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जब कस्तूरबा के महज चार रुपए रखने से गांधी हो गए थे नाराज

राष्ट्रपिता ने कहा कि उन्हें अपनी आत्मकथा में कस्तूरबा के कई गुणों का वर्णन करने में कोई हिचकिचाहट नहीं हुई

Updated On: Oct 02, 2018 04:50 PM IST

Bhasha

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जब कस्तूरबा के महज चार रुपए रखने से गांधी हो गए थे नाराज

कहने को तो बात महज चार रूपए की थी लेकिन जब यह सिद्धांत के खिलाफ हो तो महात्मा गांधी उसे बिल्कुल सहन नहीं कर पाते थे. ऐसी ही एक भूल के लिए महात्मा गांधी ने कस्तूरबा गांधी के खिलाफ पूरा एक लेख ही लिख दिया था.

दुनिया भर में मंगलवार को महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मनाई जा रही है. ऐसे में साप्ताहिक समाचारपत्र ‘नवजीवन’ में 1929 में उनका लिखा एक लेख सामने आया है. इस लेख से पता चलता है कि वह सत्य और नैतिकता से कोई भी समझौता नहीं करने के पक्ष में थे. ‘नवजीवन’ एक साप्ताहिक अखबार था जिसका प्रकाशन गांधी जी करते थे.

नवजीवन के संपादक थे महात्मा गांधी

‘मेरी व्यथा, मेरी शर्मिंदगी’ शीर्षक से प्रकाशित लेख में गांधी जी ने गुजरात में अहमदाबाद के अपने आश्रम में अपनी पत्नी कस्तूरबा समेत कुछ अन्य आश्रमवासियों की कमियों की आलोचना की है.

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उन्होंने यह सफाई भी दी है कि उन्होंने इस लेख को लिखने का फैसला क्यों किया. गांधी जी ने रेखांकित किया, ‘आखिरकार मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि अगर मैं ऐसा नहीं करता तो यह कर्तव्य का उल्लंघन होता है.’ राष्ट्रपिता ने कहा कि उन्हें अपनी आत्मकथा में कस्तूरबा के कई गुणों का वर्णन करने में कोई हिचकिचाहट नहीं हुई. लेकिन ‘उनकी कुछ कमजोरियां भी हैं जो इन सदगुणों पर अघात करती हैं.’

गांधी जी ने लिखा है कि एक पत्नी का कर्तव्य मानते हुए उन्होंने अपना सारा धन दे दिया लेकिन ‘समझ से परे यह संसारी इच्छा अब भी उनमें है.’ उन्होंने कहा, ‘एक या दो साल पहले उन्होंने (कस्तूरबा ने) 100 या 200 रुपए रखे थे जो विभिन्न मौकों पर अगल-अलग लोगों से भेंट के तौर पर मिले थे.’

गांधी जी ने लिखा, ‘(आश्रम का) नियम है कि वह अपना मानकर कुछ नहीं रख सकती हैं. भले ही यह उन्हें दिया गया हो. इसलिए यह रुपए रखना अवैध है.’ उन्होंने कहा कि आश्रम में कुछ चोरों के घुस जाने की वजह से उनकी पत्नी की ‘चूक’ पकड़ में आई.

खत्म नहीं हुआ कस्तूरबा का धन रखने का मोह

गांधी जी ने लिखा, ‘उनके लिए और मंदिर (आश्रम) के लिए दुर्भाग्य था कि एक बार उनके कमरे में चोर घुस आए. उन्हें कुछ नहीं मिला लेकिन उनकी (कस्तूरबा) की चूक पकड़ में आ गई.’ उन्होंने कहा कि कस्तूरबा ने गंभीरता से पश्चाताप किया. लेकिन यह लंबे वक्त नहीं चला और असल में ह्रदय परिवर्तन नहीं हुआ और धन रखने का मोह खत्म नहीं हुआ.

गांधी जी ने लिखा, ‘कुछ दिन पहले, कुछ अजनबियों ने चार रुपए भेंट किए. नियमों के मुताबिक यह रुपए दफ्तर में देने के बजाय उन्होंने अपने पास रख लिए.’ इस बात को अपने लेख में ‘चोरी’ बताते हुए गांधी जी लिखते हैं कि आश्रम के एक निवासी ने उनकी गलती की ओर इशारा किया. उन्होंने रुपयों को लौटा दिया और संकल्प लिया कि ऐसी चीजें फिर नहीं होंगी.

राष्ट्रपिता लिखते हैं, ‘मेरा मानना है कि वह एक ईमानदार पश्चाताप था. उन्होंने संकल्प लिया कि पहले की गई कोई चूक या भविष्य में इस तरह की चीज करते हुए वह पकड़ी जाती हैं तो वह मुझे और मंदिर को छोड़ देंगी.’

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