पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम ने कहा था कि दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है और उनमें भी ज्यादातर गरीबी की हालत में गुजर बसर करते हैं. मानव विकास में यह असमानता ही दुनिया के कई हिस्सों में अस्थिरता और कई बार हिंसा का कारण बनती है.
उनकी इस बात को दुनिया में हर दिन बढ़ती आबादी और उससे जुड़े दुष्परिणामों से जोड़कर देखा जा सकता है. कुदरत के संसाधनों के भंडार कम होते जा रहे हैं और इंसानों की आबादी बढ़ती जा रही है. यह बढ़ती आबादी विकास की रफ्तार को कम करने के साथ ही कई अन्य समस्याओं की वजह बनती है. भारत की आबादी दुनिया में चीन के बाद दूसरे नंबर पर है. ऐसे में पूरी दुनिया के लिए आबादी के लगातार बढ़ते जाने के परिणामों की गंभीरता को समझना और उसके अनुरूप जनसंख्या नियंत्रण के प्रयासों में भागीदारी निभाना जरूरी है.
वर्तमान में दुनिया की आबादी लगभग साढ़े 7 अरब है. लेकिन 11 जुलाई, 1987 को जब यह आंकड़ा 5 अरब हुआ था तो लोगों के बीच जनसंख्या संबंधी मुद्दों पर जागरूकता फैलाने के लिए विश्व जनसंख्या दिवस की नींव रखी गई. संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की आम सभा ने 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया और पहला विश्व जनसंख्या दिवस 11 जुलाई, 1989 को मनाया गया.
#WorldPopulationDay observed across world today. pic.twitter.com/fCcPF3P4Gs
— All India Radio News (@airnewsalerts) July 11, 2018
इसे मनाए जाने का लक्ष्य लोगों के बीच जनसंख्या से जुड़े तमाम मुद्दों पर जागरूकता फैलाना है. इसमें लिंग भेद, लिंग समानता, परिवार नियोजन इत्यादि मुद्दे तो शामिल हैं ही, लेकिन यूएनडीपी का मुख्य मकसद इसके माध्यम से महिलाओं के गर्भधारण सम्बंधी स्वास्थ्य समस्याओं को लेकर लोगों को जागरूक करना है.
वर्ष 2018 का विश्व जनसंख्या दिवस इस मामले में और भी खास है क्योंकि इस बार इसका मुख्य ध्यान 'परिवार नियोजन: एक मानवाधिकार' विषय पर केंद्रित है. भारत जैसे देश के लिए ये और भी अहम हो जाता है क्योंकि दुनिया की साढ़े सात अरब की आबादी में से लगभग 130 करोड़ लोग भारत में बसते हैं.
इस दिवस को मनाए जाने का सुझाव डॉ के सी ज़कारिया ने दिया था. जब दुनिया के आबादी ने 5 अरब के आंकड़े को छुआ तब उस वक्त वह विश्व बैंक में कार्यरत थे. क्रोएशिया के ज़ाग्रेब के माटेज गास्पर को दुनिया का 5 अरबवां व्यक्ति माना गया.
बता दें कि पहले इसे 'फाइव बिलियन डे' माना गया लेकिन बाद में यूएनडीपी ने इसे विश्व जनसंख्या दिवस घोषित कर दिया.
साल 2018 के लिए 'परिवार नियोजन: एक मानवाधिकार' विषय को चुने जाने का भी एक महत्वपूर्ण कारण है, क्योंकि यह परिवार नियोजन को पहली बार मानवाधिकार का दर्जा देने वाली तेहरान घोषणा की 50वीं वर्षगांठ का वर्ष है. पहली बार 1968 में 'मानवाधिकार पर अंतरराष्ट्रीय सम्मलेन' में परिवार नियोजन को भी एक मानवाधिकार माना गया और अभिभावकों को बच्चों की संख्या चुनने का अधिकार दिया गया.
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