वर्ल्ड कप सेमीफाइनल चंद घंटे दूर है. कोच राहुल द्रविड़ के पास अब करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है. वो न्यूजीलैंड में अपनी टीम के साथ कुछ देर बातें जरूर कर सकते हैं. उन्हें प्रेरित कर सकते हैं. उन्हें समझा सकते हैं. क्या बता रहे होंगे द्रविड़? यकीनन, वो पाकिस्तान टीम के बारे में बता सकते हैं. वो बता सकते हैं कि कैसे टीम को इस तरह के मुकाबले में शांत रहना है. उसके अलावा, वो एक बात और बता सकते हैं, जो अभी थोड़ा अजीब लगेगी. वो टीम को बता सकते हैं कि उन्मुक्त चंद मत बनना.
आखिर ऐसा क्यों? उन्मुक्त चंद की टीम तो वर्ल्ड कप जीतकर लौटी थी. वो साल था 2012. हर कोच पिछले चैंपियनों जैसा बनने की ही सलाह देगा. लेकिन यहां मामला अलग है. खासतौर पर ध्यान रखते हुए कि आईपीएल ऑक्शन हुए भी चंद घंटे ही हुए हैं. ऑक्शन में अंडर 19 टीम के सात खिलाड़ियों को चुना गया है. इसमें कमलेश नागरकोटी 3.2 करोड़ और शिवम मावी तीन करोड़ में बिके हैं. इस कामयाबी के बीच ये खिलाड़ी वर्ल्ड कप सेमीफाइनल खेलने उतरेंगे. ऐसे में उन्मुक्त न बनने की चर्चा!!
दरअसल, आईपीएल ऑक्शन ही वो वजह है कि कोई भी कोच समझाना चाहेगा कि उन्मुक्त जैसा करियर नहीं होना चाहिए. तब 19 साल के उन्मुक्त आज 25 के हो गए हैं. आईपीएल में उनका बेस प्राइस महज 20 लाख रुपए था. उसके बावजूद उन्हें किसी भी टीम ने नहीं लिया. 25 की उम्र तो ज्यादा से ज्यादा खेलने की होती है. उन्मुक्त ने नवंबर के बाद कोई फर्स्ट क्लास मैच नहीं खेला. वो उसके बाद दिल्ली की रणजी टीम का हिस्सा नहीं थे. टी 20 इवेंट में भी वो ज्यादातर समय टीम का हिस्सा नहीं थे. हालांकि उन्हें आखिरी के मैचों में चुना गया. वनडे के लिए उन्हें दिल्ली टीम में चुने जाने का इंतजार है.
उन्मुक्त ने कहां से शुरू किया और कहां पहुंच गए
आखिर उन्मुक्त के साथ ऐसा क्या हुआ है? उससे पहले समझना जरूरी है कि उन्मुक्त क्या थे. दिल्ली के एक उच्च मध्यवर्गीय इलाके मयूर विहार के अपार्टमेंट में उनका परिवार रहता है. 2012 विश्व कप के फाइनल में परिवार ने बाहर टेंट और बड़ी स्क्रीन लगाई थी, ताकि आने वाले लोग मैच देख सकें. मैच जैसे-जैसे बढ़ा, भीड़ बढ़ी. उसके बाद जब उन्मुक्त लौटे, तब तो मीडिया का हुजूम जमा था. उन्मुक्त का एक मैनेजर भी आ गया था, जो उनके लिए इंटरव्यू से लेकर बाकी डील फाइनल करता था. उन्मुक्त आम से खास हो गए थे.
वो तो इतना बड़ा नाम हो गए थे उन पर टीवी चैनलों पर प्राइम टाइम शो हुए थे. अटैंडेंस के चलते जब उन्हें कॉलेज के इम्तिहान से रोकने की बात आई थी, तो यह राष्ट्रीय मसला बन गया था. ऐसा माना जा रहा था कि उन्मुक्त का भारत खेलना तय है. लेकिन अभी भारतीय टीम तो छोड़िए, राज्य की टीम से दूर हैं. आईपीएल की तो सारी टीमों ने महज 20 लाख बेस प्राइस होने के बावजूद उनसे किनारा कर ही लिया है.
चमकने और खो जाने के हैं कई उदाहरण
दरअसल, यही वो उम्र होती है, जब फोकस की बात आती है. जब चमक-दमक के बीच फोकस बनाए रखना खासा मुश्किल होता है. यह उत्तर भारत में ज्यादा देखा गया है. इसी का शिकार एक समय शिखर धवन हुए थे, जो एज ग्रुप में शानदार प्रदर्शन के बाद लगभग खो गए थे. सही रास्ते पर आने में उन्हें कई साल लग गए. खुद राहुल द्रविड़ ने 2008 में विराट कोहली की टीम के वर्ल्ड कप जीतने के बाद कहा था कि वो अंडर 19 के ज्यादा खिलाड़ियों को सीनियर टीम में देखना चाहते हैं. उन्होंने कहा था कि अंडर 19 के बाद खिलाड़ी कहीं खो जाते हैं.
एक उदाहरण मनिंदर सिंह का है. मनिंदर बड़ी कम उम्र में सीनियर टीम का हिस्सा हो गए थे. उसके बाद कहीं चमक-दमक में खो गए. उन्हें अहसास हुआ. लेकिन तब तक उनके ही शब्दों में वो लूप, वो ड्रिफ्ट, वो टर्न गायब हो गया था, जो उनकी पहचान था. उन्होंने बड़ी कोशिश की. लेकिन पुराना मनिंदर नहीं बन पाए. ऐसा ही कुछ उन्मुक्त के साथ हुआ. उन्हें करीब से जानने वाले बताते हैं कि उन्मुक्त बहुत कोशिश कर रहे हैं. उम्र अब भी उनके साथ है. लेकिन हम नहीं जानते कि उनकी कोशिश कितना रंग लाएगी.
ऐसे में द्रविड़ यकीनन आईपीएल ऑक्शन के बाद और वर्ल्ड कप सेमीफाइनल से पहले अपनी टीम को समझा रहे होंगे कि उन्हें पैसों की चमक में खो नहीं जाना है. नागरकोटी के सवा तीन और मावी के तीन करोड़ अचानक गायब हो जाएंगे, अगर वो अपने पैर जमीन पर नहीं बनाए रखेंगे. ऐसे में उन्हें उदाहरण के लिए उन्मुक्त से बेहतर नाम नहीं मिलेगा, जिसमें चार साल पहले सबसे बड़ा हीरो बनने की उम्मीदें देखी जाती थीं. ...और जो आज कहीं नहीं है.
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