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बिरयानी वेज भी होती है और पुलाव नॉनवेज भी, आज सारे भरम दूर कर लीजिए

क्या वेज बिरयानी होती है?' जवाब है हां होती है. अवध में नवाबों के हिंदू कारिंदों ने बिरयानी बनाने के तरीके में सब्ज़ियों के साथ प्रयोग किए

Updated On: Jun 16, 2018 10:38 AM IST

Animesh Mukharjee Animesh Mukharjee

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बिरयानी वेज भी होती है और पुलाव नॉनवेज भी, आज सारे भरम दूर कर लीजिए

बिरयानी हिंदुस्तान की सबसे लोकप्रिय चीज़ों में से एक है. दिल्ली, कलकत्ता हैदराबाद और केरल जैसे अलग-अलग शहरों की बिरयानी के अलग-अलग ज़ायके हैं. जिसके चलते ये डिश उत्तर से दक्षिण तक फैलाव पाती है. बिरयानी खाने और खिलाने के कई सियासी मायने हैं. मगर बिरयानी से जुड़ी सबसे बड़ी बहस है, 'क्या वेज बिरयानी नाम की कोई चीज़ भी होती है?' इस बहस को लेकर सोशल मीडिया पर कई कार्टून और मीम मिल जाएंगे. लोग अक्सर कहते हैं कि वेज बिरयानी जैसा कुछ नहीं होता,

वेज तो पुलाव होता है. ये बात कथित बिरयानी खाने वालों की अज्ञानता को दिखाती है. बिरयानी और पुलाव दो अलग-अलग चीज़ें हैं. ठीक वैसे ही जैसे बिरयानी और खिचड़ी अलग हैं. आप खिचड़ी में चिकन के टुकड़े मिलाकर उसे बिरयानी नहीं कह सकते हैं. इसी तरह बिरयानी बनाने का तरीका अलग है और पुलाव बनाने का अलग. दोनों का इतिहास और भौगोलिक विस्तार भी अलग है. चलिए आज इसी पर बात करते हैं.

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दिल्ली में बसा काबुल और वहां का पुलाव

दिल्ली में मुगलई खाने और बिरयानी की बात पर पहला नाम 'पुरानी दिल्ली' का आता है. अगर दिल्ली में सही में कुछ ऐसा खाना हो जो मुगलों के करीब हो तो पुरानी दिल्ली नहीं लाजपत नगर की अफगान कॉलोनी में जाना चाहिए. दरअसल बाबर काबुल से था और बिरयानी मूल रूप से ईरान का खाना है. अगर आप लाजपत की इस अफगान कॉलोनी में जाएंगे, तो वहां आपको बिरयानी नहीं मिलेगी. वहां मिलेगा पुलाव और उज़बेकी. इस पुलाव में चावल को घी के साथ पकाया गया होता है. इसमें किशमिश और दूसरे मेवे मिलाए गए होते हैं. साथ ही इसमें नरम मीट होता है.

अफगान कॉलोनी में आपको पुलाव के साथ ही उज़बेकी भी मिलता है. उज़बेकी पुलाव जैसी ही डिश है लेकिन इसमें घिसी हुई गाजर भी होती है. इसके साथ आपको यखनी जैसा कुछ भी साथ में दिया जाएगा. इस पुलाव या उज़बेकी को खाकर अच्छे से समझ आता है कि पुलाव और बिरयानी का अंतर सिर्फ आमिष-निरामिष भर का नहीं है. दोनों की तासीर में काफी फर्क हैं.

चापान

चापान

वैसे अगर कभी आप यहां जाएं तो चापान और मंटू जरूर खाएं. चापान बकरे की चाप का धीमी आंच पर पका कबाब है. मंटू एक तरह के मोमोज़ हैं जिन्हें दाल में मिलाकर खाया जाता है. दिल्ली और पूरे उत्तर भारत में तंदूरी चीज़ों को सफेद ग्रेवी में डालकर 'अफ़गानी' नाम दे दिया जाता है. ऐसा कुछ आपको इस इलाके में नहीं मिलेगा.

भारत के चावल से मिला बिरयानी को दम

बिरयानी की बात करनी है तो चावल की बात उससे पहले करनी होगी. चावल दुनिया की सबसे शुरुआती फसलों में से एक है. भारत और चीन वगैरह में चावल ईसा से 6,000 साल पहले से इस्तेमाल में आ रहा था. केटी आचाया की किताब 'हिस्टॉरिकल डिक्शनरी ऑफ इंडियन फ़ूड' के मुताबिक भारत में चावल की 2 लाख से ज्यादा किस्में पाई जाती है. भारतीय चावल में एक खास बात है जिसके चलते ही ये बिरयानी बनाने के काम आ पाता है.

एमायलोज़ एक तरह का स्टार्च है जो चावल में पाया जाता है. ये एमायलोज़ पानी में नहीं घुलता है. भारतीय चावल में एमायलोज़ की मात्रा काफी ज्यादा होती है. इसके चलते भारतीय चावल के दाने अलग-अलग रहते हैं. इसी वजह से भारतीय चावल हाथ से खाना ज्यादा आसान है. इससे अलग चावल की जापानी किस्मों में एमायलोज़ कम होता है. जिससे चावल के दाने छोटे और आपस में चिपके होते हैं. इसीलिए जापानी चावल सुशी बनाने और चॉपस्टिक से खाने के लिए बेहतर है. चलिए इधर-उधर की स्टार्टर टाइप बातों को छोड़ देते हैं सीधे बिरयानी बनाम पुलाव के मुख्य मुद्दे पर आते हैं.

उज़बेकी

उज़बेकी

बिरयानी

बिरयानी से जुड़ा सबसे बड़ा मिथक है कि ये मुगलों के साथ भारत में आई. बिरयानी भारत में यात्रियों, सूफियों वगैरह के साथ सन् 1300 के आसपास आ चुकी थी. बिरयानी फारसी के 'ब्रिरिंज बिरयान' से बना है. ब्रिरिंज का मतलब चावल होता है. ब्रिरिंज बिरयान शाब्दिक रूप से तले हुए चावल हैं. ईरान में खीर से मिलते-जुलते मीठे को शीर ब्रिरिंज कहा जाता है. खास बात ये है कि शीर शब्द संस्कृत के क्षीर से बना है और ब्रिरिंज की जड़ें संस्कृत के व्रीहि (चावल) के आसपास हैं.

बिरयानी भारत में कई तरह की हैं. मालाबार, बॉम्बे, कोलकाता, दूध की, दम की, अचारी, मसाला, लखनवी, अर्काट और भी जाने कौन-कौन सी. लेकिन बिरयानी में एक खास चीज़ है कि इसमें चावल और मीट को अलग-अलग आधा पकाया जाता है और फिर मिलाकर पकाया जाता है.

हैदराबादी बिरयानी सबसे प्रसिद्ध है. इसमें चावल को मसालों के साथ तीन चौथाई पका लिया जाता है. इसके बाद बरिश्ता(डीप फ्राइड प्याज़) चावल और मटन (हल्का पका हुआ या लंबे समय तक मैरिनेट किया हुआ) को परतों में मिलाकर उसे धीमी आंच पर दम लगाने बैठा देते हैं. बर्तन के ढक्कन को आटे से बंद कर दिया जाता है. जब अंदर की भाप से आटा चटखने लगता है तो बिरयानी तैयार होती है. लखनवी बिरयानी इससे थोड़ी ही अलग होती है. उसमें मसाले कम होते हैं और दिखते नहीं हैं. कोलकाता की बिरयानी में आलू पड़ता है और बहुत हल्की सी मिठास भी होती है. दिल्ली में सबसे ज्यादा लोकप्रिय मुरादाबादी बिरयानी है. इसमें मीट को हल्के मसालों के संग आधा पकाकर बर्तन में रखते हैं और कच्चे चावल, पानी रखकर पकाते हैं. मुरादाबादी बिरयानी में बहुत तेज फ्लेवर नहीं होते हैं तो, ये शौकिया बिरयानी चखने वालों को अच्छी लगती है.

पुलाव

पुलाव कहां से आया इसको लेकर विवाद हैं. हमारे साथ-साथ ईरानी इसे भी अपना बताते हैं लेकिन, याज्ञवल्क स्मृति में इसका जिक्र मिलता है. अब दुनिया की अलग-अलग सभ्यता में इसका जिक्र मिलता है. हो सकता है पारंपरिक ग्रीक खाने में आपको पिलाफी पेश किया जाए. वेस्टइंडीज में पिलाफ, ईरान में पिलाव. दुनिया के किसी भी कोने में पुलाव से मिलते जुलते शब्द का मतलब किसी चीज़ के साथ पका हुआ चावल ही है. ये चीज़ मीट, मेवे, सोयाबीन, पनीर, या सब्जी कुछ भी हो सकती है. इनको पकाकर चावल में मिलाया और फिर साथ में पका दिया.

आज भले ही बिरयानी की लोकप्रियता ने पुलाव को घरेलू डिश बना दिया हो लेकिन, मध्यकालीन भारत में पुलाव की प्रसिद्धि बहुत थी. बादशाह और नवाब तरह-तरह के पुलाव बनवाने के शौकीन रहे. अकबर के नवरत्नों के सम्मान में रंगबिरंगा 'नवरतन पुलाव' बना. इसी तरह अवध में अंडे की सफेदी से मोती बनाकर बना मोतिया पुलाव भी खासा लोकप्रिय था. आज भी पुराने लखनऊ परिवारों में पुलाव इतवार को पूरे परिवार के खाने का हिस्सा बना मिल जाएगा.

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तो अब तक आप इतना तो समझ ही गए होंगे कि पुलाव बनाम बिरयानी असल में कोई लड़ाई है ही नहीं. पुलाव का अपना ज़ायका है. बिरयानी के अपने रंग-ढंग. दोनों का इतिहात और भूगोल बहुत फैला हुआ है. बिरयानी ही क्यों चावल का ही विस्तार बहुत बड़ा है. चावल एक ऐसा अन्न है जिसका इस्तेमाल खाने में हर स्तर पर होता है. मतलब एपेटाइज़र के तौर पर अप्पम से लेकर सुशी तक. स्टार्टर में मिनी इडली या कोरियन किमबाब जैसा कुछ. बिरयानी या पुलाव जैसा मेन कोर्स. खीर या राइस पुडिंग जैसा डेज़र्ट. पूर्वी एशिया के देशों में चावल की वाइन का भी ज़िक्र मिलता है. फास्टफूड के तौर पर आप कोई कॉम्बो भी खा सकते हैं.

अंत में मूल सवाल, 'क्या वेज बिरयानी होती है?' जवाब है हां होती है. अवध में नवाबों के हिंदू कारिंदों ने बिरयानी बनाने के तरीके में सब्ज़ियों के साथ प्रयोग किए. इस तरह दम लगाकर जो चीज़ बनी उसे तहरी कहा गया. तो बिरयानी की तरह तह लगाकर बनी वेज डिश तहरी है. अब होटल, रेस्त्रां में तहरी खाना थोड़ा लो प्रोफाइल लग सकता है तो इसमें अंग्रेजी का छौंक लगाकर वेज बिरयानी बना दिया गया. उम्मीद है कि आगे आप बिरयानी, तहरी, पुलाव कुछ भी खाएंगे इनमें फर्क को याद रखेंगे और कोई आपको बिरयानी बोलकर फ्राइड राइस नहीं खिला पाएगा. और हां, इन सबके बीच खिचड़ी भी पकती है, जिसके चार यार भी होते हैं, उसकी बात फिर कभी करेंगे.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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