भारतीय शास्त्रीय संगीत में कुछ दिग्गज कलाकार ऐसे हैं जिन्हें आज ‘ग्लोबल आर्टिस्ट’ माना जाता है. उस्ताद अमजद अली खान निश्चित तौर पर उनमें से एक हैं. सरोद सम्राट उस्ताद अमजद अली खान उन कलाकारों में से हैं जिन्होंने सिर्फ और सिर्फ अपने संगीत के दम पर पूरी दुनिया में इज्जत शोहरत और प्यार कमाया है. बचपन से लेकर जवानी तक उन्होंने तमाम संघर्ष भी किया. लेकिन उसूलों से समझौता नहीं किया. संगीत के साधक के तौर पर परिश्रम करते रहे. आज उस्ताद अमजद अली खान का नाम ही काफी है. उनके इस संघर्ष में उनकी जीवनसाथी का भी रोल रहा. ये बात 70 के दशक के आखिरी सालों की है. उस्ताद अमजद अली खान की शादी 1976 में हुई थी.
भगवान ने इन्हें मेरे लिए ही भेजा है
शादी के बाद वो पंचशील इंक्लेव में ‘शिफ्ट’ हुए. उस घर का किराया 2500 रुपए था. जो बहुत ज्यादा था. फिर उन्हें लगा कि बहुत सारे कलाकार सरकारी घरों में रहते हैं. उन्होंने भी इसके लिए कोशिश की लेकिन आखिर में बात अटक गई. उन्हें सरकारी जवाब मिला कि कलाकारों को घर देने की कोई योजना है ही नहीं. पहले उन्होंने सोचा कि एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर गिनती सामने रखी जाए कि कितने कलाकार सरकारी घरों में रहते हैं लेकिन बाद में उन्होंने ये इरादा छोड़ दिया. क्योंकि इससे बाकि कलाकारों को नुकसान हो सकता था. इस मुश्किल वक्त में उन्हें हमेशा अपनी पत्नी का साथ मिला.
अब दिलचस्प सवाल ये है कि पत्नी कैसे मिलीं? उस्ताद अमजद अली खान से इस सवाल का जवाब लेने से पहले आपको बता दें कि उनकी पत्नी शुभालक्ष्मी खुद एक भरतनाट्यम डांसर हैं. वो असम के एक प्रतिष्ठित परिवार से हैं. उन्होंने मणिपुरी डांस से शुरूआत जरूर की थी लेकिन बाद में उन्होंने महान कलाकार रुक्मिणी देवी अरुंडेल से भरतनाट्यम का विधिवत प्रशिक्षण लिया. भरतनाट्यम में पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा करने के बाद शुभालक्ष्मी जी के कार्यक्रमों की शुरुआत हुई. इसके बाद की कहानी उस्ताद जी खुद बताते हैं- ‘मेरी पत्नी से मिलने का किस्सा भी दिलचस्प है. हुआ यूं कि कलकत्ता में एक कला महोत्सव आयोजित किया गया था. उसमें बड़े-बड़े कलाकार शिरकत कर रहे थे. उस्ताद अमीर खान साहब भी कलाकारों में थे. विलायत खान साहब बजा रहे थे. वहां ‘इनका’ भी डांस था. असम के एक बड़े संस्कारिक परिवार से इनका ताल्लुक था. रुक्मिणी जी से ‘इन्होंने’ डांस सीखा था. मैंने इनका डांस देखा और डांस देखते देखते मुझे लगा कि भगवान ने इन्हें मेरे लिए ही भेजा है.’
इसके बाद उस्ताद अमजद अली खान और शुभालक्ष्मी जीवनसाथी बन गए. उस्ताद अमजद अली खान अपने रिश्ते को याद करते हुए कहते हैं- ‘मेरे ससुर जी परशुराम बरुआ थे, जो असम फिल्मों के पहले हीरो थे. उनके बड़े भाई थे पीसी बरुआ, जो कांग्रेस से थे. उन लोगों का चाय का बड़ा व्यापार था. उन सभी लोगों का आशीर्वाद मुझे मिला. पूरा असम आज भी मुझे बहुत प्यार करता है.’
ये राग उस्ताद जी के बनाए सबसे खूबसूरत रागों में से एक है
शादी के बाद शुभालक्ष्मी के कार्यक्रमों का सिलसिला जारी रहा. उन्होंने हंगरी, चेकोस्लोवाकिया, रोमानिया, वेस्ट जर्मनी, इंग्लैंड, फ्रांस और बेल्जियम जैसे तमाम देशों में प्रस्तुति दी. ये उनके हुनर का ही जादू था कि उन्होंने जमकर वाहवाही बटोरी. इसके बाद 1985 के आते-आते शुभालक्ष्मी ने तय किया कि वो अब वो कार्यक्रमों के बजाए अपने परिवार पर ज्यादा ध्यान देंगी. इसलिए उन्होंने मंच छोड़ दिया. निश्चित तौर पर इसके पीछे की एक बड़ी वजह उस्ताद अमजद अली खान की व्यस्तता भी रही होगी. 1985 आते-आते उस्ताद अमजद अली खान हिंदुस्तान के सबसे व्यस्त कलाकारों में से एक बन चुके थे. अपनी पत्नी के नृत्य छोड़ने के फैसले पर उस्ताद जी कहते हैं-‘मेरी पत्नी आज भी कलाकार ही हैं, क्योंकि मैं मानता हूं कि ये कहना गलत होगा कि उन्होंने डांस करना छोड़ दिया. छोड़ता कोई नहीं है बस स्टेज का साथ छूट जाता है.’ शुभालक्ष्मी पिछले तीन दशक से ज्यादा समय से उस्ताद अमजद अली खान और अपने बेटे के कार्यक्रमों से जुड़े तमाम पहलुओं को देखती हैं.
यूं तो उस्ताद अमजद अली खान ने कई नए शास्त्रीय राग बनाए हैं. जिसमें गणेश कल्याण, श्यामा गौरी, अमीरी तोड़ी, सरस्वती कल्याण, सुहाग भैरव जैसे नाम प्रमुख हैं. लेकिन 1995 में उन्होंने एक बेहद खास राग बनाया. इस राग के बनने की कहानी उस्ताद जी बताते हैं- ‘मेरी पत्नी का जो योगदान है मेरे परिवार में, अमान-अयान की परवरिश में, मेरी पत्नी के रूप में, घर की बहू के रूप में... मैंने इसीलिए राग सुब्बालक्ष्मी बनाया जो मैंने चेन्नई में पहली बार बजाया था. वो राग मैंने उनके जन्मदिन पर उन्हें तोहफे के तौर पर दिया था. उन्होंने मुझे कितना कुछ दिया है, मैंने उन्हें एक राग दिया. बाद में समागम में भी हमने इसे बजाया है. नए राग ऐसे ही बनते हैं.’ निश्चित तौर पर ये राग उस्ताद जी के बनाए सबसे खूबसूरत रागों में से एक है. इसकी नींव में ही प्यार है.
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