विराट कोहली आउट हुए थे. या यूं कहें कि आउट दिए गए थे. पर्थ टेस्ट की पहली पारी में शतक के बाद उनके कैच को लेकर बहस छिड़ी हुई थी. कैच सही है या गलत, इस पर फैसला आसान नहीं था. दिलचस्प था इस फैसले को लेकर सीरीज ब्रॉडकास्ट कर रहे सोनी नेटवर्क पर चर्चा सुनना.
होस्ट की भूमिका निभा रहे इंग्लैंड के पूर्व क्रिकेटर मार्क बुचर के साथ संजय मांजरेकर और माइकल क्लार्क स्टूडियो में थे. संजय मांजरेकर लगातार समझाने की कोशिश कर रहे थे कि कैसे तीसरा अंपायर उस फैसले को नहीं बदल सकता था. वो लगातार बता रहे थे कि इस तरह के कैच का सही फैसला तब तक नहीं हो सकता, जब तक थ्री डाइमेंशनल कैमरा वर्क न हो. चूंकि वो अभी नहीं है, इसलिए फैसला मानकर आगे बढ़ना चाहिए.
ऑस्ट्रेलिया में बदले कमेंटेटर के सुर
इंग्लैंड के खिलाफ सीरीज से लेकर अब तक जब भी भारत से बाहर सीरीज हो रही है, कमेंटेटर्स का अंदाज अलग है. खासतौर पर स्टार स्पोर्ट्स से बहुत अलग, जिनके पास भारत में टेलीकास्ट के अधिकार हैं. भारत में होने की वजह से काफी कुछ बीसीसीआई की तरफ से तय होता है. कमेंटेटर्स से लेकर किस लाइन पर कमेंटरी करनी है... कई बातें हैं, जिन पर आजादी मिल पाना आसान नहीं. लेकिन जैसे ही टीम इंग्लैंड गई या अब ऑस्ट्रेलिया में है, तो वो अंदाज बदला है. संजय मांजरेकर और सुनील गावस्कर को सुनना अलग अनुभव है.
यह भी पढ़ें: मैदान पर तो ‘कैप्टन’ कोहली फेल हुए ही, दिमागी खेल में भी अपने खिलाफ जिन्न खड़ा कर लिया
संजय मांजरेकर को शुरू से ही उनके ‘क्रिटिकल कमेंट्स’ के लिए जाना जाता है. उन्होंने सचिन तेंदुलकर के रिटायरमेंट को लेकर कमेंट कर दिया था, जिस वक्त कोई भारतीय क्रिकेटर इस बारे में नहीं बोलता था. लेकिन मांजरेकर के सुर भी मंद पड़े, जब बीसीसीआई कमेंटरी पैनल का हिस्सा बने. सुनील गावस्कर तो प्रवक्ता की तरह बात करते दिखाई देते थे. उसकी वजह थी बीसीसीआई के साथ उनका कॉन्ट्रैक्ट. अब वो कॉन्ट्रैक्ट नहीं है, तो फर्क साफ नजर आ रहा है.
बीसीसीआई के कॉन्ट्रैक्ट ना होने से मिली आजादी
ऑस्ट्रेलिया में स्लेजिंग को लेकर गावस्कर का रुख तीखा रहा है. उन्होंने साफ-साफ कहा है कि भारतीय टीम संत नहीं है. 2014 में टीम इंडिया ने ही स्लेजिंग शुरू की थी और इस बार भी. गावस्कर का मानना है कि भारतीय खिलाड़ियों के डीएनए में स्लेजिंग नहीं है. इसलिए हमें इससे बचना चाहिए.
गावस्कर ने इंग्लैंड में भी विराट कोहली की कप्तानी पर टिप्पणी की थी. उस वक्त संजय मांजरेकर टीम सेलेक्शन से लेकर कप्तानी के फैसले तक काफी तल्ख नजर आए थे. पर्थ में भी कमेंटरी टीम स्पिनर न लिए जाने को लेकर कमेंट्स कर रही है. इस तरह के कमेंट्स कुछ समय पहले नहीं सुने जाते थे.
हर्ष भोगले को किया गया था बाहर
याद कीजिए, हर्ष भोगले को कमेंटरी टीम से बाहर कर दिया गया था. उसकी कुछ वजहों में एक ये थी कि उन्होंने भारतीय टीम के लिए नेगेटिव कमेंट्स किए. उस वक्त भी सवाल उठा था और अब भी सवाल है कि कमेंटेटर्स का काम क्या है. क्या उनका काम चीयरलीडर्स का है, जो टीम की सिर्फ तारीफ करे? या फिर उनका काम मैच का सही विश्लेषण करना है.
एक वक्त था, जब भारतीय टीम विदेशी कमेंटेटर्स से काफी नाराज रहती थी. लेकिन तब बीसीसीआई की ताकत इतनी ज्यादा नहीं थी कि वो इस बारे में कुछ कर पाए. यह सही भी है कि ऑस्ट्रेलिया के चैनल नाइन पर तमाम टिप्पणियां ऐसी होती थीं, जो भारत के खिलाफ थीं. रिची बेनो की संतुलित कमेंटरी के बीच टोनी ग्रेग और बिल लॉरी का आक्रामक अंदाज आता था. हालांकि तमाम लोग कह सकते हैं कि जब आपकी टीम अच्छा खेल नहीं रही हो, तो कमेंटेटर की क्या गलती है.
स्टैंड लेना बन गया गुलामी
भारतीय कमेंटटेर पहली बार टीम का एक हिस्सा नजर आए दक्षिण अफ्रीका में. बॉल टेंपरिंग के मामले में सचिन तेंदुलकर, वीरेंद्र सहवाग समेत छह खिलाड़ियों को सजा मिली थी. मैच रेफरी माइक डेनेस की प्रेस कांफ्रेंस में रवि शास्त्री गए थे, जो उस वक्त कमेंटरी कर रहे थे. ये प्रेस कांफ्रेंस बाकायदा चैनल पर दिखाई गई थी, जिसमें शास्त्री ने माइक डेनेस की हालत बिगाड़ दी थी. उस वक्त हर तरफ से तारीफ की गई कि अपने खिलाड़ियों के लिए स्टैंड लेना ही चाहिए.
उसके बाद 2008 में रिकी पॉन्टिंग की टीम के खिलाफ खेलने भारतीय टीम ऑस्ट्रेलिया गई. वहां अंपायरिंग को लेकर तो विवाद था ही. हरभजन और एंड्रयू सायमंड्स का विवाद बड़ा हो गया. तब भी कमेंटेटर पूरी तरह हरभजन के साथ थे. इस बार भी उनकी तारीफ हुई. लेकिन धीरे-धीरे स्टैंड लेना किसी ‘गुलामी’ जैसा हो गया. बीसीसीआई ने टीम की छवि बेहतर रखने के लिए रवि शास्त्री और सुनील गावस्कर के साथ कॉन्ट्रैक्ट किया. जाहिर है, कॉन्ट्रैक्ट होगा, तो कमेंटेटर्स आजाद तो नहीं रह सकते.
मामला यहां भी नहीं रुका. दखल बढ़ा, तो वो कमेंटेटर्स बाहर होने लगे, जो बीसीसीआई या टीम इंडिया के पक्ष में नहीं बोलते थे. 2011 में कमेंटरी बॉक्स में रवि शास्त्री और नासिर हुसैन की बहस याद की जाती है. हुसैन डीआरएस के पक्ष में थे. शास्त्री विरोध में. दोनों के बीच जबरदस्त बहस हुई. उस वक्त कहा गया कि नासिर हुसैन को भारत के खिलाफ मैचों के लिए बैन कर देना चाहिए.
2018 में दिख रहा है बदलाव
अब 2018 में बदलाव लग रहा है. खासतौर पर जब टीम इंडिया विदेश में खेल रही है और ब्रॉडकास्टर सोनी है. उनका बीसीसीआई के साथ समझौता नहीं है. ऐसे में वो आजादी साफ दिखाई दे रही है. हर्ष भोगले की टिप्पणियों में भी. हर्ष भोगले ने कमेंटरी के साथ ट्वीट भी किए हैं.
I know there will be a lot of debate on the Kohli dismissal but it is critical to note that the law says there must be conclusive evidence to overturn the on-field umpire's decision. Kohli thought it bounced but historically those have been given out (more)
— Harsha Bhogle (@bhogleharsha) December 16, 2018
In such matters we tend to see what we want to see. And I can understand therefore why Indian fans and Aussie fans would have completely different interpretations https://t.co/0DnZpfDRZ4
— Harsha Bhogle (@bhogleharsha) December 16, 2018
हालांकि उनकी टिप्पणी को देश के एक बड़े संपादक ने अच्छी तरह नहीं लिया है. एक समय इंडियन एक्सप्रेस के संपादक रहे और मीडिया की आजादी की बात करने वाले शेखर गुप्ता ने ट्वीट पर एक तरह हर्षा भोगले को धमकी ही दे दी थी. उनके ट्वीट की आखिरी लाइन ही थी कि बीसीसीआई अभी तो दबी-कुचली हालत में है. लेकिन वो वापस आएगी.
No Harsha, you’re wrong. And once in a while, pls do risk annoying the Aussies. Indian cricketers, post-Ganguly, stopped being intimidated by the Aussies. Not Indian commentators yet. And don’t worry, BCCI’s power is throttled for now. But it will be back. https://t.co/jrS0q9tKdg
— Shekhar Gupta (@ShekharGupta) December 16, 2018
दरअसल, सवाल यही है. बीसीसीआई जब पूरी तरह ताकतवर हो जाए, तो क्या ये आवाजें फिर बंद हो जाएंगी? क्या वाकई किसी कमेंटेटर को अपने देश के खिलाफ बोलने का अधिकार नहीं है? अगर ऐसा है, तो जेफ्री बॉयकॉट से लेकर माइकल होल्डिंग और रिची बेनो से लेकर नासिर हुसैन समेत तमाम ऐसी आवाजें सुनाई नहीं देंगी, जिन्हें आजाद आवाज माना जाता रहा है. जो अपनी टीम के खिलाफ भी कोई सख्त टिप्पणी करने से नहीं चूकते. साथ में सवाल यह भी है कि गावस्कर जैसे लोगों की जो आवाज ‘आजाद’ हुई है, वो क्या भविष्य में भी ऐसी ही रहेगी? भले ही बीसीसीआई कितनी भी ताकतवर हो जाए!
हंदवाड़ा में भी आतंकियों के साथ एक एनकाउंटर चल रहा है. बताया जा रहा है कि यहां के यारू इलाके में जवानों ने दो आतंकियों को घेर रखा है
कांग्रेस में शामिल हो कर अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत करने जा रहीं फिल्म अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर का कहना है कि वह ग्लैमर के कारण नहीं बल्कि विचारधारा के कारण कांग्रेस में आई हैं
पीएम के संबोधन पर राहुल गांधी ने उनपर कुछ इसतरह तंज कसा.
मलाइका अरोड़ा दूसरी बार शादी करने जा रही हैं
संयुक्त निदेशक स्तर के एक अधिकारी को जरूरी दस्तावेजों के साथ बुधवार लंदन रवाना होने का काम सौंपा गया है.