इंडियन प्रीमियर लीग की गर्मी खत्म हुए अभी ज्यादा समय नहीं हुआ है. विराट कोहली की टीम के अधिकतर खिलाड़ी 40-42 डिग्री की गर्मी में आईपीएल खेलने के बाद जब लंदन के एयरपोर्ट पर उतरेंगे तो ताजा-ताजा सर्दी और पाकिस्तान के खिलाफ 4 जून को बर्मिंघम में पहले मुकाबले का दबाव उनका स्वागत करेगा.
पिछले साल मई से लेकर रवानगी तक टीम के अधिकतर सदस्य 16 टेस्ट, 11 वनडे और 47 दिन के आईपीए का हिस्सा रहे. एक साल में इतना खेलने के बाद कोई भी जानकार थकान के असर से इनकार नहीं करेगा.
अब भारतीय टीम थकान से उबर कर ऐसे मौसम में खुद को ढाल कर उम्मीदों के अनुसार प्रदर्शन करने में सफल होगी? हम सब जानते हैं कि इंग्लैंड में ताजा-ताजा शुरू हुई सर्दी में बॉल दोनों तरफ स्विंग करती है. ऐसे में टीम की कामयाबी को लेकर सवाल उठता है. क्या वो कामयाब होगी, यह एक यक्ष प्रश्न है.
क्रिकेट के तकनीकी पहलू की नजर से साफ है कि जो टीम जाते ही खुद को इंग्लैंड की परिस्थितियों में ढालने में कामयाब होगी, ट्रॉफी उसी के हाथ में होगी. जाहिर है, आईपीएल की नाकामी के बाद सभी की निगाहें कप्तान कोहली पर रहेंगी. या यूं कहें कि चैंपियंस ट्रॉफी में फाइनल तक का भविष्य बहुत हद तक विराट के बल्ले ने ही तय करना है.
विराट की फॉर्म को लेकर भी है फिक्र
विराट ऐसे बल्लेबाज हैं जो लंबे समय तक या ज्यादा दिनों तक खराब फॉर्म को अपने पर हावी नहीं होने देते. लेकिन आईपीएल में 10 मैचों में 122 के स्ट्राइक रेट से महज 308 रन ही विराट के लिए सवाल नहीं हैं. सवाल और भी हैं. रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर ने इस सीजन में 14 मैच खेले. इनमें से 10 रात को 8 बजे से खेले गए. पूरा मैच फ्लड लाइट में खेलने का मतलब है आधी रात के बाद होटल के कमरे में पहुंचना और अधिकतर समय सुबह अवे मैच के लिए फ्लाइट पकड़ना. ये रुटीन शरीर पर असर जरूर डालता है.
विराट के आंकड़े महज उदहारण हैं. चैंपियंस ट्रॉफी के लिए जाने वाले अधिकतर सदस्यों ने यही झेला है. क्रिकेटर रिकॉर्ड पर कभी इस की शिकायत नहीं करते क्योंकि मोटी रकम वाला करार उन्हें ऐसा करने की इजाजत नहीं देता. लेकिन व्यक्तिगत बातचीत में वह इस बारे में बात करने में नहीं हिचकते.
इन सब परिस्थितियों में इंग्लैंड में न सिर्फ खेलना बल्कि अपनी पूरी क्षमता को झोंकना चुनौती होगी. टीम इंडिया ने पिछले एक साल के दौरान क्रिकेट ऐसी पिचों पर खेली है जो पूरी तरह से उसके बल्लेबाजों के अनुकूल थी. सीधे शब्दों में कहें कि क्यूरेटरों ने वह सब किया जो टीम प्रबंधन ने चाहा.
स्पिनर्स को होगी इंग्लैंड में मुश्किल
कुछ चुनिंदा क्यूरेटरों की तारीफ भी हुई जिनकी बनाई पिचों पर गेंद घुटने से उपर तक उठी. लेकिन इंग्लैंड वैसा नहीं है. आर अश्विन और रवींद्र जडेजा के सामने वहां की पिचों पर रन बनाना तो दूर की बात, अपना विकेट बचाना सबसे बड़ी चुनौती होती है. इसके साथ एशियाई महाद्वीप से बाहर इन दोनों के लिए विकेट हासिल करना भी हमेशा मेहनत भरा रहा है.
टीम के लिए अच्छी बात यह है कि उसके पास वह उमेश यादव है जो पहले से कहीं परिपक्व और गेंद के साथ प्रयोग करने वाला ऐसा गेंदबाज है. जो किसी भी परिस्थिति में टीम को विकेट दिलाने की क्षमता रखता है. चैंपियंस ट्रॉफी में उमेश यादव पर निगाह रहेगी क्योंकि जिस तरह की गेंदबाजी वह आजकल कर रहे हैं, इंग्लैंड की पिचों पर वह किसी भी बल्लेबाज को परेशान कर सकते हैं.
यहां एक और तेज गेंदबाज जसप्रीत बुमराह का जिक्र करना जरूरी है. यॉर्कर उनका हथियार है और यह टीम के लिए एक कारगर हथियार साबित हो सकता है. इस सबके बीच सबसे अहम पहलू भारत का पहला मैच है.
भारत 4 जून को बर्मिंघम में अपने चिर-परिचित प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान से खेलेगा. हाल के सालों में भारत का वनडे मैचों खासकर आईसीसी के टूर्नामेंटों में पाकिस्तान के खिलाफ जीत की औसत 95 फीसदी रहा है.
इसमें कोई दोराय नहीं है कि इंग्लैंड की बेहद चुनौती भरी परिस्थितियों में भारत के लिए यह मैच एक वरदान की तरह है. 2015 विश्व कप की तरह अगर टीम इंडिया पाकिस्तान को पीटती है तो उसे एक लय मिलेगी. ऐसा होने पर टीम इंडिया उन चुनौतियों पर काबू पा सकती है, जिसका डर उनकी रवानगी के वक्त सता रहा है.
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