वसीम जाफर (Wasim Jaffer) किसी और जमाने के खिलाड़ी लगते हैं, जो गलती से या हमारे सौभाग्य से इस जमाने में खेल रहे हैं. उनकी उम्र चालीस के पार हो गई है और उनके प्रथम श्रेणी क्रिकेट का आगाज 1995 में हुआ था जब ऋषभ पंत (Rishabh Pant) पैदा भी नहीं हुए थे. वे रणजी ट्रॉफी में सबसे ज्यादा रन बनाने वाले बल्लेबाज हैं और आज भी धुआंधार रन बना रहे हैं. इस सीज़न में वे अपने से आधी उम्र के गेंदबाजों के खिलाफ तीन बड़े शतक और एक दोहरा शतक लगा चुके हैं. वे पिछले तीन सीजन से विदर्भ के लिए खेल रहे हैं और पिछले साल विदर्भ के रणजी ट्रॉफी जीतने में उनका बडा योगदान है और यह भी कि उनकी बल्लेबाजी देखने की चीज है , वे बला के लयदार आकर्षक बल्लेबाज हैं.
संडे स्पेशल: तो क्या नई पीढ़ी से खत्म हो रहा टेस्ट के लिए जरूरी संयम और अनुशासन!
रणजी ट्रॉफी में इस सीजन में बड़े कम रन बन रहे हैं. जनवरी के तीसरे सप्ताह में जो मुकाबले हुए थे, उनमें से कई में दोनों टीमें एक पारी में दो सौ के आसपास या उससे भी कम रन बना पाईं. इसकी वजह कुछ तो मौसम है, जिसमें स्विंग गेंदबाजों को कुछ मदद मिलती है, खास कर सुबह के सत्र में. दूसरी वजह घरेलू क्रिकेट में गेंदबाज़ी के अनुकूल विकेट बनाना है. तीसरी वजह यह है कि तमाम टीमों के पास इन दिनों अच्छे मध्यम गति गेंदबाज हैं. आजकल भारत में अच्छे तेज या मध्यम गति गेंदबाज बहुत निकल रहे हैं जो अच्छी बात है. लेकिन एक और वजह यह है कि इन दिनों घरेलू क्रिकेट में ऐसे बल्लेबाज नहीं दिख रहे हैं जो ठहरकर लंबी पारी खेल सकें , खास तौर पर प्रतिकूल परिस्थिति में. इसलिए ज्यादातर मैचों में यह देखने में आया जब भी किसी टीम को बड़ा स्कोर बनाने की चुनौती मिली , वह ढेर हो गई या अगर वह कामयाब भी हुई तो किसी खिलाड़ी की ताबड़तोड़ धुआंधार पारी की वजह से , जैसे दिल्ली के खिलाफ हर सत्र में पिछड़ने के बावजूद बंगाल ने चौथी पारी में अभिमन्यु ईश्वरन की विस्फोटक पारी की वजह से जीत हासिल की या राजस्थान के खिलाफ बराबरी के मुकाबले में मनीष पांडे की आक्रामक पारी की वजह से कर्नाटक की टीम जीत गई.
उत्तराखंड की टीम ने जब विदर्भ के खिलाफ साढ़े तीन सौ रन बना लिए तो इन दिनों का चलन देखते हुए विदर्भ को मुसीबत में आ जाना चाहिए था लेकिन वसीम जाफर के दोहरे शतक की वजह से उसने छह सौ रन बटोर लिए. सतीश रामास्वामी ने भी बड़ा शतक लगाया और अक्षय वाडकर ने नब्बे की पारी खेली. लेकिन ऐसी पारी आजकल रणजी ट्रॉफी में कम देखने में आती है बल्कि मेरी याददाश्त में इस सीजन की ऐसी यह अकेली और सर्वश्रेष्ठ पारी होनी चाहिए. यानी अब ऐसे बल्लेबाज प्रथम श्रेणी क्रिकेट में कम देखने में आ रहे हैं जिन्हें देखकर लगे कि ये टेस्ट क्रिकेट के लिए आदर्श बल्लेबाज हो सकते हैं. नए बल्लेबाज जैसे पृथ्वी शॉ , ऋषभ पंत और शुभमन गिल धुआंधार बल्लेबाजी करते ही दिखते हैं.
ख़ासकर मध्य क्रम में. जैसे तेंदुलकर , द्रविड़ , लक्ष्मण, गांगुली के दौर में रोहित शर्मा और अजिंक्य राहणे की चर्चा होती थी. विराट कोहली पर लोगों की नजर थी. चेतेश्वर पुजारा से लोग बड़ी उम्मीदें बांध रहे थे. वैसा अब कोई नाम नहीं दिख रहा.
क्रिकेट का स्वरूप आजकल ऐसा है कि तमाम प्रतिभाशाली युवा बल्लेबाज सहवाग के अंदाज वाले निकल रहे हैं. राहुल द्रविड़ की तर्ज पर ढला कोई युवा बल्लेबाज नहीं दिखाई देता. तब राहुल द्रविड़ और अब चेतेश्वर पुजारा ने यह साबित किया है कि किसी टीम की सफलता के लिए उनके अंदाज की बल्लेबाज़ी का कितना महत्व है. ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट सीरीज में भारत की पहली जीत में कायदे से भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच सबसे बडा फर्क पुजारा ही थे. ऐसे पारी को मजबूती देने वाले और बांध कर रखने वाले बल्लेबाजों की टीम को हमेशा जरूरत होती है और नई पीढ़ी में ऐसे बल्लेबाज नहीं दिख रहे हैं. यह अच्छी बात नहीं है. यह रणजी ट्रॉफी में आज दिख रहा है और हो सकता है कि कल भारतीय टेस्ट टीम में दिखाई दे. जरूरी यह है कि नए बल्लेबाजों को आक्रामकता के साथ मजबूत रक्षात्मक बल्लेबाजी और प्रतिकूल परिस्थितियों में लंबी पारी रचने का कौशल विशेष रूप से सिखाया जाए. भारतीय क्रिकेट के भविष्य के लिए यह अच्छा होगा.
(यह लेख पहले प्रकाशित हो चुका है. वसीम जाफर के जन्मदिन के मौके पर इसे दोबारा प्रकाशित किया गया है.)
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