विनायक दामोदार सावरकर स्वतंत्रता इतिहास से जुड़े उन लोगों में हैं जिनके बारे में कई अलग-अलग तरह के मिथक गढ़े गए हैं. संघ से जुड़ा तबका उन्हें वीर सावरकर कहता है. दूसरा तबका उनकी वीरता पर सवाल उठाता है. चलिए नजर डालते हैं सावरकर से जुड़े कुछ मिथकों और तथ्यों पर
गांधी की हत्या
महात्मा गांधी की हत्या में जिन 8 लोगों पर आरोप लगे, सावरकर उनमें से एक थे. मगर उन्हें बरी कर दिया गया. सावरकर पर अंग्रेज अधिकारियों की हत्या की कोशिश का आरोप भी लगा था.
मदनलाल ढींगरा का साथ
सावरकर पर पहली बार हत्या का आरोप 1909 में लगा. मदनलाल ढींगरा ने सर विलियम कर्जन वाइली की लंदन में हत्या कर दी थी. ढींगरा को फांसी हुई. सावरकर पर दोष तय नहीं हो पाया. आजादी के बाद प्रकाशित उनकी जीवनी सावरकर एंज हिज टाइम्स में इस बात का खुलासा है कि उन्होंने ढींगरा को ट्रेनिंग दी थी.
सरकार से माफी मांगना
कालापानी भयावह सजा थी. सावरकर को कोल्हू में जानवरों की जगह लगाया गया. 1911 में सावरकर ने पहली दया याचिका सरकार को भेजी. 1913 में उन्होंने दोबारा याचिका भेजी.
दूसरी याचिका में सावरकर ने लिखा था कि उन्हें सरकार पर विश्वास है. उन्हें भारत स्थित किसी जेल में भेज दिया जाए. वो हिंसा पर विश्वास नहीं करते. इसके कई साल बाद 1921 में सरकार ने उन्हें पुणे जेल भेज दिया. तीन साल बाद उन्हें कई शर्तों पर रिहा किया गया. सावरकर ने सरकारी अनुमित के बिना किसी राजनीतिक गतिविधि में हिस्सा न लेने की शर्त मानी भी.
गौ हत्या का समर्थन
सावरकर ने ‘विज्ञान निष्ठा निबंध’ में लिखा है: भारत जैसे कृषिप्रधान देश में गाय को मानना सामान्य बात है. गाय से लोगों को दूध और कई चीजें मिलती हैं. जो हमारी जरूरत की होती हैं. कई परिवारों के लिए गाय परिवार का हिस्सा हो जाती है. तो ये हमारे लिए उपयोगी होती है. ये हमारी कृतज्ञता होती है कि गाय को ईश्वरीय बना दिया जाता है. पर ये भी है कि अगर आप लोगों से गाय की दैवीयता के बारे में पूछें तो लोग सिर्फ इसकी उपयोगिता ही बता पाते हैं.
तो अगर आप गाय का अधिकतम उपयोग करना चाहते हैं, तो इसको भगवान बनाना छोड़ना होगा. ईश्वर सबसे ऊपर है. फिर इंसान आता है और इसके नीचे जानवर. गाय भी एक जानवर है, जिसके पास मूर्ख मनुष्य से भी कम बुद्धि है. अगर हम गाय को ईश्वर मानें, तो ये इंसान का अपमान होगा.
गाय एक तरफ खाती है और दूसरी तरफ अपने ही पेशाब और गोबर में लेटती है. अपनी पूंछ से सारा गंदा अपने शरीर पर लपेट लेती है. एक प्राणी जो कि सफाई नहीं समझता, कैसे ईश्वरीय माना जा सकता है?
गाय का पेशाब और गोबर कैसे पवित्र हो सकते हैं, जबकि अंबेडकर जैसे मनुष्य की परछाईं को लोग अपवित्र मानते हैं. इसी से पता चलता है कि इंसान की बुद्धि कितनी भ्रष्ट हो गई है. अगर ईश्वर मानने लगें इसे, तो इसका मतलब है कि मनुष्य गाय के लिए है. पर ऐसा नहीं है. गाय की सेवा करो, क्योंकि ये उपयोगी है. इसका मतलब ये है कि लड़ाई के दिनों में या फिर जब ये बोझ बन जाए तो कोई वजह नहीं है कि इसे न मारा जाए.
ये अतिश्योक्ति नहीं होगी अगर कहा जाए कि गाय की पूजा करने से देश को घाटा हुआ है. इतिहास बताता है कि हिंदू राज्य इसी भरोसे के चलते खो गए. राजाओं ने कई बार लड़ाइयां हारी हैं क्योंकि उन्होंने गाय को मारने से इनकार कर दिया. मुस्लिमों ने गाय को ढाल की तरह इस्तेमाल किया और वो निश्चिंत थे कि हिंदू गाय को कोई नुकसान नहीं पहुंचाएंगे.
टू नेशन थ्योरी
सावरकर पर आजादी के आंदोलन के वक्त टू नेशन थ्योरी के समर्थन का आरोप लगता है. शम्सुल इस्लाम की किताब में जिक्र मिलता है कि सावरकर ने ये बात 30 दिसंबर, 1937 को हिंदू महासभा के 19वें अधिवेशन में दी थी. 15 अगस्त, 1943 को नागपुर में अपने भाषण में सावरकर ने कहा था,‘मिस्टर जिन्ना की टू नेशन थ्योरी से मेरा कोई झगड़ा नहीं है. हम, हिंदू, स्वयं में एक राष्ट्र हैं और ये ऐतिहासिक तथ्य है कि हिंदू और मुस्लिम दो राष्ट्र हैं.’
आजाद हिंद फौज का विरोध
वीर सावरकर समग्र में सावर का एक वक्तव्य है. इसमें सावरकर के विचार है.
‘जहां तक भारत की सुरक्षा का सवाल है, हिंदू समाज को भारत सरकार के युद्ध संबंधी प्रयासों में सहानुभूतिपूर्ण सहयोग की भावना से बेहिचक जुड़ जाना चाहिए जब तक यह हिंदू हितों के फायदे में हो. हिंदुओं को बड़ी संख्या में थल सेना, नौसेना और वायुसेना में शामिल होना चाहिए और सभी आयुध, गोला-बारूद, और जंग का सामान बनाने वाले कारखानों वगैरह में प्रवेश करना चाहिए…
ग़ौरतलब है कि युद्ध में जापान के कूदने कारण हम ब्रिटेन के शत्रुओं के हमलों के सीधे निशाने पर आ गए हैं. इसलिए हम चाहें या न चाहें, हमें युद्ध के क़हर से अपने परिवार और घर को बचाना है और यह भारत की सुरक्षा के सरकारी युद्ध प्रयासों को ताकत पहुंचा कर ही किया जा सकता है. इसलिए हिंदू महासभाइयों को खासकर बंगाल और असम के प्रांतों में, जितना असरदार तरीके से संभव हो, हिंदुओं को अविलंब सेनाओं में भर्ती होने के लिए प्रेरित करना चाहिए.’
आमरण अनशन से मौत
सावरकर ने 1966 में मृत्युपर्यंत उपवास किया. जबतक जीवन समाप्त नहीं हुआ तब तक खाना-पीना नहीं लिया. लेकिन सावरकर के विरोधी इस बारे में एक और चीज बताते हैं. 1965 में भारत सरकार ने जस्टिस जेएल कपूर कमेटी बनाई. इस कमेटी ने गांधी की हत्या पर दोबारा से जांच शुरू की. लोग 'शक जाहिर करते हैं' कि सावरकर अपना नाम इसमें आने के 'अपमान' से बचना चाहते थे. लेकिन इस विचार के समर्थन में कोई पुख्ता सबूत नहीं है. सिवाय गोपाल गोडसे की किताब के जिसमें सावरकर का जिक्र है.
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