भारतीय टीम ने सोमवार को एडिलेड ओवल मैदान पर 15 साल पहले 2003 में मिली जीत की याद दिला दी. हालांकि उस समय सौरव गांगुली की अगुआई वाली टीम इंडिया को दावेदार नहीं माना जा रहा था. लेकिन राहुल द्रविड़ ने एकाग्रता के साथ विकेट पर टिकने की क्षमता का प्रदर्शन किया तो वो एक मिसाल बन गए. वहीं विराट कोहली की कप्तानी वाली टीम विदेशी सरजमीं पर अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाने का कलंक धोने और 70 बरस में पहली बार यहां सीरीज जीतने का लक्ष्य लेकर ही पहुंची है. फिर भी इस मैदान पर दोनों मैचों में मिली भारत की जीत में काफी समानता है. कोहली की टीम को जीत 10 दिसंबर को मिली है तो 2003 में 16 दिसंबर को गांगुली की टीम को ऐतिहासिक जीत के दीदार हुए थे.
राहुल द्रविड़ के रोल में चेतेश्वर
ये भी संयोग है कि एडिलेड ओवल में भारत को दोनों ही जीत तीसरे नंबर के बल्लेबाज ने दिलाईं. 2003 में एडिलेड में मिली यादगार जीत में जहां 'मैन ऑफ द मैच' राहुल द्रविड़ ने अहम भूमिका निभाई थी तो इस बार वही काम चेतेश्वर पुजारा ने किया. पुजारा मैच के नायक रहे. द्रविड़ ने उस मैच की पहली पारी में दोहरा शतक जड़ते हुए 233 रनों की पारी खेली थी, जबकि दूसरी पारी में उन्होंने नाबाद 72 रनों की पारी खेलकर टीम इंडिया को जीत दिलाई थी. पुजारा ने 246 गेंदों पर 123 रनों की धैर्यभरी पारी खेलकर भारत को पहली पारी में बढ़त दिलाई. दूसरी पारी में भी पुजारा का बल्ला चला और उन्होंने 204 गेंदों में 71 रनों की पारी खेली.
विश्व क्रिकेट में भारतीय टीम के नंबर तीन के अलावा शायद ही कोई दूसरा कोई बल्लेबाज होगा जिसके ऊपर जिम्मेदारियों का इतना बड़ा बोझ होगा. इस टेस्ट में चेतेश्वर पुजारा को क्रीज पर उस समय उतरना पड़ा जब भारत ने सलामी बल्लेबाज केएल राहुल का विकेट महज तीन रन पर गंवा दिया था. भारत ने 41 रन पर शीर्ष चार बल्लेबाजों के विकेट गंवा दिए. शीर्ष क्रम के ढहने के बाद चेतेश्वर पुजारा ने संयम भरी पारी खेली. उन्होंने तीन महत्वपूर्ण साझेदारियां भी निभाईं. वह पहले दिन की अंतिम गेंद पर रन आउट होकर पवेलियन लौट गए. लेकिन जाने के पहले अपना काम पूरा कर गए. टीम ने जो 250 रन बनाए उसमें 123 अकेले उन्होंने बनाए.
What a way to start the series!#TeamIndia never released the pressure. Superb batting by @cheteshwar1 with crucial knocks in both innings, @ajinkyarahane88 in the 2nd innings and excellent contributions by our 4 bowlers. This has brought back memories of 2003. #INDvAUS pic.twitter.com/4gmviaKeCC
— Sachin Tendulkar (@sachin_rt) December 10, 2018
पुजारा के दम पर जीता मैच
दूसरी पारी में शीर्ष क्रम चला तो सही, लेकिन कोई भी बल्लेबाज अच्छी शुरुआत को बड़ी पारी में नहीं तब्दील कर सका. फिर भारत के निचले क्रम के बल्लेबाज भी नहीं चल पाए और उसने अपने आखिरी चार विकेट पर चार रन के अंदर गंवा दिए. लेकिन पुजारा (71) और रहाणे (70) के अर्धशतकों की मदद से वह 307 रन बनाने में सफल रहा. पुजारा जब पवेलियन लौट रहे थे तो दर्शकों ने खड़े होकर उनका अभिवादन किया. उन्होंने इस मैच में 450 गेंदों का सामना किया. वह ऑस्ट्रेलियाई सरजमीं पर एक मैच में सर्वाधिक गेंदों का सामना करने वाले भारतीय बल्लेबाजों की सूची में सचिन तेंदुलकर (525 गेंदें, सिडनी, 2004) के बाद दूसरे स्थान पर पहुंच गए हैं.
चेतेश्वर पुजारा की तुलना तो उनके करियर की शुरुआत से ही राहुल द्रविड़ से होने लगी थी. यही उन्हें अपनी बल्लेबाजी शैली के कारण टीम इंडिया की नई दीवार भी कहा जाने लगा था. पुजारा पहली बार सुर्खियों में तब आए थे, जब उन्होंने सौराष्ट्र की अंडर-14 टीम के लिए खेलते हुए तिहरा शतक लगाया था. वह प्रथम श्रेणी में तीन तिहरे शतक लगाकर तहलका मचा दिया था. द्रविड़ की तरह उन्होंने दिखा दिया है कि वह रनों के भूखे हैं और टीम की किस्मत अकेले लिखने का दम रखते है. जिस तरह द्रविड़ की एकाग्रता एक मिसाल बन गई थी. चेतेश्वर पुजारा भी उनसे कोई ज्यादा पीछे नहीं हैं.
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