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वर्ल्ड टेलीविजन डे: पद्मावती नहीं नागिन जैसे टीवी शो के लिए चिंता करिए

टीवी पर ध्यान देना हमारे लिए इसलिए जरूरी है क्योंकि टीवी बिना सेंसरशिप के हमारे कमरों में पहुंचता है. बिग बॉस सिर्फ अपने घर में ही नहीं आपके घरों को भी अवचेतन में नियंत्रित करते हैं

Updated On: Nov 21, 2017 04:44 PM IST

Animesh Mukharjee Animesh Mukharjee

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वर्ल्ड टेलीविजन डे: पद्मावती नहीं नागिन जैसे टीवी शो के लिए चिंता करिए

नमस्कार, स्वागत है आपका अमूल सुरभि में. अगर आप 90 के दशक में बड़े हुए हों तो रेणुका शहाणे और सिद्धार्थ काक की बोली ये लाइन आपने सुनी ही होगी. हिंदुस्तान के टेलीविजन के बारे में 80 और 90 के दशक के बारे में बात करना सिर्फ नॉस्टैल्जिया की बात करना ही नहीं है. उसमें समाजशास्त्र और शिक्षा के स्तर का भी बराबर दखल है. खुद को टीवी साहित्यिक पत्रिका कहने वाला शो सुरभि अपने दौर का सबसे पॉपुलर टीवी शो था.

इतना लोकप्रिय कि सुरभि में आए खतों से रेवेन्यू को भुनाने के लिए भारतीय डाक ने प्रतियोगिता पोस्टकार्ड जारी किया हो. ये शायद दुनिया के उन गिने चुने उदाहरणों में होगा जहां एक टेलिविज़न शो की लोकप्रियता के चलते डाक विभाग जैसे पारंपरिक और सरकारी विभाग ने कोई नई योजना शुरू की हो. और आज के समय का सबसे लोकप्रिय टीवी शो ‘नागिन’. एक ऐसा कॉन्सेप्ट जो बिना सिर-पैर की फिल्मों के लिए मशहूर बॉलीवुड में भी कब का खारिज हो चुका है. इस नागिन में सिर्फ बीन की धुन पर नाचते हुए चली आती इच्छाधारी नागिन ही नहीं है, इच्छाधारी नेवला, मोर और चूहा, छछूंदर जाने कौन-कौन है.

चैनलों का रोल बदल गया है

पिछले कुछ समय में चर्चा में रही टेलीविज़न से जुड़ी बातों को याद करिए. सबसे नाटकीय प्रयोग आपको न्यूज़ चैनलों पर मिलेंगे. टीवी की स्क्रीन काली करने और बागों में बहार है जैसे काव्यात्मक प्रयोग किसी सीरियल या टीवी शो में नहीं दिखते हैं. इसी तरह नोट में चिप और क्रोमा लगाकर बाढ़, जंग का मैदान बनाने का हास्य व्यंग्य भी न्यूज़ ऐंकर्स के जिम्मे हैं.

दूसरी तरफ टीवी सीरियल अनंतकाल तक चलने के अपने फॉर्मैट के अलावा परिवार में कलह की टिप्स देने में ही सालों निकाल देते हैं. बालिका वधु की टीम से जुड़े एक शख्स ने लेखक को बातचीत में बड़े गर्व से बताया था कि उनकी टीम ने सबसे लंबे समय तक चलने वाला शो बनाया. पूरी बातचीत में कंटेंट की गुणवत्ता का कोई जिक्र नहीं हुआ.

इस लंबे फॉर्मेट की अपनी समस्याएं हैं जो हमारे कलाकारों, लेखकों की पूरी पीढ़ी की क्रिएटिविटी को खा जा रही है. मुंबई फिल्मों से जुड़ने पहुंचे लेखक, ऐक्टर पैसा कमाने के लिए टीवी से जुड़ जाते हैं. थोड़ा सा भी काम मिलने लगे तो टीवी सीरियल कुछ महीनों के अनुभव वाले को महीने में 6 अंकों की कमाई करवाने लगते हैं. इसके बाद सारा जोर इस बात पर होता है कि वो कमाई बनी रहे. प्रतिभाशाली लेखक टीवी छोड़कर सिनेमा में चले जाते हैं, एक से ज्यादा सीरियल का काम लेकर कई जूनियर लेखकों को बांट देते हैं, जिसके चलते कहानी और किरदारों में कोई तारतम्य नहीं होता है. इन सब में सबसे ठगा जाने वाला शख्स दर्शक होता है.

इन्फोटेनमेंट में विदेशी प्रभाव

अगर कोई भी टीवी में मनोरंजन के साथ-साथ कुछ सीखना चाहे तो भारतीय चैनलों की झोली में कुछ खास है नहीं. कुछ साल पहले शुरू हुआ एपिक ही ऐसा विकल्प है जिसमें इस जॉनर के टीवी शो दिखते हैं. एक समय पर स्टार ने सत्यमेव जयते के साथ एक शुरुआत की थी मगर उसमें भी चैनल का फोकस कंटेट से ज्यादा आमिर खान पर था. बाकी हिस्ट्री, डिस्कवरी और नेशनल जियोग्राफिक्स जैसे चैनल विदेशी कंटेंट और विदेशी नजरिए से ही भारत को दिखाते हैं. ऐसे में दुनिया पद्मावती पर कितनी भी नाराज़ हो जाए, कुछ सालों में हमारी अगली पीढ़ी भारत की विविधता और संस्कृति को देखने समझने के बड़े हिस्से से महरूम हो जाएगी.

मुंबई के पास करजत में पद्मावती के सेट पर आग लगाकर विरोध दर्ज कराया गया था.

मुंबई के पास करजत में पद्मावती के सेट पर आग लगाकर विरोध दर्ज कराया गया था.

विदेशी टीवी और इंटरनेट

विदेशी शो हमारी टेलीविज़न इंडस्ट्री से कोसों आगे हैं. गेम ऑफ थ्रोन्स और ब्रेकिंग बैड को छोड़ दीजिए, पाकिस्तान के जिंदगी गुलज़ार है जैसे शो बनाने में भी हमारी टेलीविज़न इंडस्ट्री को पसीना आ जाएगा. इंटरनेट पर बेहतर कंटेंट देने का वादा करने वाले ऐआईबी और टीवीएफ की रचनात्मकता बिना गालियों के पूरी नहीं होती.

टीवी पर ध्यान देना हमारे लिए इसलिए जरूरी है क्योंकि टीवी बिना सेंसरशिप के हमारे कमरों में पहुंचता है. बिग बॉस सिर्फ अपने घर में ही नहीं आपके घरों को भी अवचेतन में नियंत्रित करते हैं.

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