टीम इंडिया से बाहर रहते हुए हरभजन सिंह को औसत घरेलू क्रिकेटरों के हालात जानने का मौका मिला. इसके बाद उन्होंने भारतीय टीम के कोच अनिल कुंबले से अनुरोध किया है कि वे सीओए के सामने उनकी मैच फीस बढाने का मसला रखें. कुंबले 21 मई को प्रशासकों की समिति के सामने प्रेजेंटेशन देंगे जिसमें अनुबंधित भारतीय क्रिकेटरों के लिये संशोधित भुगतान ढांचे का खाका पेश करेंगे. ये ग्रेड दो करोड़, एक करोड़ और 50 लाख रुपए हैं.
भारत के टॉप क्रिकेटर और आईपीएल कॉन्ट्रैक्ट पाने वाले कुछ प्रथम श्रेणी क्रिकेटरों के अलावा औसत घरेलू क्रिकेटरों को एक प्रथम श्रेणी मैच (रणजी या दलीप ट्रॉफी) खेलने पर डेढ़ लाख रुपए मिलते हैं. वहीं अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटरों को एक टेस्ट मैच खेलने के 15 लाख रुपए दिए जाते हैं.
भारत के सर्वश्रेष्ठ स्पिनरों में से एक हरभजन ने कुंबले को हाल ही में घरेलू क्रिकेटरों की वित्तीय असुरक्षा के बारे में लिखा. हरभजन ने पत्र में लिखा, ‘पिछले दो-तीन साल से मैं लगातार रणजी ट्रॉफी खेल रहा हूं. मैंने प्रथम श्रेणी साथी क्रिकेटरों की आर्थिक हालत देखी है. रणजी ट्रॉफी की मेजबानी दुनिया का सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड करता है. मैं एक खिलाड़ी के तौर पर आपसे अपील करता हूं. आप सभी रणजी खिलाड़ियों के लिये प्रेरणास्रोत और रोल मॉडल हैं.’
हरभजन ने लिखा, ‘मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि बोर्ड के आला अधिकारियों और सचिन, राहुल, लक्ष्मण और वीरू जैसे खिलाड़ियों से बात करके भुगतान की रकम में बदलाव सुनिश्चित करें.’ उन्होंने यह भी कहा कि यह बात समझ से परे है कि लंबे समय से रणजी ट्रॉफी में भुगतान के ढांचे में बदलाव नहीं हुआ है.
उन्होंने कहा, ‘मैं बदलाव लाने में मदद करने के लिए तैयार हूं. यह हैरानी की बात है कि 2004 से भुगतान व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं हुआ है. उस समय 100 रुपए की कीमत क्या थी और अब क्या है.’
हरभजन ने कहा, ‘आज के दौर में आप खुद को पेशेवर कैसे कह सकते हैं जब आपकी नौकरी आपको यह भी नहीं बताती कि सालाना आपको कितना पैसा मिलेगा. आपकी सालाना कमाई भी तय नहीं है और वह भी तब जब साल भर का काम पूरा होने पर आपको पैसा मिलता है.’
उन्होंने कहा, ‘ये खिलाड़ी अपना भविष्य तय नहीं कर सकते क्योंकि उन्हें पता ही नहीं है कि उन्हें इस साल एक लाख रुपए मिलेंगे या दस लाख रुपए. इससे उनकी निजी जिंदगी में कई समस्याएं पैदा हो जाती हैं.’
पत्र के बारे में पूछने पर हरभजन ने कहा, ‘यदि मैंने पिछले चार-पांच साल घरेलू क्रिकेट नहीं खेली होती तो मुझे औसत घरेलू क्रिकेटरों के हालात पता ही नहीं चलते. हर किसी के पास काम नहीं है. आईपीएल करार मिलने पर उनकी जिंदगी बेहतर होती है लेकिन सभी को तो यह करार नहीं मिलता ना.’
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