भारतीय क्रिकेट बोर्ड ने इस बार भी राष्ट्रीय खेल पुरस्कारों के लिए नाम भेज दिए हैं. कप्तान विराट कोहली के लिए राजीव गांधी खेल रत्न की सिफारिश की गई है जबकि बोर्ड को लगता है कि अंडर-19 विश्व कप विजेता टीम के कोच व पूर्व टेस्ट कप्तान राहुल द्रविड़ द्रोणाचार्य सम्मान के लिए उपयुक्त उम्मीदवार हैं.
पूर्व दिग्गज सुनील गावस्कर को भी ताउम्र योदगान के लिए ध्यानचंद अवॉर्ड के लिए नामित किया गया है. यह तीनों नाम इस खेल में उपलब्धियों की मुहर हैं और इनकी क्षमताओं और योगदान पर कोई भी सवाल नहीं खड़ा कर सकता.
क्रिकेट की भारत में लोकप्रियता के मद्देनजर ये तीनों ही देश के शीर्ष सम्मान के हकदार हैं. लेकिन सरकार को इन नामों पर मुहर से पहले अपनी स्थिति साफ करनी पड़ेगी, क्योंकि इसी महीने लॉ कमीशन ने सरकार को अपनी सिफारिश भेजी है कि बीसीसीआई को सूचना के अधिकार के तहत लाया जाना चाहिए. लेकिन सरकारी कागजों में बीसीसीआई का बतौर राष्ट्रीय खेल संस्था कोई वजूद ही नहीं है.
सरकार ने संसद में पिछले तीन साल में कई बार लाचारी से जवाब दिया है कि बीसीसीआई बतौर राष्ट्रीय खेल संस्था न तो भारतीय ओलंपिक संघ और न ही भारत सरकार में पंजीकृत है. खुद बीसीसीआई ने कई कोर्ट केस में शपथ पत्र दाखिल कर रखे हैं कि खिलाड़ी उसके लिए खेलते हैं न कि भारत के लिए.
इस सब के बीच लॉ कमीशन ने तर्क दिया है कि अगर बीसीसीआई देश और उसके राष्ट्रीय झंडे व गान का इस्तेमाल करते हैं, सरकार उसके खिलाड़ियों को अर्जुन व अन्य खेल सम्मान देती है तो बतौर राष्ट्रीय टीम उसे आरटीआई के दायरे में लाया जाना चाहिए.
रोचक यह है कि बीसीसीआई ने इस पूरी बहस के बीच फिर ने इन दिग्गजों के नाम राष्ट्रीय खेल पुरस्कारों के लिए भेजे हैं. यही उपयुक्त समय है कि सरकार साफ करे कि उसकी फाइलों में क्रिकेट का क्या अस्त्तित्व है! क्या भारतीय टीम के नाम से खेलने वाले क्रिकेटर भारतीय हैं या बीसीसीआई के करारशुदा खिलाड़ी !
गए दिसंबर कुछ सदस्यों ने लोकसभा में सवाल किया कि उन खेलों व खिलाड़ियों की सूची मुहैया करवाई जाए जिन्होंने हाल ही में अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में देश का नाम रोशन किया.
सवाल नंबर 1096 के जवाब में खेल मंत्री और ओलंपिक पदक विजेता राज्यवर्धन राठौड़ ने जवाब दिया कि बतौर राष्ट्रीय टीम व व्यक्तिगत स्तर पर पिछले पांच सालों के दौरान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शूटिंग, बैडमिंटन, बॉक्सिंग, कुश्ती, एथलेटिक्स, पैरा एथलेटिक्स, हॉकी, तीरंदाजी, जिमनास्टिक्स, बिलियर्ड्स-स्नूकर, वेटलिफ्टिंग, स्क्वॉश, कबड्डी और टेनिस में भारत ने सराहनीय परिणाम हासिल किए हैं. सरकार की इस लिस्ट में क्रिकेट का नाम नहीं था.
वैसे क्रिकेट टीमों ने उस समय बुरा प्रदर्शन नहीं किया था. विराट कोहली की टीम उस समय आईसीसी की टेस्ट रैंकिंग में नंबर वन और वनडे व टी-20 में दूसरे स्थान पर थी. पिछले 12 महीने में टीम ने एशिया कप टी-20 भी जीता और महिला टीम जुलाई में इंग्लैंड के हाथों सिर्फ नौ रन से लॉर्डस में विश्व कप का फाइनल हारी थी.
ऐसे समय में जब पूरे देश में राष्ट्रीयता की बयार बह रही है, समय आ गया है कि सरकार खुद अपना कन्फयूजन खत्म करे कि विराट कोहली की टीम भारतीय टीम है या नहीं. अगर है तो सरकार को अपने रिकॉर्ड ठीक करने चाहिए और बीसीसीआई को बतौर राष्ट्रीय खेल संस्था तुरंत पंजीकृत होने के लिए दबाव डालना चाहिए.
बीसीसीआई को आरटीआई के दायरे लाकर वह तुरंत इस दिशा में बड़ा कदम उठा सकती है. ध्यानचंद अवॉर्ड के लिए नामित गावस्कर कह चुके है कि जो संस्था कुछ गलत नहीं करती और देश के हर नियम को मानती है, उसे आरटीआई से डरने की जरूरत नहीं.
ऐसे में हमेशा की तरह इस बार भी बीसीसीआई को जवाब नहीं देना कि उसके क्रिकेटरों को राष्ट्रीय अवार्ड क्यों नहीं मिलने चाहिए! हमेशा की तरह सरकार को खुद के लिए ही जवाब तलाशना है कि आखिर हर प्लेटफॉर्म पर खुद को एक निजी संस्था साबित करने वाले बीसीसीआई के क्रिकेटरों को क्यों राष्ट्रीय अवार्ड दिए जाने चाहिए!
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