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येसुदास जन्मदिन विशेष: एक पिता ने क्यों कहा था- तुम और कुछ मत करो बस संगीत सीखो

रवींद्र जैन कहा करते थे कि अगर कभी उन्हें दुनिया को देखने का मौका मिलता तो वो सबसे पहले येसुदास को देखना चाहते जिनकी आवाज में ईश्वर बसता है

Updated On: Jan 10, 2019 08:22 AM IST

Shivendra Kumar Singh Shivendra Kumar Singh

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येसुदास जन्मदिन विशेष: एक पिता ने क्यों कहा था- तुम और कुछ मत करो बस संगीत सीखो

हिंदुस्तान अभी आजाद नहीं हुआ था. देश भर में आजादी के लिए तमाम आंदोलन चलाए जा रहे थे. बावजूद इसके अभी आजादी का सूरज निकलने में देर थी. 1940 में कोच्चि के एक क्रिश्चियन परिवार में एक बच्चे का जन्म हुआ. पिता ऑगस्टीन जोसेफ शास्त्रीय संगीतकार थे. एक्टिंग भी किया करते थे. ऑगस्टीन हमेशा मानते थे कि दुनिया में भगवान सिर्फ एक ही है. जिसे अलग अलग नाम से बुलाया जाता है.

जाहिर है अपनी इसी सोच के साथ उन्होंने अपने बच्चे को बड़ा भी किया. बच्चे की उम्र अभी 4-5 साल ही थी जब ऑगस्टीन जोसेफ को ये लग गया कि उनके बेटे में संगीत के बीज हैं. उन्होंने अपने बेटे को सीखाना शुरू कर दिया. जैसे-जैसे बेटा बड़ा हुआ उन्होंने उसे बस एक ही सीख दी कि उसे आने वाले तमाम सालों तक एक बात को छोड़कर और किसी चीज की फिक्र नहीं करनी है. उसकी पढ़ाई अच्छी हो या ना हो, वो अच्छी तरह अंग्रेजी बोल पाए या ना बोल पाए बस उसे संगीत सीखते रहना है. वहां किसी तरह की गड़बड़ नहीं होनी चाहिए.

क्या थी पिता की चाहत?

ऑगस्टीन जोसेफ की ऐसी कोई चाहत नहीं थी कि उनका बेटा कम उम्र में ही बड़ी शोहरत हासिल कर ले. उनका नाम रोशन करे. वो चाहते थे कि उनका बेटा जो सीख रहा है पहले उसमें पक्का हो जाए बाकी बातें बाद में होती रहेंगी. इस दौरान उन्होंने आर्थिक परेशानियों का सामना भी किया लेकिन ना पिता की प्राथमिकता बदली ना ही बेटे की.

बेटे ने पिता के साथ-साथ और भी कई गुरुओं से संगीत की बारीकियां सीखीं. सीखने का ये दौर करीब बीस साल तक चलता रहा. वो छोटा सा बच्चा अब एक पक्का गायक बन चुका था. पिता ऑगस्टीन जोसेफ भी शायद इसी दिन का इंतजार कर रहे थे. 1964 में वो दुनिया छोड़ कर चले गए. कहते हैं कि उनकी मौत के वक्त परिवार ने तंगी का बुरा दौर भी देखा.

बावजूद इन चुनौतियों के वो दुनिया को एक ऐसा कलाकार देकर गए जिसे आज संगीत की पूरी दुनिया में प्यार, इज्जत, शोहरत सब कुछ हासिल है. ये कामयाबी सिर्फ फिल्मी संगीत में नहीं बल्कि कर्नाटिक संगीत में भी उसका नाम उतनी ही इज्जत से लिया जाता है. उस कलाकार का नाम है येसुदास. कट्टासेरी जोसेफ येसुदास. जिनका आज जन्मदिन है.

कैसा रहा फिल्मी सफर?

येसुदास यूं तो 60 के दशक में ही फिल्मी गायकी का करियर शुरू कर चुके थे. लेकिन उन्हें असली पहचान मिली 70 के दशक के आखिरी सालों में. फिल्म थी- छोटी सी बात. बासु चटर्जी की उस फिल्म का संगीत सलिल चौधरी ने तैयार किया था. जिसमें उन्होंने येसुदास को मौका दिया. उनका गाया गाना लाजवाब हिट हुआ. वो गाना आज भी हिट है.

गाने के बोल थे- जानेमन जानेमन तेरे दो नयन, चोरी चोरी लेकर गए देखो ये मेरा मन. ये येसुदास के संगीत की ताकत ही थी कि वो हिंदी फिल्मों के साथ साथ कई दूसरी भाषाओं के गीत गा रहे थे.

ताकत यानी वो परिपक्वता जो उन्होंने बचपन में ही हासिल की थी. उनकी इस परिपक्वता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि 1977 में जब येसुदास की उम्र सिर्फ 37 साल थी तब भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया था.

येसुदास खुद कहते हैं कि उनके पिता की चाहत ये थी भी नहीं कि उनके बेटे को कोई ‘चाइल्ड प्रॉडजी’ कहकर पुकारे. बल्कि वो चाहते थे कि जब भी येसुदास का गला खुले लोगों को समझ आए कि उस गायकी की परिपक्वता का स्तर क्या है.

खैर, लौटते हैं येसुदास के फिल्मी सफर पर. सलिल चौधरी के बाद जिस संगीतकार के साथ येसुदास की जोड़ी सुपरहिट साबित हुई वो थे- राजकमल. राजकमल और येसुदास की जोड़ी उन दिनों अच्छी चल रही थी. दोनों ने सावन को आने दो फिल्म की थी. इसके बाद 1981 में सई परांजपे ने फिल्म बनाई- चश्मेबद्दूर. इस फिल्म को अपार कामयाबी मिली थी. इस फिल्म में कहां से आए बदरा और काली घोड़ी ये दो गाने येसुदास ने गाए. इन दोनों गाने को येसुदास के साथ हेमंती शुक्ला ने गाया था.

यूं तो हेमंती बंगाली गायिका थीं लेकिन उन्होंने हिंदी फिल्मों के लिए भी कुछ गिने चुने गाने गाए थे. खैर, इसके बाद येसुदास को बतौर गायक रवींद्र जैन के संगीत से भी काफी नाम मिला. फिल्म चित्तचोर के गाने को आप कभी भी सुन सकते हैं. जिसमें आवाज येसुदास की और संगीत रवींद्र जैन का था.

किसके लिए गाए सबसे ज्यादा हिट गाना

एक और बात येसुदास के करियर की शुरुआती सफलता में दिखती है. वो ये कि बतौर निर्देशक बासु चटर्जी की फिल्मों में उन्होंने काफी हिट गाने गाए. सुरमई अंखियों में नन्हा मुन्ना एक सपना दे जा रे, जब दीप जले आना...जब शाम ढले जाना, गोरी तेरा गांव बड़ा प्यारा मैं तो गया मारा, तू जो मेरे सुर में सुर मिला ले, आज से पहले आज से ज्यादा खुशी आजतक नहीं मिली, मधुबन खुशबु देता है, चांद जैसे मुखड़े पे बिंदिया सितारा, मोहब्बत बड़े काम की चीज है, कोई गाता मैं सो जाता इस तरह के हिट गानों की फेहरिस्त आसानी से याद की जा सकती है.

80 के दशक में येसुदास ने अपनी एक म्यूजिक कंपनी भी शुरू की. उनकी प्लेबैक सिंगिग चलती रही. उन्होंने 8 बार नेशनल अवॉर्ड जीता. 5 बार फिल्मफेयर अवॉर्ड जीता. संगीत की दुनिया के और कई दूसरे बड़े सम्मानों से उन्हें नवाजा गया. भारत सरकार ने पद्मश्री के बाद पद्मभूषण और पद्मविभूषण जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा. इन सारी उपलब्धियों के बाद भी वो बचपन में दी हुई अपने पिता की सीख को नहीं भूले- ईश्वर एक है.

यही भावना उनकी आवाज में ही उतरती चली गई. ये उनकी साधना ही थी कि रवींद्र जैन कहा करते थे कि अगर कभी उन्हें दुनिया को देखने का मौका मिलता तो वो सबसे पहले येसुदास को देखना चाहते जिनकी आवाज में ईश्वर बसता है. बप्पी लाहिड़ी कहा करते हैं कि किशोर दा के बाद येसुदास ने उनके संगीत का ‘बेस्ट’ सुनने वालों के सामने रखा. एआर रहमान जिसकी आवाज को दुनिया की सबसे खूबसूरत आवाज मानते हैं.

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