दिल्ली जिला क्रिकेट संघ (डीडीसीए) भ्रष्ट प्रशासन, गंदे महौल और बददिमाग अधिकारियों के लिए बदनाम है. लगता है कि डीडीसीए के अधिकारी भारतीय टीम में भी ऐसा माहौल बनाना चाहते हैं. इसका ताजा उदहारण अंतरिम अध्यक्ष सीके खन्ना का अंतरिम सचिव को लिखा वह खत है जिसमें उन्होंने कोच के पद की नियुक्ति 26 जून तक टालने की गुजारिश की है. यह खत कुंबले जैसे बड़े खिलाड़ी की फिर से कोच पद पर नियुक्ति को रोकने की खालिस साजिश है.
जैसा कि अब साफ है कि सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली और वीवीएस लक्ष्मण वाली बीसीसीआई की क्रिकेट एडवाइजरी कमेटी कुंबले को 2019 के विश्व कप तक टीम का कोच बनाए रखने पर एकमत है, खन्ना की यह चिट्ठी कई सवाल खड़े करती है.
उम्र के आखिरी पड़ाव की ओर बढ़ रहे खन्ना ने जो तर्क दिए हैं, वे बचकाना हैं. खन्ना के अनुसार, ‘मैंने सचिव को पत्र लिख कर कोच की नियुक्ति 26 जून को होने वाली बीसीसीआई की एसजीएम तक टालने को कहा है. मेरा मानना है कि बड़े टूर्नामेंट के बीच में इस प्रक्रिया को जारी रखना ठीक नहीं होगा.’
जब कोच चुनने की जिम्मेदारी कमेटी की है तो 26 तारीख की मीटिंग तक प्रक्रिया रोकने की बात कहने का मतलब क्या है! हालांकि कमेटी ने भी समय मांगा है. लेकिन सवाल ये है कि सीके खन्ना इस तरह का खत कैसे लिख सकते हैं.
आखिर खन्ना ने क्यों लिखी चिट्ठी
ऐसा तर्क देने वाले खन्ना को शायद जानकारी नहीं है कि खुद बीसीसीआई ने ही चैंपियंस ट्रॉफी से पहले विज्ञापन दे कर कोच पद की नियुक्ति के लिए आवेदन मंगाए हैं. साथ ही चैंपियंस ट्रॉफी के दौरान ही इस प्रक्रिया को शुरू किया. अब अचानक खन्ना को लग रहा है कि बीच टूर्नामेंट के बीच किसी को कोच नियुक्त करना टीम के लिए ठीक नहीं होगा.
यह भी याद रखने की जरूरत है कि कोच कुंबले और कप्तान विराट कोहली के बीच तनाव की खबर टीम के चैंपियस ट्रॉफी पहले मैच से पहले सार्वजनिक हुईं.
जाहिर है, जो नुकसान होना था, वह हो चुका है. कोच के चयन की प्रक्रिया को रोकने की बात अपरिपक्वता का नमूना है और सीधे तौर पर कुंबले जैसे बड़े खिलाड़ी का अपमान है. वह भी कई दशकों से मठाधीश की तरह डीडीसीए में चिपके हुए एक ऐसे अधिकारी के द्वारा, जिसकी छवि पर हर साल न जाने कितने सवाल उठते हैं.
कुंबले का भारतीय क्रिकेट में क्या स्थान है, इसका अंदाजा विरेंदर सहवाग के आवेदन से लगाया जा सकता है. यह किसी से छिपा नहीं है कि विराट ने ही सहवाग को आवेदन करने के लिए कहा है. सहवाग के लिए यह काफी विषम स्थिति थी क्योंकि वह कुंबले और विराट की नाराजगी मोल लेने की स्थिति में नहीं थे.
लिहाजा उन्होंने दो लाइन का ही बायोडाटा भेजा. वह भी ऐसे समय में जब उनके साथ पेशेवरों की एक पूरी टीम काम कर रही है और कोई भी लेटर ड्रॉफ्ट कर सकता था.
कुंबले और सहवाग के बीच है खास कनेक्शन
यहां थोड़ा मुड़ कर इतिहास में देखने की भी जरूरत है. कुंबले की ही बदौलत 2007-2008 में सहवाग के कैरियर को नई जिंदगी मिली थी. कुंबले की कप्तानी में ही एक साल के टीम से बाहर बैठे सहवाग को आस्ट्रेलिया दौरे के लिए बुलाया गया.
पर्थ की बड़ी जीत में उनके नाम दो बॉल पर दो विकेट थे और एडिलेड में ड्रॉ रहे मैच में उन्होंने 151 रन लूटे थे. दौरे से लौटने के बाद पहले ही मैच में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ उनके चैन्नई टेस्ट में रिकॉर्ड 319 रन थे.
सिर्फ सहवाग ही क्यों, खुद सचिन, सौरव और लक्ष्मण के लिए कुंबले के खिलाफ कोई फैसला करना उनके जीवन की सबसे बड़ी चुनौती होगी. यह भी ध्यान रखने वाला सच है कि उम्र के लिहाज से ये तीनों भी खुद आने वाले 10-15 सालों तक टीम इंडिया के संभावित कोच बनने के योग्य हैं.
ऐसे में लगता नहीं कि महज कप्तान की राय पर कोच को बाहर का रास्ता दिखाने का जोखिम वह उठाएंगे. यकीनन ये तीनों कोई भी फैसला करने से पहले विराट और कुंबले के बीच एक पुल का काम करेंगे.
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