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वाडा-नाडा को पता नहीं लेकिन खेल मंत्रियों से टीआरपी की फीस लेनी चाहिए बोर्ड को

बीसीसीआई की तरफ से नाडा को लेकर किया गया पत्राचार पूरे हफ्ते सुर्खियों में छाया रहा

Updated On: Nov 11, 2017 12:52 PM IST

Jasvinder Sidhu Jasvinder Sidhu

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वाडा-नाडा को पता नहीं लेकिन खेल मंत्रियों से टीआरपी की फीस लेनी चाहिए बोर्ड को

बीसीसीआई ने खेल मंत्रालय और नेशनल एंटी डोपिंग एजेंसी  (नाडा) को लिख कर साफ कर दिया है कि वह नेशनल फेडेरेशन नहीं है और नाडा को उसे क्रिकेटरों को डोप टेस्ट के लिए कहने का कोई हक नहीं हैं.

वैसे बोर्ड को यह  बताने की जरुरत नहीं थी क्योंकि खुद नाडा के नियमों में साफ लिखा है कि उसके नियम सरकार और ओलिंपिक कमेटी से मान्यता प्राप्त फेडरेशनों पर ही लागू होते हैं.

नाडा के नियमों के पहले दो पन्नों पर ही पूरी स्थिति साफ है. लेकिन फिर भी खेल मंत्रालय ने बोर्ड को लिखा.

यह पहली बार नहीं है  सरकार ने बोर्ड से अपना बात मनमाने की झूठी कोशिश की हो. हाल के सालों में कई खेल मंत्रियों ने बीसीसीआई के माध्यम से मीडिया में खूब सुर्खियां बटोरी लेकिन किसी ने कुछ नहीं किया.

अजय माकन जैसे खेल मंत्रियों ने बाकियों को रास्ता दिखाया कि किस तरह से बोर्ड को निशाना बना कर अखबार के पहले पन्ने पर आया जा सकता है.

इसलिए जब तक वह खेल मंत्री रहे, वह लगातार बोर्ड को सूचना के अधिकार के तहत लाने के बयान देते रहे. मीडिया ने भी उनके हर ऐसे बयान को प्रमुखता के छापा और दिखाया. लेकिन हुआ क्या!

अब तक पारित नहीं हुआ स्पोर्टस फ्रॉड प्रवेंशन बिल

अभी कुछ महीने पहले तक खेल मंत्री रहे विजय गोयल ने भी बोर्ड को लेकर खबरों में काफी जगह बनाई. लेकिन परिणाम के तौर पर देखें तो कुछ भी हासिल नहीं किया गया.

माकन के समय से स्पोर्टस फ्रॉड प्रवेंशन बिल लंबित है. 2013 में इंडियन प्रीमियर लीग में स्पॉट फिक्सिंग के बाद इस बिल का जन्म हुआ लेकिन यह अभी तक किसी भी खेल मंत्री ने केबिनेट की मीटिंग तक में इसे पेश करने की जरुरत नहीं समझी.

न ही किसी खेल मंत्री ने यह दम दिखाया कि बाकी फेडरेशनों की तरह बीसीसीआई को स्पोर्टस कोड के तहत लाया जाए.

जाते-जाते गोयल ने बोर्ड को कोड के तहत लाने पर बयान दिया. इस लेखक ने गोयल से पूछा था कि स्पोर्टस फ्रॉड बिल पेश करने का उनका कोई इरादा है. इस पर उनका जवाब था कि वह बिल उनकी प्राथमिकता नहीं हैं.

जाहिर है कि बीसीसीआई को लेकर जिन मसलों पर सरकार और खेल मंत्रालय को अपनी ताकत दिखानी चाहिए, वहां केवल मौखिक तीरंदाजी ही होती आई हैं.

सबसे पहले फर्स्ट पोस्ट ने लिखा था कि नाडा के नियम बीसीसीआई पर लागू नहीं होते क्योंकि नाडा के नियमों में आर्टिकल 1 के भाग 1.2.1 के अनुसार जो भी नेशनल स्पोर्टस फेडेरेशन सरकार या नेशनल ओलिंपिक कमेटी से वित्तीय या किसी भी अन्य तरह की सहायता लेती है, उसी पर नाडा के एंटी डोपिंग नियम लागू होते हैं. दूसरी अहम शर्त है कि वह नेशनल फेडेरेशन होनी चाहिए.

राहुल जोहरी के खत को मिली मीडिया की पूरी तवज्जो

बीसीसीआई के मुख्यकार्यकारी राहुल जोहरी ने खेल मंत्रालय को लिखे खत में सीधे शब्दों में कहा है कि बोर्ड नेशनल फेडेरेशन नहीं बल्कि इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल से मान्यता प्राप्त स्वायत यानि आजाद संस्था है.

साफ था कि बोर्ड के साथ खेल मंत्रालय की इस चिट्ठीबाजी का यही हश्र होना था लेकिन इससे मीडिया में जो जगह मिली, वह पैसा वसूल करने वाली रही.

NEW DELHI, INDIA - SEPTEMBER 18: Rahul Johri, first ever Chief Executive Officer (CEO) of BCCI, during a press conference, on September 18, 2016 in New Delhi, India. BCCI President Anurag Thakur announced new tender for the Indian Premier League’s broadcast and digital rights that end with the 10th edition of the league in 2017. (Photo by Vipin Kumar/Hindustan Times via Getty Images)

होना यह चाहिए था कि खेल मंत्रालय को बोर्ड को चिट्ठी लिखने की बजाय वर्ल्ड एंटी डोपिंग एजेंसी (वाडा) से कहता कि चूंकि आईसीसी और वाडा में करार है और बीसीसाआई केवल आईसीसी को मानता है, इसलिए आईसीसी को चाहिए कि वह बीसीसीआई को नाडा के नियम मानने के लिए राजी करे.

लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इस सब के बावजूद यह पूरे हफ्ते में एक बड़ी खबर रही.

इस पूरे प्रकरण से एक बार फिर साबित हो गया है कि आंख बंद करके बिना नियम कानून पढ़े किसी भी मुद्दे पर बीसीसीआई पर हमला खेल मंत्रियों और मंत्रालय को सुर्खियों में ला देता है.

वैसे हर चीज से पैसा कमाने वाले बीसीसीआई के लिए इस टीआरपी के बदले खेल मंत्रियों से मोटी फीस लेने का आइडिया बुरा नहीं हैं

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