साल 2014 में जिस वक्त बीजेपी केंद्र में सरकार बनाने जा रही थी, तब देश में एक बहस ने जोर पकड़ना शुरू किया. विषय बना गोडसे वर्सेस गांधी. समाचारपत्रों के संपादकीय और टीवी चैनलों के प्राइम टाइम में चलने वाली इस डीबेट को महात्मा गांधी के वंशज भले देख रहे हों या न देख रहे हों, मगर दिल्ली से लगभग 1400 किलोमीटर दूर पूणे के शिवाजी नगर के जंगली महाराज रोड के अजिंक्य डेवलपर्स ऑफिस में गोडसे के वंशज इन टीवी बहसों, अखबारों की सुर्खियों पर तब से अपनी बारीक नजर बनाए हुए थे.
बीते साल अक्टूबर महीने के 25 तारीख को मैं रांची से पुणे पहुंचा. नाथूराम के पोते अजिंक्य गोडसे (50) को मैंने फोन किया, मेरा परिचय जानने के बाद उन्होंने कहा कि शाम को ऑफिस आइए. मैंने कहा घर पर मिलना चाहता हूं. वजह ये थी कि मैं नाथूराम से जुड़ी चीजें देखऩा चाहता था, उस इलाके के लोगों से भी मिलना चाहता था. समझना चाहता था कि नाथूराम को उनके मोहल्ले में लोग कैसे याद करते हैं. खैर उनके इनकार करने के बाद मैं ऑफिस की तरफ पहुंचा. बिल्डिंग दिख नहीं रही थी तो आसपास के लोगों से पूछा कि नाथूराम गोडसे जी का घर किधर है, यहां उनके पोते रहते हैं, उनका ऑफिस किधर है.
आसपास के चाय, होटल, सीसीडी वालों ने अनभिज्ञता जाहिर की. कहा नाथूराम जी को तो जानता हूं, लेकिन उनके परिजन इस इलाके में रहते हैं, ये नहीं पता. उनका घर किधर है, ये भी नहीं पता. मैंने दोबारा अजिंक्य को फोन किया और फिर उनके बताए पते पर पहुंच गया. शाम के छह बजे मैं महात्मा गांधी के हत्यारे के परिजनों के सामने था. मराठी में उन्होंने चाय के लिए पूछा, नहीं समझऩे पर कहा चाय या कॉफी लेंगे क्या. मैंने पानी मांगा और चार घूंट पीते ही पूछा कि गांधी वर्सेस गोडसे डिबेट को वह किस तरह देखते हैं.
अजिंक्य गोडसे कहते हैं, ‘नाथूराम गोडसे के नाम का दोनों प्रमुख पार्टियां बीजेपी और कांग्रेस ने जमकर पॉलिटिकली इस्तेमाल किया है. लेकिन वो ये नहीं समझ रहे हैं कि हमको भी ये चाहिए. जब तक नाथूराम का नाम नहीं आता, सामनेवाला यह नहीं सोचता कि उन्होंने गांधी को मारा क्यों. इस देश को गोडसे ने क्या किया से ज्यादा, क्यों किया यह समझना होगा.’ वो कहते हैं, ‘दोनों पार्टियों की मजबूरी है नाथूराम के नाम का इस्तेमाल करेंगे ही, चाहे वह प्यार से लें या नफरत से.’
नाथूराम के भाई गोपाल गोडसे के नाती और हिमानी सावरकर के बेटे सात्यकी सावरकर (36) कहते हैं,‘उनके परिवार का कोई सीधे तौर पर राजनीति में नहीं है. लेकिन उनसे कांग्रेस से लेकर आरएसएस, बीजेपी, शिवसेना तक के लोग मिलने आते हैं.’
हालांकि सात्यकी ये नहीं बताने से साफ मुकर गए कि आरएसएस या बीजेपी का कोई बड़ा नेता आज तक उनके परिवार से मिलने आया कि नहीं. अजिंक्य खींझते हुए कहते हैं ‘हमको किसी से अपेक्षा नहीं है कि वह हमारे पास आए.’ बातचीत गरम हो चली थी.
क्या सच में नाथूराम का सपना 20 सालों में पूरा हो जाएगा?
ऑफिस में ही बने दस बाई 12 के कमरे में नाथूराम की अस्थि को दिखाकर अजिंक्य कहते हैं,‘ज्यादा नहीं, बस 20 साल के अंदर नाथूराम की इच्छा के मुताबिक भारत में बह रही नदी सिंधू में बहाई जाएगी.’ मैंने कहा सिंधू नदी का बड़ा हिस्सा तो पाकिस्तान में बहता है और इसके लिए तो उन्हें वहीं जाना होगा!
जवाब में अजिंक्य उल्टा पूछते हैं- ‘क्या आपने अध्ययन किया है कि पाकिस्तान क्या है? मेरे कुछ कहने से पहले खुद कहते हैं- पाकिस्तान इज अ इंक्यूबेशन सेंटर ऑफ टेररिस्ट. आज न कल यह सेंटर बर्बाद हो कर रहेगा. इसके बाद भारत को पाकिस्तान पर कब्जा करना होगा. वह भारत में मिल जाएगा, फिर ये अस्थियां तो बहेंगी ही. इस काम में दुनिया भी मदद करेगी भारत की.’ गोडसे के परिजन नाथूराम के नाम पर न तो कई संगठन चलाते हैं न ही किसी तरह का निर्माण किया है. वर्तमान में हिंदू महासभा के सदस्य सात्यकी के मुताबिक ‘हमें केवल नाथूराम जी की विचारधारा को फैलाना है. इसके लिए हम गरीबों की मदद करते हैं, चाहे वह किसी भी धर्म का हो. मुस्लिम हो या क्रिश्चियन, उसकी भी मदद करता हूं. बदले में उसे इस विचारधारा के बारे में चार लोगों को बताना होता है. पुणे में गरीबों की बस्ती में जाकर आर्थिक मदद पहुंचाता हूं, धर्मांतरण रोकता हूं.’
अब दोनों का चेहरा आत्मविश्वास से भर उठा था. मौका देख मैंने पूछा- लोग गोडसे को गांधी के हत्यारे के तौर पर ही देखते हैं. कहते हैं- ‘कांग्रेस को गांधी को महान बताना है, इसलिए गोडसे को समझा ही नहीं. उनको गाली देनी ही है. ये इक्वेशन है. कोई कुछ कहे, गोडसे का स्थान बहुत ऊपर है. उन्होंने देश के लिए जो बलिदान किया, वह भुलाने वाला नहीं है. उन पर तो सवाल उठाना ही गलत है.’
अजिंक्य से पूछा कि उनके परिवार का आरएसएस से संबंध है क्या? जवाब में कहते हैं ‘संबंध मतलब क्या, ये परिवार केवल देशभक्ति के विचारधारा से प्रेरित है. अगर आरएसएस में देशभक्ति है तो हम साथ हैं. वी डोंट वांट एनी स्यूडो सेक्युलरिज्म.’
गोडसे से संबंधित सीडी देते हुए अजिंक्य कहते हैं- ‘कांग्रेस हो या बीजेपी या फिर कोई आम आदमी. आज तक एक इंसान नहीं मिला जिसने मेरे मुंह पर मेरे दादा को गाली दी हो.’
गांधी के लिए आदर है, पर वो बहुत कुछ किए जो नहीं करना चाहिए था
नाथूराम के वंशजों की एक दफे गांधी जी के परिवार से मुलाकात हुई है. जब उनके परिजन पुणे में गोपाल गोडसे से मिलने आए थे. अजिंक्य कहते हैं मैं उस वक्त बहुत छोटा था, इसलिए उस मुलाकात के बारे में ज्यादा कुछ बता नहीं सकता.
गांधी को याद करते हुए कहते हैं- ‘गांधी के लिए भी आदर है. उन्होंने भी इस देश के लिए किया है. लेकिन जो चीजें वह कर सकते थे, उन्होंने नहीं की. उनके निर्णय की वजह से भारत को आज तक भुगतना पड़ रहा है. अगर पाकिस्तान नहीं होता तो आज भारत में समस्याएं नहीं होतीं. उनकी ही वजह ये सब हो रहा हैं. वो हमारा हिस्सा था, गांधी ने उसको अलग किया. ऊपर से 55 करोड़ रुपए दे दिया.’ मेरे साथ गए पुणे में नौकरी कर रहे मेरे बचपन के दोस्त जो अब तक शांत बैठे सब सुन रहे थे, अचानक अजिंक्य की बातों से सहमति जताने लगे. कहा ये बात तो आप बिल्कुल सही कह रहे हैं.
दोनों परिजनों का साफ मानना है कि नाथूराम को धर्म नहीं, देश की राजनीति से जोड़ना होगा. देश को विकास करने के लिए परिवार का विकास करना होगा, और परिवार का कल्चर हिंदू धर्म में है. लेकिन हक तो सभी का इस देश पर बराबर हैं न?
जवाब देने के लिए अब तक आराम से कुर्सी पर बैठे अजिंक्य अचानक सीधे बैठते हैं और कहते हैं- ‘होना ही चाहिए, लेकिन दिया क्यों नहीं. कांग्रेस ने सात शादियों की छूट मुस्लिमों को क्यों दी. क्यों मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करती रही. तीन तलाक सिर्फ मुसलमान के लिए क्यों, हिंदू को भी दे दो न, वन नेशन वन लॉ की बात हो.’
दोनों ही पार्टियां (कांग्रेस-बीजेपी) नाथूराम के नाम का इस्तेमाल करती हैं, अगर शिकायत करने का मौका मिले तो क्या कहेंगे? सात्यकी कहते हैं ‘नाथूराम की विचारधारा के संदर्भ में दोनों ही पार्टियां गलत हैं.’ लेकिन अगले सवाल पर कि अब तो बीजेपी और आरएसएस को नाथूराम से खुद को जोड़ने में परेशानी हो रही है. खीझते हुए कहते हैं, ‘नहीं ऐसा नहीं है. उन्हें अब भी कोई परेशानी नहीं है, वह खुद को जोड़ते हैं.’
राजनीति में इस परिवार का कोई दखल नहीं है, क्यों? लपकते हुए अजिंक्य कहते हैं- ‘राजनीति में हमारा कोई हस्तक्षेप नहीं है, इसका कोई मलाल नहीं है. इसकी जरूरत ही नहीं है. मेरे लिए वही दो पार्टियां काम कर दे रही हैं. देश के लोग सोने का ढोंग कर रहे हैं, ऐसे लोगों को जगाना संभव नहीं है. आज से 20 साल बाद नाथूराम गोडसे की जय होनी ही है. देश के लोगों के पास इसके अलावा कोई ऑप्शन ही नहीं है.’
मतलब आप मानते हैं कि अभी नहीं हो रहा है? अजिंक्य कहते हैं, ‘हो रहा है, तब खुल्लम खुल्ला होगा. (खुशी से हंसते हुए) अभी तो लोग मन में कर रहे हैं.’ नाथूराम गोडसे की फोटो देते हुए कहते हैं सीडी को ध्यान से देखिएगा. आपका भी मत उनके प्रति बदलेगा.
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