमजोर हुए हैं जिसने उनके खेल को धीमा कर दिया है. वीरेंदर सहवाग ने ठीक ऐसे की हालात का सामना करने के कारण रिटायरमेंट का फैसला किया था.

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2004 में वनडे टीम में आए धोनी ने उस साल सिर्फ तीन ही मैच खेले, जबकि 2005 में उनका असल करियर शुरू हुआ. उस साल टीम को 868 गेंदों पर 895 रन दिए. 2006 में उनके 821 रन 883 गेंदों पर बने. 2007 में उन्होंने 1231 गेंदों का सामना किया और 1103 रन बनाए. इन आंकड़ों ने देश को एक आक्रामक बल्लेबाज दिया. उसके बाद से धोनी की वनडे करियर लगभग ठीक इसी तरह से चला और उनकी गेंदों और रनों के बीच का फासला कभी ज्यादा नहीं रहा. लेकिन 2015 से उम्र का असर उनकी बल्लेबाजी कर साफ दिखाई देने लगा. 2015 में धोनी को 737 बॉल खेलने को मिलीं, जिनमें उनके 640 रन थे. इसके अगले साल उन्होंने 278 रन बनाने के लिए 347 गेंद खर्च किए, जबकि 2017 सें यह अंतर और बढ़ा क्योंकि 930 गेंद खेलने के बाद धोनी के सिर्फ 788 रने थे.

मेलबर्न के आखिरी वनडे में टीम को ज्यादा बड़ा लक्ष्य हासिल नहीं करना था . 37 साल के धोनी ने मैच खत्म जरूर किया. धोनी के 87 रन 114 गेंदों पर आए. इस साल तीन वनडे मैचों में 264 गेंदों पर 193 रन हैं. धोनी के पक्ष में यह तर्क दिया जा सकता है कि बल्लेबाजी के जिस क्रम पर आते हैं, वहां ज्यादा कुछ करने की गुंजाइश नहीं है. हालांकि यह तर्क सही नहीं है क्योंकि अगर ऐसा होता तो धोनी वनडे में 10000 से उपर रन नहीं बना पाते.

Indian wicketkeeper Rishabh Pant practices at the stumps during a training session ahead of the second Test cricket match between India and West Indies at the Rajiv Gandhi International Cricket Stadium in Hyderabad on October 11, 2018. (Photo by NOAH SEELAM / AFP) / ----IMAGE RESTRICTED TO EDITORIAL USE - STRICTLY NO COMMERCIAL USE----- / GETTYOUT

यह भी सही है कि इस बल्लेबाज ने टीम के लिए बहुत योगदान किया है. फिर भी यह सवाल उठता है कि उम्र की दहलीज पर खड़े एक खिलाड़ी को सिर्फ उसके पिछले सालों के खेल के आधार पर ही विश्व कप जैसे टूर्नामेंट में ले जाना कितना तर्कसंगत है. बतौर विकेटकीपर और बल्लेबाज ऋषभ पंत ने अब तक टीम में अपनी उपयोगिता साबित की है. ऐसे में धोनी को जगह देने के लिए अगर विश्व कप टीम में चुने जाने के बावजूद पंत को प्लेइंग इलेवन में जगह नहीं मिलती तो यह उनके साथ अन्याय होगा.

बेशक धोनी भारतीय क्रिकेट की एक प्रेरित करने वाली कहानी है. एक ऐसी कहानी जो सिर्फ पर्दे पर ही देखने को मिलती हैं.धोनी को रांची के तंग सरकारी क्वार्टर से देश का कप्तान और सबसे बड़ा ब्रांड बनने का सफर गजब का रहा. इसकी सराहना तो हो सकती है लेकिन सिर्फ इस कारण उन्हें अब भी मौजूदा परिस्थितियों में असाधारण बताना खुद धोनी के साथ ज्यादती होगी. धोनी को लेकर टीम प्रबंधन और चयनर्ताओं को एक सही फैसला लेने का यह सबसे उपयुक्त समय है.

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