रविचंद्रन अश्विन की फिटनेस या यूं कहें कि चोट का राज क्या है? भारतीय कप्तान विराट कोहली ने मीडिया को बताया कि अश्विन सिडनी टेस्ट के लिए फिट नहीं हैं. इसके बावजूद, कुछ देर बाद भारतीय टीम की घोषणा हुई और 13 सदस्यों की टीम में अश्विन का नाम था. ठीक है, उनके बारे में फैसले टेस्ट की सुबह लिया जाएगा. लेकिन इस समय अहम और परेशान करने वाली बात है चोट की वजह से अश्विन का बाहर बैठना. इसकी वजह से टीम के प्लान पर अक्सर असर पड़ा है.
अश्विन दक्षिण अफ्रीका में एक टेस्ट नहीं खेले थे. उसके बाद इंग्लैंड में दो नहीं खेले. इस सीरीज में भी दो ऐसे मैचों से बाहर रहे हैं, जब मौका नाजुक था. पूरी उम्मीद दिख रही है कि टीम मैनेजमेंट उन्हें सीरीज के आखिरी मैच में खेलने के लिए तैयार कर ले. भले ही वो 80 फीसदी ही फिट हों. 13 की टीम में शामिल करने का यही एकमात्र कारण हो सकता है.
सिडनी क्रिकेट ग्राउंड की पिच परंपरागत तौर पर स्पिन की मददगार मानी जाती है. अश्विन ने पिछले कुछ समय में विदेशी धरती पर अच्छा प्रदर्शन किया है. ऐसे में सामने कुछ बाएं हाथ के बल्लेबाजों वाली टीम के खिलाफ उनका होना फायदेमंद होगा.
अश्विन ने पिछला टेस्ट एडिलेड में खेला था, जो 10 दिसंबर को खत्म हुआ था. उसमें भी नजर आया था कि वो पूरी तरह फिट नहीं हैं. खासतौर पर दूसरी पारी में वो अनफिट नजर आए. इस बात को तीन सप्ताह हो चुके हैं. सवाल यह है कि टीम का सपोर्ट स्टाफ उनकी चोट या फिटनेस लेवल का अनुमान तब क्यों नहीं लगा पाया. खिलाड़ी की फिटनेस और उसके बाद रीहैबिलिटेशन पर काम करने में नाकामी टीम के सपोर्ट स्टाफ की अच्छी तस्वीर पेश नहीं करती.
अश्विन के रिपलेस किया जा सकता था
कायदे से देखा जाए तो अश्विन को तुरंत घर भेज दिया जाना चाहिए था. उनकी जगह किसी और ऑफ स्पिनर को बुलाया जाना चाहिए था. दूसरा खिलाड़ी आकर माहौल में खुद को ढालता और बेहद अहम सिडनी टेस्ट के लिए तैयार रहता. जयंत यादव को बुलाया जा सकता था, जो बीसीसीआई के कॉन्ट्रैक्टेड खिलाड़ियों में हैं. जलज सक्सेना को बुला सकते थे, जो मयंक अग्रवाल की तरह घरेलू क्रिकेट में लगातार रिकॉर्ड बना रहे हैं. बैट से भी और बॉल से भी.
ऐसा करना आदर्श बात होती. लेकिन दुर्भाग्य भारतीय क्रिकेट मुद्दों के बजाय व्यक्ति को लेकर ज्यादा प्रभावित रहा है. पिछले समय के तमाम क्रिकेटर्स की तरह अश्विन के मुद्दे को भी इसी तरह डील किया गया है. बजाय इसके कि पूरी ईमानदारी के साथ उनकी फॉर्म और फिटनेस को परखा जाता.
शायद, चयनकर्ताओं में बड़े नाम होते तो स्टार खिलाड़ियों को फिटनेस के आधार पर निकालने में हिचक नहीं होती. लेकिन हालात वैसे नहीं हैं. अश्विन जैसी समस्याएं और उनसे उपजे हालात भारतीय क्रिकेट के हितों पर चोट कर रहे हैं. इन्हें लंबे समय तक जारी नहीं रखा जा सकता.
उम्मीद है कि कोच रवि शास्त्री, कोहली और टीम फिजियो आखिरी समय में अश्विन को फिट करने की पूरी कोशिश करेंगे. वैसे उनके लिए टीम इंडिया के पास ऑफ स्पिनर हनुमा विहारी के रूप में कवर है.
खराब फॉर्म के बावजूद टीम में क्यों है राहुल
इसके अलावा केएल राहुल को वापस लाना अजीब है. उन्हें फॉर्म से बाहर होने की वजह से बाहर किया गया था. उसके बाद उन्होंने ऐसी कोई क्रिकेट नहीं खेली, जिससे उनके फॉर्म में वापस आने का पता चले. लेकिन रोहित शर्मा का न होना उनके पक्ष में गया है. अगर वो अच्छा करते हैं, तो बहुत अच्छी बात है. हालांकि लॉजिक के लिहाज से देखा जाए, तो उन्हें 13 सदस्यीय टीम का हिस्सा नहीं होना चाहिए.
यही बात उमेश यादव के लिए कही जा सकती है, जो चोटिल इशांत शर्मा की जगह पर आए हैं. एमसीजी में जीत के दौरान कोहली ने इशांत का बहुत अच्छा इस्तेमाल किया था. इसके बावजूद यह बात साफ थी कि आखिरी टेस्ट में किसी एक गेंदबाज को बाहर होना होगा.
13 की टीम में होने के बावजूद संभव है कि उमेश प्लेइंग 11 का हिस्सा न हों. मेहमान टीम जसप्रीत बुमराह और मोहम्मद शमी के साथ हार्दिक पांड्या को इस्तेमाल कर सकती है. पांड्या 13 सदस्यीय टीम का हिस्सा नहीं हैं. लेकिन चौंकाने वाला फैसला करते हुए उन्हें टीम में तीसरे सीमर के तौर पर लिया जा सकता है. ऐसे में स्पिन के विकल्प के रूप में रवींद्र जडेजा, हनुमा विहारी और अश्विन हो सकते हैं.
उम्मीद है कि बुमराह, शमी और जडेजा इतने फिट हैं कि गेंदबाजी की पूरी जिम्मेदारी संभाल सकें. अश्विन, पांड्या और विहारी को जरूरत पड़ने पर इस्तेमाल हो. भारत ड्रॉ की उम्मीद में नहीं उतर सकता. उसे जीतने के लिए ही खेलना होगा. बल्लेबाजों को बोर्ड पर इतने रन अंकित करने होंगे कि गेंदबाजों को अपनी जादूगरी दिखाने का मौका दिया जा सके. वे इतने समय से ऑस्ट्रेलिया में हैं कि अब पिच को लेकर कोई चिंता नहीं होगी. पहली पारी में अच्छा स्कोर बनाकर वे मेजबान टीम पर लगाम कस ककते हैं. उसके बाद अश्विन हों या न हों, भारतीय टीम तूफान बरपा सकती है.
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